कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुधवार को हिजाब विवाद पर फिर से सुनवाई की। यह लगातार चौथा दिन है जब कोर्ट स्कूल-कॉलेजों के परिसर में हिजाब/बुर्का पर प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई किया। जाहिर है कि कर्नाटक में हिजाब पहने लड़कियों को कुछ स्कूल-कॉलेजों में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था।
आज सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता रविवर्मा कुमार ने अदालत से पूछा कि हिजाब को ही क्यों निशाना बनाया जा रहा है? जबकि कड़ा, बिंदी, तिलक, क्रॉस और पगड़ी सहित कई अन्य धार्मिक प्रतीकों को छात्र नियमित रूप से पहनते हैं। कुमार ने समाचार एजेंसी एएनआई के हवाले से कहा, "मुस्लिम लड़कियों के साथ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म पर आधारित है।"
कुमार ने कहा, "मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ भेदभाव विशुद्ध रूप से धर्म के आधार पर है। यह शत्रुतापूर्ण भेदभाव है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि घूंघट, चूड़ी, पगड़ी और क्रॉस की अनुमति है, लेकिन हिजाब को नहीं। क्यों? यह संविधान के आर्टिकल 15 का वायलेशन है।
#HijabRow | Senior Advocate Professor Ravivarma Kumar says - No other religious symbol is considered in the Govt Order. Why only hijab? Is it not because of their religion? Discrimination against Muslim girls is purely based on religion.
— ANI (@ANI) February 16, 2022
रविवर्मा कुमार ने कर्नाटक शिक्षा अधिनियम का उल्लेख करते हुए कहा कि उक्त अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध लगाता हो। उन्होंने अधिनियम का जिक्र करते हुए कहा, "नियम कहता है कि जब शैक्षणिक संस्थान ड्रेस बदलने का इरादा रखता है, तो उसे माता-पिता को एक साल पहले नोटिस जारी करना होता है। अगर हिजाब पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो उसे एक साल पहले सूचित करना चाहिए"
गौरतलब है कि कर्नाटक में हिजाब विवाद ने एक बड़े विवाद का रूप ले लिया है। यह मुद्दा जनवरी की शुरुआत में उडुपी के गवर्नमेंट गर्ल्स प्री-यूनिवर्सिटी (पीयू) कॉलेज में शुरू हुआ, जहां छह छात्राओं ने कक्षाओं में ड्रेस कोड का उल्लंघन करते हुए हेडस्कार्फ़ पहनकर कक्षाओं में भाग लिया। कॉलेज ने परिसर में हिजाब की अनुमति दी थी लेकिन कक्षाओं के अंदर नहीं। छात्राओं ने निर्देशों का विरोध किया, लेकिन उन्हें कक्षाओं में जाने से रोक दिया गया