असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस का फाइनल ड्राफ्ट जारी कर दिया गया है। इसमें 40 लाख लोगों के नाम श्ाामिल नहीं हैं। इसे लेकर तनाव की आशंका जताई जा रही है। इसके चलते पूरे राज्य में सुरक्षा बेहद सख्त कर दी गई है। एहतियात के तौर पर सीआरपीएफ को तैनात किया गया है तथा सात जिलों में धारा 144 लगा दी गई है।
असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर समन्यक प्रतीक हाजेला ने एनआरसी का अंतिम ड्राफ्ट जारी करते हुए बताया कि 3, 29, 91,384 करोड़ आवेदकों में से 2, 89, 83, 677 वैध पाए गए हैं। यह अंतिम मसौदा है, जिनका नाम इस ड्राफ्ट में नहीं है, वे घबराए नहीं। इसके लिए वह तय केंद्रों पर जाकर आवेदन कर सकते हैं। इसके लिए सही से आवेदन करें और जरूरत पर सहायता भी ले सकते हैं। एनआरसी का पहला ड्राफ्ट पिछले साल दिसंबर के आखिर में जारी हुआ था।
लिस्ट में देख सकेंगे नाम
आवेदक अपने नामों को लिस्ट में एनआरसी सेवा केन्द्र जाकर 30 जुलाई से 28 सितंबर तक सभी कामकाजी दिनों में सुबह 10 बजे से शाम चार बजे तक देख सकते हैं। एनआरसी में उन सभी भारतीय नागरिकों के नामों को शामिल किया गया है, जो 25 मार्च, 1971 से पहले असम में रह रहे हैं।
फाइनल ड्राफ्ट जारी होने के साथ ही तनाव की आशंका जताई जा रही है। जगह-जगह सुरक्षाबलों की तैनाती की गई है तथा संवेदनशील इलाकों पर खास तौर पर निगरानी रखी जा रही है। राज्य सरकार ने लोगों से संयम बरतने और किसी भी तरह के अफवाह में न आने की अपील की है।
1971 में हुआ था समझौता
बांग्लादेश एक ऐसा राष्ट्र है, जिसके साथ असम का 4096 किलोमीटर की सीमा का हिस्सा लगता है। यह पूरा मसला असम आंदोलन से जुड़ा है। असम में अवैध रूप से रहने वाले बांग्लादेशियों का मामला बहुत बड़ा मुद्दा रहा है। इसके कारण अक्सर हिंसक घटनाएं होती रहती हैं। असम के मूल नागरिकों का मानना है कि अवैध रूप से यहां आकर बसे लोग उनका हक मार रहे हैं। इस मुद्दे को लेकर 80 के दशक में बड़ा आंदोलन हुआ, जिसके बाद असम गण परिषद और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के बीच समझौता हुआ इसमें तय हुआ कि 1971 तक जो भी बांग्लादेशी असम में आए हैं, उन्हें नागरिकता दी जाएगी और बाकी को निकाल दिया जाएगा।
राज्य सरकारें रही नाकाम
अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए एनआरसी जारी करने का फैसला लिया गया। हालांकि उसके बाद असम की राज्य सरकार असम समझौते में निर्धारित विदेशियों की पहचान और निष्कासित करने में लगातार नाकाम रही। 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और केंद्र सरकार के बीच एक अन्य समझौता हुआ और इसमें एक बार फिर से एनआरसी को अपडेट करने का फैसला लिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
गोगोई सरकार ने कुछ जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर एनआरसी अपडेट शुरू कर दिया था लेकिन राज्य के कुछ हिस्सों में हिंसा के बाद यह रोक दिया गया। जुलाई 2009 में एक एनजीओ असम लोक निर्माण (एपीडब्ल्यू) ने पहल की तथा राज्य में बांग्लादेशी विदेशियों की पहचान करने और मतदाताओं की सूची से उनके नामों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई जिस पर कोर्ट ने यह काम जल्द करने का निर्देश दिया। 31 दिसंबर 2017 को असम के एनआरसी के पहले ड्राफ्ट को रिलीज करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट ने ही दिया था।