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एससी एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर कलराज मिश्र ने जताई असहमति, फीडबैक लेकर बदलाव लाने की मांग की

भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र का अनुसूचित जाति-जनजाति...
एससी एसटी एक्ट में बदलाव को लेकर कलराज मिश्र ने जताई असहमति, फीडबैक लेकर बदलाव लाने की मांग की

भारतीय जनता पार्टी से लोकसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र का अनुसूचित जाति-जनजाति अधिनियम यानि एससी-एसटी एक्ट पर मौजूदा केंद्र सरकार के रुख से इतर एक बड़ा बयान दिया है। भाजपा सांसद ने एक टीवी चैनल को दिए गए इंटरव्यू में कहा है कि हकीकत में एससी-एसटी एक्ट का दुरूपयोग हो रहा है। उन्होंने कहा कि वे कानून के ख़िलाफ़ हैं  लेकिन ज़मीन पर लोगों के अंदर असमानता का भाव पैदा हो रहा है। अधिकारी भी डर रहे हैं कि अगर मुकदमा दर्ज़ नहीं हुआ तो कार्रवाई हो जाएगी। कलराज मिश्र ने आगे कहा कि इस एक्ट के तहत फ़र्ज़ी मुकदमों में लोगों को गिरफ़्तार किया जा रहा है। भाजपा सांसद का मानना है कि इस मामले में सभी दलों ने सरकार पर दबाव डालकर इसे बनवाया गया है, अब सभी दल मिलकर ज़मीन से फ़ीडबैक लेकर इसमें बदलाव कराएं।

जब उनसे पूछा गया कि सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को क्यों पलटा तो उन्होंने कहा कि यह सभी दलों के दवाब के कारण किया गया। भाजपा सांसद ने अनुसार जब जीएसटी कानून में बदलाव हो सकते हैं तो इस मामले में फीडबैक लेकर बदलाव करने में क्या परेशानी है।

वहीं सोशल जस्टिस एंड एम्पॉवरमेंट में राज्य मंत्री विजय साम्पला ने सरकार का पक्ष रखते हुए कहा “यह किसी का व्यक्तिगत मत हो सकता है। संसद में सभी नें इसके समर्थन में मत दिया था। किसी एक के विचार मायने नहीं रखते।“

भाजपा में दूसरा पक्ष;
हालांकि भाजपा अनुसूचित जाति से आने वाले सांसद उदित राज ने कुछ समय पहले उच्चतम न्यायालय के फैसले को लेकर कहा था कि इसके बाद के बाद दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में वृद्धि हुई है, क्योंकि अब कोई डर नहीं रह गया है। यानि उदित राज न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले ने नाखुश थे। वहीं अब कलराज मिश्र उनके विचारों के एकदम विपरीत खड़े हुए हैं।

क्या था मामला;
-उच्चतम न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एससी-एसटी ऐक्ट में तत्काल गिरफ्तारी न किए जाने का आदेश दिया था। इसके अलावा एससी-एसटी ऐक्ट के तहत दर्ज होने वाले मामलों में अग्रिम जमानत को भी मंजूरी दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि इस कानून के तहत दर्ज मामलों में ऑटोमेटिक गिरफ्तारी की बजाय पुलिस को 7  दिन के भीतर जांच करनी चाहिए और फिर आगे ऐक्शन लेना चाहिए। यही नहीं शीर्ष अदालत ने कहा था कि सरकारी अधिकारी की गिरफ्तारी अपॉइंटिंग अथॉरिटी की मंजूरी के बिना नहीं की जा सकती।
-ऐक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी, न्यायालय ने याचिका खारिज की।
-सरकार ने संसद के माध्यम से कानून बनाया और उच्चतम न्यायालय द्वारा किए गए बदलावों को निष्प्रभावी कर दिया।

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