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सॉलिसिटर जनरल ने कहा, मजदूर संकट पर सरकार की आलोचना करने वाले ‘कयामत के पैगंबर’

प्रवासी मजदूर संकट पर सरकार की आलोचना करने वालों को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ‘आराम कुर्सी पर...
सॉलिसिटर जनरल ने कहा, मजदूर संकट पर सरकार की आलोचना करने वाले ‘कयामत के पैगंबर’

प्रवासी मजदूर संकट पर सरकार की आलोचना करने वालों को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ‘आराम कुर्सी पर बैठे बौद्धिक’ और ‘कयामत का पैगंबर’ बताया है। उनका कहना है कि ये लोग सरकार के प्रयासों को मान्यता नहीं दे रहे और नकारात्मकता फैला रहे हैं। मेहता ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में यह टिप्पणी करते वक्त सरकार की आलोचना को देशभक्ति से भी जोड़ दिया। जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और एमआर शाह की बेंच प्रवासी मजदूरों से जुड़े मामले का स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई कर रही है। मेहता इसमें कोर्ट की मदद कर रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें कोर्ट से नहीं बल्कि उन चंद लोगों से शिकायत है जो इक्का-दुक्का घटनाओं पर आधारित मीडिया रिपोर्ट को गलत सूचना के रूप में फैला रहे हैं और इस संकट के दौर में भी नकारात्मकता को बढ़ावा रहे हैं। उन्होंने कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से उठाए गए कदमों की भी जानकारी दी।

सरकार के कामों को देशभक्ति से जोड़ा

मेहता ने कहा कि ये लोग हमारे देश में कयामत के पैगंबर हैं जो नकारात्मकता, और सिर्फ नकारात्मकता फैला रहे हैं। ये लोग हर बात को शक की निगाहों से देखते हैं। आराम कुर्सी पर बैठे ये बौद्धिक, संकट से निपटने में देश के प्रयासों को नहीं मानते, ये सोशल मीडिया पर बाल की खाल निकालते हैं, साक्षात्कार देते हैं, हर संस्थान के खिलाफ लेख लिखते हैं। इस तरह के लोग राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता भी नहीं जताते। संकट से निपटने के लिए जो काम किए जा रहे हैं उन्हें स्वीकार करने की देशभक्ति भी इनमें नहीं है।

" उकसावे के कारण पैदल चल रहे मजदूर "

मेहता ने कहा, “मैं चाहता हूं कि मेरी शिकायत को रिकॉर्ड पर लिया जाए। चंद घटनाओं को मीडिया में बार-बार दिखाया जाता है, कई बार एक छोटी सी घटना का मानव मस्तिष्क पर दीर्घकालिक असर होता है। सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं और कोर्ट भी पहले उन कदमों से संतुष्ट हो चुका है। राज्य सरकारें और मंत्री दिन रात काम कर रहे हैं। लेकिन आराम कुर्सी पर बैठे बुद्धिजीवियों को यह प्रयास नहीं दिखते।” मेहता ने बताया कि करीब एक करोड़ प्रवासी मजदूर अपने घर भेजे गए हैं। हालांकि कुछ मजदूर इसलिए नहीं जाना चाहते क्योंकि आर्थिक गतिविधियां दोबारा शुरू होने लगी हैं। मेहता के अनुसार मजदूर बेचैनी अथवा स्थानीय लोगों द्वारा उकसाए जाने के कारण पैदल जा रहे हैं। उनसे कहा जाता है कि लॉकडाउन बढ़ गया है, गाड़ियां नहीं चलेंगी इसलिए पैदल चले जाओ।

‘द वल्चर एंड द गर्ल’ फोटो का उद्धरण

सॉलिसिटर जनरल ने इस संदर्भ में द न्यूयॉर्क टाइम्स में 1993 में ‘द वल्चर एंड द गर्ल’ शीर्षक से प्रकाशित चर्चित फोटो का उद्धरण भी दिया और कहा कि 1994 में फोटो को पुलित्जर पुरस्कार मिला था, लेकिन 4 महीने बाद फोटोग्राफर एरिक कार्टर ने आत्महत्या कर ली थी। मेहता ने कहा कि कार्टर ने वह तस्वीर सूडान में 1993 में खींची थी, जब एक गिद्ध बच्ची के मरने का इंतजार कर रहा था। कार्टर एक्टिविस्ट नहीं था, वह कोई एनजीओ नहीं चलाता था, शायद वह अंतरात्मा वाला व्यक्ति था। एक पत्रकार ने उससे पूछा कि उस बच्ची का क्या हुआ, तो कार्टर ने जवाब दिया मैं नहीं जानता क्योंकि मुझे घर लौटना था। तब पत्रकार ने उससे पूछा कि वहां कितने गिद्ध थे इस पर कार्टर ने जवाब दिया कि एक ही था। इस पर रिपोर्टर ने उससे कहा कि नहीं, वहां दो गिद्ध थे, एक के हाथ में कैमरा था।

कोर्ट आने वाले पहले अपनी विश्वसनीयता स्थापित करें

मेहता ने कहा कि जो लोग कोर्ट आते हैं उन्हें पहले अपनी विश्वसनीयता स्थापित करनी चाहिए कि क्या उन्होंने प्रवासी मजदूरों पर एक रुपया भी खर्च किया है। सरकार के कार्यों की आलोचना करने वाले क्या कभी अपने एयरकंडीशंड घरों से निकल कर मजदूरों की मदद के लिए आगे आए हैं? मेहता ने कहा कि यह एक ट्रेंड बन गया है और कोर्ट को इसको रोकना चाहिए। एक ट्रेंड यह भी है कि चंद लोग तभी जजों को निष्पक्ष होने का सर्टिफिकेट देते हैं  जब वे कार्यपालिका की आलोचना करते हैं। मेहता के अनुसार स्थिति यह है कि अगर कोर्ट मेरिट के आधार पर किसी मामले की सुनवाई से इनकार करता है तो उसे एडीएम जबलपुर की संज्ञा दे दी जाती है, जो कोर्ट की प्रतिष्ठा पर एक धब्बा है। 1976 में एडीएम जबलपुर मामले में सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की बेंच ने 4-1 के बहुमत से फैसला दिया था कि संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के सभी अधिकारों और स्वतंत्रता का एकमात्र निधान है, और इसे निलंबित करने का मतलब उन अधिकारों को छीन लेना है।

हाई कोर्ट ऐसे आदेश पारित कर रहे जैसे समानांतर सरकार चला रहे हैं

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि जो लोग स्वतः संज्ञान के इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहते हैं उन्हें गिद्ध और बच्ची की कहानी को ध्यान में रखते हुए कोर्ट को बताना चाहिए कि उन्होंने क्या योगदान किया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि संस्थान का हिस्सा रहे लोगों को अगर लगता है कि वे संस्थान को नीचे गिरा सकते हैं तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है। जस्टिस कौल ने कहा कि हम अपनी अंतरात्मा की आवाज पर काम करेंगे। मेहता ने आरोप लगाया कि कुछ हाई कोर्ट भी इस तरह काम कर रहे हैं और आदेश पारित कर रहे हैं जैसे वे समानांतर सरकार चला रहे हों। आराम कुर्सी पर बैठे बुद्धिजीवी इस तरह के कोर्ट की वाहवाही कर रहे हैं।

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