दूसरी ओर केंद्र सरकार इस बिल को समाज के पीछे छूट गए तबके को सीधे सब्सिडी तथा अन्य सरकारी सेवाएं मुहैया कराने के लिए जरूरी और क्रांतिकारी बता रही है। सिटिजन फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज (सीएफसीएल) ने इस विधेयक के नुकसानों को सिलसिलेवार ढंग से सामने रखा है और कहा है कि यह एक ऐसा कलरेबल विधेयक है जिसका प्रत्यक्ष रोल कुछ और जबकि छिपा हुआ एजेंडा वह है जिसे सरकार कानूनन लागू नहीं कर सकती। इस लिहाज से यह विधेयक भारतीय संविधान के साथ धोखा है। सीएफसीएल के अनुसार आधार विधेयक का लक्ष्य देश के सर्वोच्च न्यायालय को संसदीय प्रक्रिया के जरिये अपमानित कर रबड़ स्टांप में बदल देना है। संस्था का यह भी कहना है कि नागरिकों के बायोमेट्रिक नमूने अविवेकी तरीके से जमा करना अवैध है और यह अपने ही नागरिकों को कैदियों में बदल देगा।
सीएफसीएल ने कहा है कि केंद्र सरकार ने आधार (वित्तीय एवं अन्य अनुदानों, लाभों एवं सेवाओं की लक्षित आपूर्ति) विधेयक, 2016 को धन विधेयक के रूप में इसलिए पेश किया है क्योंकि इसे डर था कि नेशनल आईडेंटिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल,2010 की तरह इसे भी हार का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि ऐसा करना संविधान के साथ धोखा है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार सर्वोच्च न्यायालय में लगातार कहती रही है कि देश में आधार योजना स्वैच्छिक है और इसे जबरन लागू नहीं किया जा सकता। हालांकि देश में गैस सब्सिडी से लेकर हर तरह की सब्सिडी के लिए सरकार ने आधार को अनिवार्य बना दिया है और इस वर्ष बजट पेश करते समय भी केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार अब सब्सिडी का पूरी तरह नकद हस्तांतरण सुनिश्चित करेगी और इसके लिए आधार का इस्तेमाल किया जाएगा। उसी समय जेटली ने यह भी स्पष्ट किया था कि इसके लिए आधार को कानूनी जामा पहनाया जाएगा।
दूसरी ओर व्यक्तिगत स्वतंत्रता की हामी संस्थाएं लगातार देश के सभी नागरिकों के बायोमेट्रिक छाप लेने के खतरे के प्रति आगाह करती रही हैं और यह मुद्दा अब भी सर्वोच्च न्यायालय में है। दुनिया के कई देशों ने अपने यहां बायोमेट्रिक प्रणाली को लागू करने से कदम पीछे खींच लिए हैं। हालांकि अमेरिका ने इसे पूरी तरह अपने यहां लागू किया है।