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अगस्ता वेस्टलैंडः राजनीतिक फिजां में आफत

अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे के मुद्दे ने देश की सियासत गरमा दी है। एक तरफ संसद से लेकर सियासी गलियारों में इसकी चर्चा है तो दूसरी ओर सीबीआई मुख्यालय में भी गहमागहमी मची हुई है।
अगस्ता वेस्टलैंडः राजनीतिक फिजां में आफत

 देश के इतिहास में यह पहली बार नहीं है कि इस प्रकार के सौदे को लेकर सियासत गरम हुई है। इससे पहले भी कई रक्षा सौदों ने सियासी भूचाल पैदा किया। ताजा मामला इटली की अदालत के फैसले के बाद हुआ। जिसमें कहा गया कि भारत के पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी दोषी हैं। मिलान अपील कोर्ट के फैसले के मुताबिक 2010 में भारत से हुई डील के लिए 65 से लेकर 100 करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में दिया गया। इसका कुछ हिस्सा भारतीय अधिकारियों को भी दिया गया। 3600 करोड़ रुपये की अगस्ता हेलीकॉप्टर डील का मामला पहली बार 12 फरवरी 2013 को अगस्ता वेस्टलैंड की पैरेंट कंपनी फिनमैस्केनिका के सीईओ ओर्सी की गिरफ्तारी के साथ सामने आया।

उसके बाद तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी ने जांच के आदेश दिए। 25 फरवरी को सीबीआई ने पूर्व वायुसेना प्रमुख त्यागी समेत 11 लोगों के खिलाफ जांच शुरू की। बाद में प्रवर्तन निदेशालय भी इस मामले की जांच में शामिल हो गया। जनवरी 2014 में यूपीए सरकार ने इस डील को रद्द कर दिया। लेकिन इटली की जांच एजेंसी ने इस मामले में जांच की और पूरा मामला कोर्ट को सौंप दिया। 7 अप्रैल 2016 को कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और ओर्सी को भ्रष्टाचार का दोषी घोषित करने के साथ ही चार साल की कैद की सजा सुना दी। सार्वजनिक रूप से उपलब्‍ध सूचना से एक बात तो साफ हो गई कि इसमें मूलभूत मामला भ्रष्टाचार का है।

कोर्ट के 225 पेज के फैसले के संलग्न में चार बार सिग्नोरा गांधी, दो बार मनमोहन सिंह का नाम है। इसके साथ ही ऑस्कर फर्नांडीस, तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायण का भी नाम आया है। लेकिन यह नाम किस संदर्भ में लिए गए हैं यह साफ नहीं है। इसी फैसले में 17 पेज का एक चैप्टर करप्टिंग मार्शल शशि त्यागी के नाम से है। जिसके आधार पर माना जा रहा है कि एसपी त्यागी दोषी हैं। हालांकि त्यागी ने अपनी सफाई में कहा है कि अगर वह दोषी हैं तो इस मामले में उस समय की पूरी सरकार दोषी है।

त्यागी पर आरोप है कि बतौर वायुसेना के मुखिया रहते हुए उन्होंने वीवीआईपी हेलीकॉप्टर की मैक्सिमम फ्लाईंग हाइट 6000 मीटर से घटाकर 4500 मीटर करने की अनुमति दी थी। डेढ़ हजार मीटर की फ्लाईंग हाइट कम करने से ही अगस्ता वेस्टलैंड को हेलीकॉप्टर का ठेका मिला था। अगर ऐसा नहीं होता तो अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी बोली में शामिल नहीं हो सकती थी। देश में रक्षा सौदों की खरीद की नई प्रक्रिया 2005 में शुरू हुई थी। तत्कालीन यूपीए सरकार ने 2005 में इंटीग्रेटी क्लॉज लागू किया था। इसे ईमानदारी का ञ्चलॉज भी कहते हैं। रक्षा सौदा करने वाले हर किसी को इस क्लॉज पर हस्ताक्षर करना होता है इसमें यह लिखा होता है कि किसी वक्त अगर यह पता चल जाए कि इसमें किसी दलाल का हाथ है तो वह सौदा रद्द हो जाएगा। साथ ही पैसा वापस कर दिया जाएगा और उस कंपनी से सभी संबंध तोड़ लिए जाएंगे और उसे ब्लैक लिस्टेड कर दिया जाएगा। लेकिन इतालवी कंपनी ने भी भारत को कहा था कि इस समझौते में कोई दलाल नहीं है। मामले की जो जांच इटली में हुई वह बताती है कि इसमें तीन दलाल थे। दो इतालवी और एक ब्रिटिश। आरोप है कि इन लोगों ने भारतीय अधिकारियों और कुछ अन्य प्रभावशाली लोगों को करोड़ों रुपये की रिश्वत दी।

