केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सोमवार को मेघालय से पूरी तरह और अरुणाचल प्रदेश के आठ पुलिस स्टेशन से आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट (अफस्पा) को हटा लिया। इस कानून के तहत सुरक्षाबलों को विशेष अधिकार मिलते हैं, जिसका काफी समय से विरोध किया जाता रहा है। सितंबर 2017 तक मेघालय के 40 फीसदी क्षेत्र में अफस्पा लागू था।
गृहमंत्रालय के मुताबिक, राज्य में सुरक्षा के सुधारों को देखते हुए सरकार के साथ बातचीत के बाद अफस्पा को हटाने का फैसला लिया गया। इसी तरह अफस्फा अब अरुणाचल प्रदेश के केवल आठ पुलिस स्टेशनों में ही लागू है जबकि 2017 में यह 16 थानों में प्रभावी था।
गौरतलब है कि पिछले चार सालों में क्षेत्र में उग्रवाद से संबंधित घटनाओं में 63 फीसदी की गिरावट देखी गई है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, 2017 में नागरिकों की मौत में 83 फीसदी और सुरक्षा बलों के हताहत होने के आंकड़े में 40 फीसदी की कमी आई है। वर्ष 2000 से तुलना की जाए तो 2017 में पूर्वोत्तर में उग्रवाद संबंधी घटनाओं में 85 फीसदी की कमी देखी गई है। वहीं, 1997 की तुलना में जवानों की मौत का आंकड़ा भी 96 फीसदी तक कम हुआ है।
जानिए क्या है अफस्पा
भारतीय संसद ने आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट 1958 यानी अफ्सपा को लागू किया, जो एक फौजी कानून है। ये सेना को जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के विवादित इलाकों में सुरक्षा बलों को विशेष अधिकार देता है। इस एक्ट को लेकर काफी विवाद रहा है और इसके दुरुपयोग का आरोप लगाकर लंबे समय से इसे हटाने की मांग की जाती रही है। एक्ट की धारा चार सुरक्षाबलों को किसी भी परिसर की तलाशी लेने और बिना वॉरंट किसी को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है। इसके तहत विवादित इलाकों में सुरक्षाबल किसी भी स्तर तक शक्ति का इस्तेमाल कर सकते हैं। संदेह होने की स्थिति उन्हें किसी गाड़ी को रोकने, तलाशी लेने और उसे सीज करने का अधिकार होता है।
अफस्पा को 1 सितंबर 1958 को असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड सहित भारत के उत्तर-पूर्व में लागू किया गया था। पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए इस कानून को लागू किया गया था।1990 में अफ्सपा जम्मू-कश्मीर राज्य में लागू किया गया और तब से ये कार्यान्वित है। विभिन्न धार्मिक, नस्लीय, भाषा, क्षेत्रीय समूहों, जातियों, समुदायों के बीच मतभेद या विवादों के कारण राज्य या केंद्र सरकार एक क्षेत्र को 'डिस्टर्ब' घोषित करती हैं। (3) के तहत, राज्य सरकार की राय का होना ज़रूरी है कि क्या एक क्षेत्र 'डिस्टर्ब' है या नहीं। अगर ऐसा नहीं है तो राज्यपाल या केंद्र की ओर से इसे खारिज़ किया जा सकता है।