अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (एआईसीसीटीयू) के सदस्यों ने केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में आज आहूत 'भारत बंद' के तहत जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (सीटीयू) द्वारा 'भारत बंद' का आह्वान किया गया है। इसका असर दिल्ली से लेकर केरल तक देखने को मिल रहा है। कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया है।
दिल्ली-एनसीआर में कई ट्रेड यूनियनों ने सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन किया है तो वहीं केरल और तमिलनाडु में भी ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ता सड़कों पर हैं।
टीएमसी नेताओं और ट्रेड यूनियन के सदस्यों में झड़प
बुधवार को नक्सलबाड़ी में 'भारत बंद' को लेकर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सदस्यों और ट्रेड यूनियन नेताओं के बीच झड़प हो गई।
पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के ट्रेड यूनियनों ने 'भारत बंद' का आयोजन किया है और आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ऐसे आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ा रही है जो श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं।
कोलकाता में पुलिस से भिड़े प्रदर्शनकारी
कोलकाता में चल रहे 'भारत बंद' के विरोध प्रदर्शन के बीच कोलकाता पुलिस कर्मियों और वामपंथी दलों के ट्रेड यूनियनों के सदस्यों के बीच मौखिक टकराव हुआ।
विरोध प्रदर्शन के दौरान, श्रमिकों ने केंद्र की आर्थिक नीतियों के खिलाफ अपने आंदोलन के हिस्से के रूप में "इंकलाब जिंदाबाद" के नारे लगाए और टायर जलाए, जिनके बारे में उनका आरोप है कि ये नीतियां श्रमिक विरोधी हैं।
ओडिशा में भी दिखा बंद का असर
ओडिशा में, भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीआईटीयू) की खोरधा जिला इकाई के सदस्यों ने 'भारत बंद' का समर्थन करने के लिए भुवनेश्वर में राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया। विपक्षी कांग्रेस और बीजू जनता दल (बीजद) ने ट्रेड यूनियनों के विरोध प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया है।
प्रदर्शनकारियों ने विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शन किया और भुवनेश्वर, कटक, बरगढ़, भद्रक, बालासोर, बोलनगीर और संबलपुर में राष्ट्रीय राजमार्गों सहित कई सड़कों को अवरुद्ध कर दिया।
भुवनेश्वर में ईंधन स्टेशन बंद रहे क्योंकि ट्रेड यूनियन के सदस्यों ने पेट्रोल पंपों के सामने धरना दिया। हालांकि भुवनेश्वर, कटक और कुछ अन्य शहरों में कार्यालय और शैक्षणिक संस्थान सामान्य रूप से काम कर रहे हैं।
केरल भी पूरी तरह दिखा बंद!
केरल में, 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत 'भारत बंद' के समर्थन में कोट्टायम में दुकानें और शॉपिंग मॉल बंद रहे। राज्य में दुकानें, कार्यालय और स्कूल बंद रहे, सार्वजनिक वाहन सड़कों से नदारद रहे और सड़कें सुनसान रहीं।
मंगलवार मध्य रात्रि से हड़ताल शुरू होने के बाद, शहरों, कस्बों और गांवों में माकपा शासित दक्षिणी राज्य में पूर्ण बंद का माहौल है। राज्य की सड़कों पर केवल निजी वाहन ही चलते दिखे और कई स्थानों पर लोग बस स्टैंडों और रेलवे स्टेशनों पर फंसे रहे।
ऐसे कई क्षेत्रों में पुलिसकर्मी उनकी सहायता के लिए आए और उन्हें सरकारी वाहनों से अस्पतालों सहित उनके गंतव्यों तक पहुंचाया। विभिन्न ट्रेड यूनियनों से जुड़े प्रदर्शनकारियों ने राज्य भर में केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए मार्च निकाला और चलने की कोशिश कर रही बसों और ऑटो को रोक दिया।
आंदोलनकारियों ने सुबह कोच्चि और कोल्लम में केरल राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) की बसों की सेवा बाधित कर दी और इसके कर्मचारियों के साथ बहस की।
पुडुचेरी में भी हालात लगभग बंद जैसे
चार नए श्रम संहिताओं सहित केंद्र सरकार की नीतियों के विरोध में 10 ट्रेड यूनियनों द्वारा आहूत राष्ट्रव्यापी हड़ताल के कारण बुधवार को पुडुचेरी में निजी बसें, ऑटो और टेम्पो सड़कों से नदारद रहे।
एक सूत्र ने बताया कि निजी स्कूलों के प्रबंधन ने एहतियात के तौर पर अवकाश घोषित कर दिया है। दुकानें, प्रतिष्ठान, सब्जी और मछली बाजार बंद रहे।
बिहार में भारत बंद को राजेडी का समर्थन
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की छात्र शाखा के सदस्यों ने 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों और उनके सहयोगियों के संयुक्त मंच द्वारा आहूत 'भारत बंद' का समर्थन करते हुए बिहार के जहानाबाद रेलवे स्टेशन पर रेल की पटरियां अवरुद्ध कर दीं।
'बंद' के तहत राज्य संचालित सार्वजनिक परिवहन, सरकारी कार्यालय, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां, बैंकिंग और बीमा सेवाएं, डाक परिचालन, कोयला खनन और औद्योगिक उत्पादन जैसे क्षेत्र प्रभावित होने की संभावना है।
क्यों किया गया भारत बंद का ऐलान?
