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क्या है यूपीकोका, जिसे उत्तर प्रदेश के अपराधियों के लिए खतरा बताया जा रहा है

उत्तर प्रदेश में मकोका की तर्ज पर यूपीकोका विधेयक-2017 राज्य विधानसभा में पारित कर दिया गया लेकिन क्या इस...
क्या है यूपीकोका, जिसे उत्तर प्रदेश के अपराधियों के लिए खतरा बताया जा रहा है

उत्तर प्रदेश में मकोका की तर्ज पर यूपीकोका विधेयक-2017 राज्य विधानसभा में पारित कर दिया गया लेकिन क्या इस तरह के कठोर कानूनों से वाकई जुर्मों पर लगाम लगेगी या फिर इसकी आड़ में कानून का बेजा इस्तेमाल होगा, यह बड़ा सवाल है। लेकिन इस कानून का हो-हल्ला बहुत है। कहा जा रहा है कि इसके बाद प्रदेश के अपराधियों में खौफ बढ़ेगा और वो अपराध करने से डरेंगे। जानिए, आखिर क्या है प्रदेश में लागू किया जा रहा यूपीकोका कानून?

यूपीकोका (UPCOCA) का मतलब है यूपी कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट यानी यह कानून संगठित जुर्मों के खिलाफ है। यह कानून पुलिस को अप्रत्याशित अधिकार और पॉवर दे देता है। किसी अन्य जुर्म के लिए पुलिस आरोपी को 15 दिनों की रिमांड पर ही हवालात में रख सकती है लेकिन इस नए कानून की धारा 28 (ए) के तहत बिना जुर्म साबित हुए भी पुलिस किसी आरोपी को 60 दिनों तक हवालात में रख सकती है। 

आईपीसी में किसी को गिरफ्तार करने के 60 से 90  दिनों के अन्दर चार्जशीट दाखिल करनी पड़ती है लेकिन मकोका में यह अवधि 180 दिनों की है।  इसी तर्ज पर यूपीकोका में भी 180 दिनों तक बिना चार्जशीट दाखिल किए आरोपी को जेल में रखा जा सकेगा। इस कानून में जेल के अन्य कैदियों से मिलने के लिए भी बहुत सख्ती है। धारा 33 (सी) के अनुसार, किसी जिलाधिकारी की परमिशन के बाद ही यूपीकोका के आरोपी साथी कैदियों से मिल सकते हैं, वो भी हफ्ते में एक से दो बार। यूपीकोका की सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट बैठेगी और मुजरिम पाए जाने पर उम्र कैद से लेकर मौत की सजा का भी प्रावधान होगा। साथ ही मुजरिम पर पांच से लेकर 25 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

1999 में लागू हुआ था मकोका

इस तरह का नियम लागू करने के बाद उत्तर प्रदेश भी उन राज्यों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने कोका (कंट्रोल ऑफ आर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) लागू  हैं। इस तरह के कानून की शुरुआत मुंबई में साल1999 में हुई थे जिसके बाद गुजरात, कर्नाटक और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों ने भी अपने अलग कानून बना लिए। मुंबई राज्य सरकार ने मौजूदा कानून को सक्षम ने मानते हुए बढती माफिया शक्ति को नियंत्रित करने के लिए मकोका को पास किया था। इसके लिए पुलिस के पास अधिकार है कि वो आरोपी के पत्र, टेलीफोन और व्यक्तिगत रूप से किसी से मिलने पर भी रोक लगा दे।  किसी भी व्यक्ति पर मकोका लगने के बाद उसे जमानत मिलना नामुमकिन ही है  लेकिन यदि पुलिस 180 दिनों के अन्दर चार्जशीट दाखिल नहीं करती, तो आरोपी को जमानत मिल सकती है। मकोका लगाने से पहले पुलिस अधिकारियों को एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस से मंजूरी लेनी पड़ती है और मुकदमा तभी दाखिल किया जा सकता है जब ये साबित हो जाए कि वो बीते 10 सालों में कम से कम दो बार किसी तरह के संगठित जुर्म का हिस्सा रहा है।

कर्नाटक का ककोका

र्नाटक में यह कानून ककोका के नाम से साल 2000 में लागू किया गया। इसकी सभी धाराएं मकोका से मिलती-जुलती ही थीं। 2009 में इसमें कुछ बदलाव किए गए, जिनके तहत टेरेरिस्ट हरकतों से जुड़े लोगों को उम्र कैद के साथ ही दस लाख का जुर्माना देना पड़ेगा। वहीं उन्होंने ककोका के दायरे को बढ़ाते हुए ड्रग्स बेचने वालों, जुआरियों, गुंडों और कबूतरबाजी के आरोपियों को भी इसमें शामिल किया। साथ ही ऑडियो और वीडियो पायरेसी करने वालों पर भी ककोका लगाने का प्रावधान किया। वही, अरुणाचल प्रदेश सरकार ने 2002 में मुख्यमंत्री मुकुट मिथि की अगुवाई में मकोका से मिलता-जुलता कानून अपने प्रदेश में भी पारित किया।

गुजकोका का फंसा है पेच

गुजकोका विवादित कानून है जो आज तक पारित नहीं हो पाया है। 2003 में इसे गुजरात की विधान सभा में पास कर दिया गया था लेकिन अभी तक इसे राष्ट्रपति की सहमति नहीं मिल पाई है। 2002  के गुजरात दंगों के बाद प्रदेश में मकोका के आधार पर एक कानून बनाने की पेशकश की गई थी लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति ए.पी.जे अब्दुल कलाम ने इसे सहमति नहीं दी थी। 2009 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सामने इसे फिर पेश किया गया लेकिन उन्होंने इसे तीन संशोधनों के लिए भेज दिया। पहले संशोधन पर प्रणब ने कहा था, गुजकोका के अनुसार पुलिस के सामने दिया गया इकबालिया बयान ही कोर्ट में मान्य होगा. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए। दूसरा संशोधन उन्होंने जमानत के बारे में बताया था जिसकी एक सेक्शन में कहा गया है कि अगर सरकारी वकील विरोध करता है तो आरोपी को जमानत नहीं मिल सकेगी। लेकिन अदालत के पास किसी को भी जमानत देने का अधिकार होना चाहिए साथ ही उन्होंने धारा 20 (बी) का उल्लेख करते हुए उसमें भी संशोधन की मांग की थी।

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