आजम खान की ओर से पूर्व में मांगी गई माफी पर अटॉर्नी जनरल ने आपत्ति दर्ज कराई थी। इसके बाद समाजवादी पार्टी के नेता की ओर से दायर ताजा हलफनामा दायर किए जाने पर न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति अमिताव रॉय की पीठ ने कहा कि प्रतिवादी संख्या दो (आजम खान) ने बिना शर्त माफी मांगी है और ईमानदार एवं गहरा खेद जताया है।
खान के बिना शर्त माफी वाले नए हलफनामे को स्वीकार करने वाली पीठ ने यह बात स्पष्ट कर दी कि इस मामले में आजम की ओर से दी जाने वाली किसी भी दलील को अब स्वीकार नहीं किया जाएगा। हालांकि पीठ ने कहा कि उसके द्वारा वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्राता के संदर्भ में तय किए गए सवालों पर और बलात्कार एवं उत्पीड़न समेत घृणित अपराधों के मामलों में उच्च पदों पर बैठे लोगों के बयानों के कारण निष्पक्ष जांच पर पड़ने वाले असर पर बहस की जरूरत है। इसके साथ ही पीठ ने मामले को अगले साल की आठ फरवरी के लिए स्थगित कर दिया।
पीठ ने अपने आदेश में यह भी कहा कि इस मामले में अदालत की मदद के लिए न्यायमित्र के रूप में नियुक्त किए गए प्रख्यात न्यायविद एफएस नरीमन ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि खान की ओर से दायर हलफनामे को स्वीकार किया जाना चाहिए। खान का पक्ष रख रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने पीठ को बताया कि चूंकि न्यायालय की ओर से बनाए गए सवाल संवैधानिक रूप से महत्वपूर्ण हैं इसलिए वह न्यायालय की मदद करना चाहेंगे।
इसपर अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी और नरीमन ने सहमत होते हुए कहा कि यह बेहतर होगा कि सिब्बल न्यायालय द्वारा पूर्व में तय किए गए सवालों के संदर्भ में अपनी राय रखें। सात दिसंबर को शीर्ष अदालत ने कहा था कि बुलंदशहर सामूहिक बलात्कार मामले में उत्तरप्रदेश के मंत्री की कथित टिप्पणियों के लिए उनकी ओर से पूर्व में मांगी गई माफी बिना शर्त माफी प्रतीत नहीं होती।
न्यायालय ने यह टिप्पणी खान के हलफनामे में प्रयुक्त यदि और तब जैसे कुछ शब्दों पर अटॉर्नी जनरल की ओर से आपत्ति उठाए जाने के बाद की थी। खान ने शीर्ष न्यायालय की ओर से 17 नवंबर को दिए गए निर्देश के अनुरूप माफी मांगते हुए यह हलफनामा दायर किया था। (एजेंसी)