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सर्वेः दिल्ली के 76 प्रतिशत माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार, कहा- बंद तभी हो जब उनके आसपास हों ओमिक्रोन के कई मामले

लगभग 18 महीनों बाद कोरोना महामारी के कारण राज्य सरकारें चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन के नियमों में छूट दे...
सर्वेः दिल्ली के 76 प्रतिशत माता-पिता बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार, कहा- बंद तभी हो जब उनके आसपास हों ओमिक्रोन के कई मामले

लगभग 18 महीनों बाद कोरोना महामारी के कारण राज्य सरकारें चरणबद्ध तरीके से लॉकडाउन के नियमों में छूट दे रही हैं और स्कूल भी दोबारा से खुल रहे हैं, लेकिन इस दौरान बच्चों की पढ़ाई को नुकसान से परेशान 76 प्रतिशत माता पिता अब अच्चे बच्चों को स्कूल भेजने का जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं। एक नए सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश माता-पिता चाहते हैं कि स्थानीय अधिकारी केवल तभी स्कूल बंद करें जब उनके जिले में या उनके आसपास के 25 किलोमीटर के क्षेत्र में कई ओमिक्रोन के मामले पाए जाएं।

कोरोना के नए वेरिएंट को लेकर 10,000 से अधिक माता-पिता से यह सर्वे  किया गया जिसमें देश के 332 से अधिक जिलों से में 61 प्रतिशत पुरुष थे जबकि 39 प्रतिशत महिलाओं ने इसमें हिस्सा लिया। सर्वे के अनुसार, इसमें 59 प्रतिशत को लगता है कि महामारी के कारण उनके बच्चों की पढ़ाई का नुकसान हुआ है और दिल्ली में 76 प्रतिशत माता-पिता अपने बच्चों को वापस स्कूल भेजना चाहते हैं। उनका मानना है कि स्कूलों के दोबारा खुलने से ही स्कूल का पूरा अनुभव मिलना संभव है।

मेट्रो और नॉन-मेट्रो शहरों में रहने वाले उन 10,500 माता-पिता के बीच यह सर्वे किया गया, जिनके बच्चे कक्षा 1 से लेकर 10 में पढ़ते हैं। सर्वे के अनुसार अपने बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए 22 प्रतिशत माता-पिता के लिए स्कूल स्टाफ का वैक्सीनेशन सबसे बड़ी प्राथमिकता है। इसके अलावा 55 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने सोशल डिस्टेंसिंग को सबसे महत्वपूर्ण माना।

महामारी के दौरान बच्चों और खुद के सामने आई चुनौतियों पर पेरेंट्स ने बात की और याद किया कि शुरुआती दिनों में वे कैसे 'वर्क फ्रॉम होम' और 'स्कूल फ्रॉम होम' के बीच ताल-मेल बिठाते थे। सर्वे में पाया गया कि 47 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने अपने बच्चों के स्कूल में हर दिन 3 से 4 घंटे बिताए, जबकि ऐसा करने वाले नॉन-मेट्रो शहरों के पेरेंट्स 44 प्रतिशत थे। सर्वे में शामिल अधिकांश माता-पिता (63 प्रतिशत) को लगता है कि फिजिकल क्लासरूम में होने से बच्चों की सामाजिक पारस्परिक क्रिया बेहतर होती है।

गैर महानगरीय 40 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि उनके बच्चे ने पर्सनल कंप्यूटर पर पढ़ाई की थी, जबकि लगभग 60 प्रतिशत महानगरीय माता-पिता ने बताया कि उनका बच्चा लॉकडाउन का एक साल बीतने के बाद भी कंप्यूटर/लैपटॉप पर पढ़ता रहा। नॉन-मेट्रो शहरों के ज्यादातर स्टूडेंट्स ने स्मार्टफोन के जरिये स्कूल अटेंड किए, जिससे पेरेंट्स को अक्सर चिंता हुई।

अधिकांश राज्यों में स्कूलों ने इस साल अगस्त-सितंबर में व्यक्तिगत रूप से कक्षाएं फिर से शुरू कीं, जब दैनिक कोरोना  मामलों में महामारी की आक्रामक दूसरी लहर के बाद गिरावट शुरू हुई। हालाँकि, एक बार फिर, देश दो सप्ताह के भीतर कोरोना के नए वेरिंट ने चिंता बढ़ा दी है।

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