कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती का बुधवार सुबह निधन हो गया। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती 83 साल के थे। उनके अंतिम दर्शन के लिए लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी थी।
उनके बाद अब विजयेंद्र सरस्वती कांची मठ के 70वें शंकराचार्य होंगे।
कौन हैं विजयेंद्र?
विजयेंद्र, जयेन्द्र सरस्वती के शिष्य थे। विजयेंद्र अब कांची कामकोटि को पीठाधिपति हैं। पीठ के प्रमुख को शंकराचार्य की उपाधि दी जाती है। विजयेंद्र अब 482 ईसा पूर्व में बने उस मठ के प्रमुख होंगे जिसकी शुरुआत स्वयं आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी।
कांची के शंकराचार्य होने के नाते अब विजयेंद्र सनातन अद्वैत वेदांत के प्रवर्तक होंगे। इनका जन्म 1969 में कांचीपुरम के करीब थंडलम में हुआ था। विजयेंद्र के बचपन का नाम शंकरनारायणन है. विजयेंद्र के पिता कृष्णमूर्ति शास्त्री वेदों के ज्ञाता थे। वे तमिलनाडु के पोलूर के एक वैदिक स्कूल में ऋग्वेद पढ़ाते थे।
विजयेंद्र ने 14 साल की उम्र में सन् 1983 में जयेंद्र सरस्वती को अपना गुरु मानकर संन्यास ले लिया था। जयेन्द्र सरस्वती ने न केवल इन्हें शिष्य के रूप में स्वीकार किया बल्कि अपना उत्तराधिकारी घोषित कर शंकर विजयेंद्र सरस्वती का नाम भी दिया।
साल 1987 में चर्चा हुई कि जयेन्द्र सरस्वती ने मठ छोड़ दिया है जिसके बाद चंद्रशेखरेंद्र सरस्वती ने विजयेंद्र सरस्वती का अभिषेक कर दिया। बाद में जयेन्द्र सरस्वती के लौटने पर मठ के 3 पीठाधिपति हो गए थे।
युवाओं में वैदिक ज्ञान का प्रचार-प्रसार करने पर जोर देने वाले विजयेंद्र सरस्वती कांची मठ के अनुयायियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं। मंदिरों के जीर्णोंद्धार के लिए बनाए गए लोक धर्म सेवा फाउंडेशन ट्रस्ट का श्रेय भी इन्हें ही जाता है।