आईआईटी और हार्वर्ड से पढ़े 53 साल के इन्वेस्टमेंट बैंकर रहे जयंत सिन्हा को जब वित्त मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाकर नॉर्थ ब्लॉक लाया गया, तब यह कहा गया था कि वे सर्वाधिक योग्य व्यक्ति हैं। लेकिन दो साल बीतते ही हालात बदल गए। उन्हें अपने पसंदीदा मंत्रालय से हटना पड़ा। वे फेरबदल से दबे-छुपे नाराज चल रहे बताए जा रहे हैं। वे अपने पुराने मंत्रालय में नए राज्यमंत्री को चार्ज देने भी नहीं गए। संघ और भाजपा का एक वर्ग मान रहा है कि उन्होंने वित्त मंत्रालय के कई ऐसे फैसलों पर सार्वजनिक चर्चा कर दी, जिनपर नहीं बोलना था। कई संवेदनशील मुद्दों पर बोल बैठे। मसलन, आयकर दाताओं की संख्या बढ़ाकर 10 करोड़ करने के लक्ष्य वाले उनके बयान के कॉरपोरेट घरानों की एक लॉबी नाराज हो गई थी और भाजपा-संघ नेतृत्व पर दबाव बनाने लगी थी। तब प्रधानमंत्री कार्यालय ने उन्हें सतर्क भी किया था।
पिछले महीने राष्ट्रीयकृत बैंकों के प्रमुखों की बैठक बुलाई थी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने। उसी दिन जयंत सिन्हा ने अपने घर भी सभी बैंक प्रमुखों को अलग से बुलाया। उस बैठक में जयंत सिन्हा की पत्नी पुनीता सिन्हा समेत कई ‘बाहरी’ लोग भी शामिल हुए। पुनीता सिन्हा को लेकर भाजपा में पहले से सवाल उठ रहे थे। जयंत सिन्हा के वित्त राज्यमंत्री बनाए जाने के बाद पुनीता सिन्हा को इन्फोसिस ने निदेशक बना दिया था। तब सवाल उठा था कि क्या इन्फोसिस को जयंत सिन्हा कोई खास लाभ पहुंचा रहे हैं।