जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के खिलाफ दर्जनों याचिकाएं दायर की गई हैं। याचिकाओं में अनुच्छेद-370 और 35-ए हटाने के केंद्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है। जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद-370 के अधिकांश प्रावधान खत्म करने के सरकार के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को सुनवाई शुरू हुई।
न्यायमूर्ति एन वी रमण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान के समक्ष नौकरशाह से राजनीति में आए शाह फैजल और अन्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचन्द्रन ने बहस शुरू की। रामचन्द्रन ने इस मामले में अपनी बहस के दायरे के बारे में पीठ को अवगत कराया।
‘कोई भी बदलाव राज्य की सहमति से ही हो सकता है'
राजू रामचंद्रन ने कहा, ‘कोई भी बदलाव राज्य की सहमति से ही हो सकता है। अनुच्छेद 370 हटाने के लिए जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवश्यक मंजूरी चाहिए। इसे हटाने के कदम को असंवैधानिक बताते हुए राजू रामचंद्रन ने कहा कि जम्मू कश्मीर का भारत में विलय कुछ शर्तों के साथ हुआ था कोई ऐसा बदलाव नहीं किया जा सकता जो विलय संधि के खिलाफ हो।’
उन्होंने आगे कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए राज्य विधानमंडल की मंजूरी आवश्यक है नहीं तो यह संघीय विधान के सिद्धांतों का उल्लंघन है। जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाले इस बेंच में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं।
5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था मामला
दरअसल इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 5 जजों की संविधान पीठ को भेज दिया था। इसकी अध्यक्षता जस्टिस एनवी रमन को दी गई है। मामले की सुनवाई करने वाली संवैधानिक पीठ में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल हैं। इसके साथ ही याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा।
वकील ने दायर याचिका में विशेषाधिकार हटाने को बताया असंवैधानिक
दरअसल, एक वकील की ओर से दायर याचिका में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को लेकर जारी की गई अधिसूचना को असंवैधानिक बताया गया है। याचिका में ये भी कहा गया है कि सरकार इस तरीके का काम करके देश में मनमानी कर रही है। राष्ट्रपति का आदेश असंवैधानिक है और केंद्र को संसदीय मार्ग अपनाना चाहिए।
वहीं कश्मीर टाइम्स की एक्जीक्यूटिव एडिटर अनुराधा भसीन ने भी अर्जी दाखिल की थी। अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद पत्रकारों पर लगाए गए नियंत्रण समाप्त करने की मांग की गई थी। जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई करने के बाद फैसला सुरक्षित रखा लिया था।
पीठ ने याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश पारित करने से कर दिया था इनकार
इससे पहले 14 नवंबर को पीठ ने याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। साथ ही कहा था कि ऐसा करने पर सुनवाई में देरी हो सकती है और बताया था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले से जुड़े सभी मुद्दों पर सभी पार्टियों को सुनने के बाद एक साथ निर्णय देगी।
वहीं, जस्टिस एनवी रमन ने सोमवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता व वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन को मामले पर तैयारी के साथ आने के निर्देश दिए। याचिकाकर्ताओं से भी सभी याचिकाओं व इनमें दिए जा रहे दस्तावेजों को एक साथ प्रस्तुत करने के लिए कहा गया था। इससे सुनवाई में आसानी होगी।
सूत्रों का कहना है कि मेहता ने बताया कि सभी याचिकाओं को एक साथ कर लिया गया है, लेकिन कुछ नए दस्तावेज भी दिए जाते हैं तो उन्हें बाद में जोड़ा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को इसी मामले पर दायर दो अन्य याचिकाओं पर भी जवाब देने के लिए कहा था। वहीं, इन दो को छोड़कर नई याचिकाओं को दायर करने पर रोक लगाई थी।
जानें कौन हैं याचिकाकर्ता
नेशनल कॉन्फ्रेंस की ओर से लोकसभा सांसद मोहम्मद अकबर लोन और जस्टिस (सेवानिवृत्त) हसनैन मसूदी, जे एंड के पीपल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से सज्जाद लोन, माकपा नेता मोहम्मद यूसुफ ने याचिका में पांच अगस्त के सरकार के निर्णय पर आपत्ति जताई है। 2015 में सेवानिवृत्त हुए जस्टिस मसूदी ने अनुच्छेद 370 को संविधान का स्थायी अंग बताया था।
एक याचिका पूर्व रक्षा अधिकारियों व नौकरशाहों ने दायर की है। इनमें 2010-11 में गृहमंत्रालय के वार्ताकार समूह में शामिल रहे प्रो. राधा कुमार, जम्मू-कश्मीर काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी हिंदल हैदर तैयबजी, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) कपिल काक, मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) अशोक कुमार मेहता, पंजाब काडर के पूर्व आईएएस अधिकारी शामिल हैं।
जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया
बता दें कि राष्ट्रपति ने आदेश जारी कर जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाला प्रावधान अनुच्छेद 370 समाप्त कर दिया था। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो केन्द्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। अनुच्छेद 370 खत्म करने का प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों से भारी बहुमत से पास हुआ था और उसके बाद राष्ट्रपति ने आदेश जारी किया था। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद सुरक्षा के लिहाज से एहतियात के तौर पर कुछ कदम उठाए गए थे।