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सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को-ऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला का असम से मध्‍य प्रदेश किया ट्रांसफर

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के असम समन्‍वयक (असम को-ऑर्डिनेटर) प्रतीक...
सुप्रीम कोर्ट ने एनआरसी को-ऑर्डिनेटर प्रतीक हजेला का असम से मध्‍य प्रदेश किया ट्रांसफर

सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) के असम समन्‍वयक (असम को-ऑर्डिनेटर) प्रतीक हजेला को मध्यप्रदेश में प्रतिनियुक्ति पर भेजने का आदेश दिया है। प्रतिनियुक्ति का आदेश जारी करने के लिए केंद्र सरकार को सात दिन का समय दिया गया है। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे और जस्टिस नरीमन की पीठ ने यह आदेश जारी किया है। हालांकि शीर्ष अदालत ने हजेला के ट्रांसफर की कोई वजह नहीं बताई है। दरअसल, हजेला ने सुप्रीम कोर्ट को एक गोपनीय रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके बाद यह फैसला लिया गया।

सीजेआी ने अटॉर्नी जनरल के ट्रांसफर की वजह के पर पूछा सवाल

शीर्ष अदालत ने सरकार से सात दिन के भीतर प्रतीक हजेला का ट्रांसफर अधिसूचित करने को कहा है। सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने मुख्‍य न्‍यायाधीश रंजन गोगोई से हजेला के ट्रांसफर की वजह पूछी तो सीजेआई ने पलटकर पूछ लिया कि क्‍या कोई भी ट्रांसफर बिना वजह के होता है। हालांकि, उन्‍होंने ट्रांसफर का कारण बताने से इनकार कर दिया। इससे पहले मध्‍य प्रदेश के रहने वाले प्रतीक हजेला ने सुप्रीम कोर्ट में एक गोपनीय रिपोर्ट सौंपकर अपने ट्रांसफर की मांग की थी।

जानबूझकर लोगों का नाम अंतिम सूची से बाहर करने का लगा आरोप

31 अगस्‍त को जारी एनआरसी की अंतिम सूची में कथित विसंगतियों  के कारण पिछले महीने दो बार हजेला पर मामले भी दर्ज कराए गए। कुछ संगठनों ने आरोप लगाया कि लोगों ने एनआरसी में अपना नाम दर्ज कराने के लिए सही दस्‍तावेज दिए थे। बावजूद इसके एनआरसी समन्‍वयक हजेला ने गोरिया, मोरिया और कई अन्‍य नाम वाले लोगों को जानबूझकर अंतिम सूची से बाहर कर दिया। उन्‍होंने आरोप लगाया कि प्रतीक हजेला ने जानबूझकर असम के मूल निवासियों  के साथ ज्‍यादती की है।

अंतिम सूची जारी होने के बाद कई संगठन बना रहे हजेला को निशाना

प्रतीक हजेला असम-मेघालय कैडर के 1995 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उन्‍हें असम में नेशनल रजिस्‍टर ऑफ सिटिजंस की पूरी प्रक्रिया के पर्यवेक्षण की जिम्‍मेदारी दी गई थी। असम में एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्‍त 2019 को जारी की गई। अंतिम सूची से असम के 19 लाख से ज्‍यादा लोग बाहर रह गए। माना जा रहा है कि इसके बाद हजेला को सांप्रदायिक और भाषाई आधार जैसे संवदेनशील मुद्दों पर निशाना बनाया जाने लगा।

 

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