मामले का खुलासा होने के बाद कांग्रेस और भाजपा के बीच वाक्युद्ध शुरू हो गया। कांग्रेस नेताओं का तर्क है यूपीए सरकार के समय मामला सामने आया। तब की सरकार ने इटली की कंपनी से सौदा रद्द किया और सीबीआई जांच के आदेश दिए। ऐसे में कांग्रेस के नेताओं पर भ्रष्टाचार का आरोप कैसे लग सकता है। वहीं भाजपा नेताओं का तर्क है कि इटली की अदालत ने रिश्वत देने वाले को दोषी करार दिया है तो रिश्वत लेने वाले चुप क्यों हैं? अगस्ता वेस्टलैंड कंपनी के प्रमुख ने कोर्ट के सामने यह स्वीकार किया था कि 3600 करोड़ की डील में लगभग 125 करोड़ रुपये शीर्ष नेताओं और नौकरशाहों को दिया गया। फैसले के बीच उन कागजों को भी संलग्न किया गया है जिसमें भारतीय नेताओं और नौकरशाहों का उल्लेख है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कुछ पत्रकारों का भी नाम इस मामले में सामने आ रहा है।

सूत्रों के मुताबिक अंग्रेजी मीडिया से जुड़े कुछ बड़े नाम इसमें शामिल हैं। केंद्र सरकार ने इस मामले में दिलचस्पी दिखाते हुए इटली में भारतीय दूतावास से फैसले की जानकारी मांगी है। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक इटली की अदालत का फैसला आने से पूर्व ही वर्तमान सरकार ने सच्चाई को उजागर करने के लिए कई कदम उठाए हैं और वह इस मामले में भ्रष्ट और अवैध काम करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हर संभव प्रयास करती रही है। 3 जुलाई 2014 को मोदी सरकार ने सीबीआई द्वारा दर्ज प्राथमिकी में नामित 6 कंपनियों मैसर्स अगस्ता वेस्टलैंड, मैसर्स फिनमैक्केनिका और उसकी सहयोगी कंपनियां, मैसर्स आईडीएस, मैसर्स इन्फोटेक डिजाइन, मैर्सर्स आईडीएस इन्फोटेक लिमिटेड और मैसर्स एयरोमैट्रिक्स के सभी प्रस्तावों पर रोक लगा चुकी है। इसके बाद से वर्तमान सरकार के कार्यकाल में इन कंपनियों से किसी तरह की नई पूंजीगत खरीद नहीं की गई है। हालांकि कांग्रेस का दावा है कि मौजूदा सरकार इन कंपनियों पर रोक के बावजूद सैन्य प्रदर्शनियों के साथ-साथ कई आयोजनों में शामिल कर चुकी है। सूत्रों का यह भी कहना है कि मामले में शामिल तीन विदेशियों कार्लो गेरोसा, गुइदो हैस्खे राल्फ और क्रिश्चियन मिशेल की गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण के पहलुओं पर जोर-शोर से अनुसरण कर रही है। इसी के तहत दिसंबर 2015 और जनवरी 2016 में मनी लांड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत इंटरपोल के माध्यम से रेड कॉर्नर नोटिस भी जारी किया गया है।

मिशेल ने दुबई के एक अखबार को दिए साक्षात्कार में कहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मामले की जानकारी देने की बात कही। लेकिन मिशेल को इस बात का डर है कि भारत आने पर उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। इसलिए वह लिखित आश्वासन चाहते हैं कि उनकी गिरफ्तारी न हो। मिशेल ने यह भी कहा कि वह किसी गांधी से नहीं मिले हैं।

