शिक्षण की कला, खोज की सहायक कला है। मार्क वान डोरेन का यह उद्धरण हमारे बच्चों की नियति को आकार देने में एक शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका को खूबसूरती से उजागर करता है। प्रत्येक बच्चा प्रतिभावान होता है तथा जीवन में महान लक्ष्य हासिल करने में सक्षम होता है।
यहीं पर शिक्षक बच्चों की उस प्रतिभा और कौशल को खोजने में सहायक सिद्ध होता है तथा विद्यार्थियों को उनके उद्देश्यों की पूर्ति की ओर ले जाता है। इसीलिए शिक्षक की भूमिका केवल सूचना और तथ्यों को लेकर मात्र व्याख्यान देना या प्रसारित करना नहीं होना चाहिए बल्कि प्रत्येक छात्र को आत्मनिर्भर बनने और उन्हें अपनी क्षमता का एहसास कराने के लिए एक समृद्ध, पुरस्कृत एवं अद्वितीय शिक्षक बनकर विद्यार्थियों को अनुभव प्रदान करने में सहायक होना चाहिए।
आज के युग में शिक्षक बनना सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है लेकिन यह कार्य अन्य सभी कार्यों की तुलना में सम्मानजनक है, जो हमारी युवा पीढ़ी के कल्याण और बड़े पैमाने पर हमारे देश की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। आज हम ऐसे समय तथा स्थिति में रह रहे हैं जहां पर शिक्षा आमूल-चूल परिवर्तन और बड़े पैमाने पर पुनर्गठन के दौर से गुजर रही है। भारत में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने समग्र, सुलभ, न्यायसंगत और अनुसंधान परक शिक्षा के माध्यम से ना केवल रोजगारपरक शिक्षा बल्कि शोधकर्ताओं और उद्यमियों को भी विकसित करने का एक खाका खींचा है। ऐसे में नई शिक्षा प्रणाली के तहत छात्रों को सर्वश्रेष्ठ ज्ञान प्रदान करने के लिए शिक्षकों को स्वयं सुसज्जित होकर अपने आपको अच्छी तरह से तैयार करने के लिए पुनर्विचार करना होगा।
भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक सुप्रसिद्ध शिक्षक और अद्भुत शिक्षाविद थे। उनकी जयंती पर प्रत्येक वर्ष हम सभी शिक्षक दिवस मनाते हैं। हम सभी अपने प्रिय शिक्षकों को उनकी ईमानदारी तथा उनके द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किए गए सराहनीय कार्यों के साथ-साथ उनके त्याग और बलिदान की भावना को याद करते हैं। मैल्कम ने ठीक ही कहा है कि ‘‘शिक्षा भविष्य का पासपोर्ट है’’। समाज और छात्रों के जीवन का विकास काफी हद तक उन्हें प्रदान की जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करता है। आज समय की मांग है कि हम अपने बच्चों को अनुभवात्मक शिक्षण के अवसर प्रदान करें; आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता, सहयोग की भावना, संचार, प्रौद्योगिकी, नेतृत्व, सामाजिक कौशल तथा 21वीं सदी में खेती करने के नए तरीकों के साथ व्यावहारिक शिक्षा भी उनके समग्र विकास के लिए आवश्यक पहलू हैं।
शिक्षक संपूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया के अभिन्न अंग बने रहते हैं। इसके अलावा, शिक्षक दिवस के दिन, उन गुमनाम शिक्षकों को भी याद करना जरूरी है जिन्होंने वंचितों, गरीबों के प्रति अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी उठाते हुए उन तक शिक्षा को पहुंचाने की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के दृष्टिकोण से आज समय की मांग है कि ऐसे शिक्षकों को तैयार किया जाए जो चुनौतियों से ऊपर उठकर छात्रों के कल्याण और समाज के विकास की दिशा में काम करने के इच्छुक हों और छात्रों को उज्जवल भविष्य के लिए प्रोत्साहित करते हुए आत्मविश्वास से परिपूर्ण करें।
जीवन पूरी तरह से कुछ ना कुछ सीखने के लिए है और सीखने की इस प्रक्रिया में, शिक्षकों को स्वयं आजीवन सीखने वाला बना रहना चाहिए तथा प्रत्येक छात्र को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा प्रदान करने में सहायक की भूमिका निभानी चाहिए। जबकि शिक्षक नित-नए अध्यापन के तरीके अपनाकर छात्रों के बौद्धिक विकास के लिए वर्तमान में उपलब्ध शैक्षणिक संसाधनों तथा सूचना एवं प्रौद्योगिकी करण के माध्यम से बच्चों के सामाजिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करता है।
ईश्वर ने शिक्षकों को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका दी है, जिसके लिए बहुत अधिक त्याग एवं बलिदान की आवश्यकता है। छात्रों के मन पर शिक्षकगण सच्चे मार्गदर्शक के रूप में अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं।
(लेखक शिक्षाविद हैं। विचार निजी हैं)