ट्रेड यूनियनों ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ऐसे सुधार लागू कर रही है जो श्रमिकों के अधिकारों को कमजोर करते हैं।
यूनियनों की मांगों में चारों श्रम संहिताओं को खत्म करना, ठेकाकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण, न्यूनतम मजदूरी बढ़ाकर 26,000 रुपये प्रति माह करना, साथ ही किसान संगठनों की मांगें हैं कि फसलों के लिए स्वामीनाथन आयोग के सी2 प्लस 50 प्रतिशत के फार्मूले के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाए तथा किसानों के लिए ऋण माफी की जाए।
भाग लेने वाले संगठनों में कांग्रेस (इंटक), अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक), हिंद मजदूर सभा (एचएमएस), भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू), अखिल भारतीय संयुक्त ट्रेड यूनियन केंद्र (एआईयूटीयूसी), ट्रेड यूनियन समन्वय केंद्र (टीयूसीसी), स्व-नियोजित महिला संघ (सेवा), अखिल भारतीय केंद्रीय ट्रेड यूनियन परिषद (एआईसीसीटीयू), लेबर प्रोग्रेसिव फेडरेशन (एलपीएफ) और यूनाइटेड ट्रेड यूनियन कांग्रेस (यूटीयूसी) शामिल हैं।
एक संयुक्त बयान में, यूनियन फोरम ने पिछले एक दशक से वार्षिक श्रम सम्मेलन आयोजित न करने के लिए सरकार की आलोचना की।
उन्होंने संसद में पारित चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन का भी विरोध किया, तथा आरोप लगाया कि सरकार का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करना, यूनियन गतिविधियों को कमजोर करना तथा 'व्यापार करने में आसानी' के नाम पर नियोक्ताओं को लाभ पहुंचाना है।
ट्रेड यूनियन ने सरकार की आर्थिक नीतियों की भी आलोचना की और कहा कि इनके कारण बेरोजगारी, आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में मुद्रास्फीति, मजदूरी में गिरावट, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी नागरिक सुविधाओं पर सामाजिक क्षेत्र के व्यय में कमी आई है।
इसमें कहा गया, "पिछले 10 वर्षों से सरकार भारतीय श्रम सम्मेलन आयोजित नहीं कर रही है और लगातार श्रमिकों के हितों के खिलाफ फैसले ले रही है। चार श्रम संहिताओं को लागू करने के प्रयासों का उद्देश्य सामूहिक सौदेबाजी को कमजोर करना, यूनियन गतिविधियों को पंगु बनाना और 'व्यापार करने में आसानी' के नाम पर नियोक्ताओं को लाभ पहुंचाना है। सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण बेरोजगारी बढ़ रही है, आवश्यक वस्तुओं की महंगाई बढ़ रही है, मजदूरी में गिरावट आ रही है, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी नागरिक सुविधाओं पर सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कमी आ रही है।"
बयान में कहा गया है, "इससे गरीबों, निम्न आय वर्ग और यहां तक कि मध्यम वर्ग के लिए असमानता और दुख बढ़ रहा है।"
'भारत बंद' के माध्यम से यूनियनें स्वीकृत पदों पर भर्ती, कार्य दिवसों में वृद्धि और मनरेगा की मजदूरी की मांग कर रही हैं।
संयुक्त बयान में कहा गया है, "हम मांग कर रहे हैं कि सरकार बेरोज़गारी की समस्या का समाधान करे, स्वीकृत पदों पर भर्ती करे, ज़्यादा रोज़गार पैदा करे, मनरेगा के कार्यदिवस और मज़दूरी बढ़ाए और शहरी क्षेत्रों के लिए भी ऐसा ही कानून लागू करे। लेकिन इसके बजाय, सरकार ईएलआई योजना लागू करने में लगी हुई है, जिसका फ़ायदा सिर्फ़ नियोक्ताओं को ही मिलता है।"