उधर सीबीआई से मिली जानकारी के मुताबिक पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी से पूछताछ में कई अहम सुराग मिले हैं। सीबीआई के एक अधिकारी के मुताबिक शक की सुई त्यागी पर इसलिए गहरा गई है कि रिटायर होने के एक साल पहले क्रलोरेंस, मिलान और वेनिस क्या करने गए थे। इसके अलावा त्यागी के भाइयों का नाम भी मामले में सामने आ रहा है। सीबीआई ने पूर्व उप वायुसेना प्रमुख जेएस गुजराल से भी पूछताछ की है। इसके अलावा 100 से अधिक लोगों से इस मामले में पूछताछ की जा चुकी है। जिसमें पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी, वर्तमान महालेखाधिकार शशिकांत शर्मा, पूर्व एसपीजी प्रमुख बीवी वांचू, पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन, कैबिनेट सचिवालय के पूर्व सुरक्षा सचिव सुधीर कुमार, पूर्व आईजी एसपीजी एन रामचंद्रन जैसे नाम शामिल हैं।

हालांकि एमके नारायणन ने इस मामले में किसी प्रकार की संलिप्तता से इनकार किया है। एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में नारायणन ने कहा कि इस सौदे में उनकी कोई भूमिका नहीं थी जब उन्होंने साल 2010 में प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ा था तब तक रिश्वत की कोई बात नहीं थी।

लेकिन भाजपा नेता और मनोनीत राज्यसभा सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी गंभीर आरोप लगाते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश के कारण अगस्ता घोटाला किया गया। स्वामी ने संसद में भी सोनिया गांधी का नाम लेकर सियासी पारा गरमा दिया। कांग्रेस भी आक्रामक मुद्रा में जवाब दे रही है। पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी कहते हैं कि यूपीए सरकार ने ही इस मामले में जांच के आदेश दिए। जबकि दो साल से एनडीए की सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया। लेकिन वर्तमान रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर मामले में नया खुलासा करने की बात करते हैं। कांग्रेस ने भी इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार किया है। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद कहते हैं कि केंद्र सरकार अगस्ता के मामले में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को बदनाम करने में जुटी है। उन्होंने कहा कि सरकार को अगर मामले में दम लगता है तो जल्द की मामले की जांच कराए। आजाद के मुताबिक मोदी सरकार दो साल की अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए कांग्रेस को बदनाम करने में लगी और देश के लोगों को गुमराह कर रही है। वैसे रक्षा खरीद के मामले में क्वात्रोचि, विन चड्ढा से लेकर अदनान खशोगी, चंद्रास्वामी, अभिषेक शर्मा से लेकर कई नाम चर्चा में रहे। बहरहाल मामला कहां तक पहुंचता इसके बारे में कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी लेकिन रक्षा क्षेत्र के जानकारों को शंका है कि बोफोर्स की तरह ही यह मामला भी दब जाएगा और कौन दोषी है, कौन नहीं इसका पता चल पाना मुश्किल है क्योंकि जांच की जो गति होती है वह किसी निर्णायक स्तर पर पहुंचाने में समय लगाती है। आज देश के रक्षा सौदों का सबसे बड़ा सच यह है कि कोई भी सौदा होने में कई-कई साल लग जाते हैं और तब तक सरकारें बदल जाती हैं, लोग बदल जाते और सौदों का स्वरूप बदल जाता है। रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और रिटायर्ड मेजर जनरल अशोक मेहता आउटलुक से बातचीत में कहते हैं कि रक्षा सौदों में दलाली बहुत अहम हो गया है। वहीं पूर्व एयर कॉमोडोर और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत दीक्षित मानते हैं कि बोफोर्स का मुद्दा अब भी अनसुलझा है। जिस तरह मीडिया में बातें आती हैं हकीकत कुछ और होता हैं। दीक्षित के मुताबिक कहीं अगस्ता मामले का भी वही हश्र न हो जाए। 

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