केंद्र की कर्मियों प्रबंधन नीतियों पर उठते सवालों के बीच, विशेष आयुक्त (सतर्कता) बालाजी श्रीवास्तव को 30 जून को दिल्ली पुलिस आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। ऐसा लगातार दूसरी बार है जब किसी वरिष्ठ अधिकारी को स्थायी नियुक्ति के बदले दिल्ली पुलिस का अतिरिक्त आयुक्त का प्रभार सौंपा गया है।
इससे पहले सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने फरवरी 2020 में नियुक्ति के बाद अतिरिक्त प्रभार के रूप में पद संभाला था। इसी दौरान राजधानी में हाल के सालों के सबसे हिंसात्मक सांप्रदायिक दंगे हुए थे। उनकी सेवानिवृत्ति से बमुश्किल एक महीने पहले, मई में ही उन्हें दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के रूप में नियमित किया गया था।
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि टॉप पुलिस अधिकारियों को ठंडे बस्ते में रखने या इंतजार कराने की ये नीति न सिर्फ बहुत अधिक अनियमित है, बल्कि अयोग्य भी है। ये महत्वपूर्ण पदों के प्रभारी अधिकारियों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा करता है और शायद सरकार की ओर से जानबूझकर ऐसा किया जाता है।
वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी, जो राज्य पुलिस बल के महानिदेशक के रूप में सेवानिवृत्त हैं, कहते हैं, “इससे सरकार के लिए मौजूदा और संगठन पर नियंत्रण करना आसान हो जाता है। यह सरकार को मजबूती से नियंत्रण करने में आसानी प्रदान करता है।”
वो दिल्ली पुलिस के नए प्रमुख की नियुक्ति करने को लेकर केंद्र द्वारा जारी अधिसूचना का हवाला देते हैं - "बालाजी श्रीवास्तव नियमित पदधारी की नियुक्ति तक या अगले आदेश तक अपने नियमित प्रभार के अलावा दिल्ली के पुलिस आयुक्त का अतिरिक्त प्रभार संभालेंगे, इनमें से जो भी पहले हो।”
कार्मिक एवं ट्रेनिंग डिपार्टमेंट (डीओपीटी) ने भी सीबीआई निदेशक की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले नियमों में चुपचाप बदलाव किया है। इसने नए निदेशक के कार्यकाल को मनमाने ढंग से बदल दिया, जिसमें "अगले आदेश तक" शब्दों को इंगित कर दिया गया है। पहले ये कार्यकाल न्यूनतम दो वर्ष का हुआ करता था। डीओपीटी द्वारा 25 मई को जारी किए गए पत्र में कहा गया है, "मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति ने पैनल द्वारा सिफारिश के आधार पर, श्री सुबोध कुमार जायसवाल, आईपीएस (एमएच:1985) को सीबीआई के निदेशक के रूप में पदभार ग्रहण करने की तारीख से दो साल की अवधि के लिए या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, नियुक्ति को मंजूरी दे दी है।
इस कदम के जरिए केंद्र द्वारा सीबीआई प्रमुख को नियंत्रण में रखने के तरीके के रूप में देखा जा रहा है। यह सीबीआई के पूर्व निदेशक आलोक वर्मा से जुड़े विवाद से शुरू हो सकता है, जिन्हें उनके कार्यकाल समाप्त होने से पहले ही उनकी शक्तियों से वंचित कर दिया गया था और उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। संभवत: यही कारण है कि केंद्र सीबीआई प्रमुख के कार्यकाल को सीमित करने का विकल्प खुला रखना चाहता है।
सुरक्षा से जुड़े आठ अहम पद ऐसे हैं जो बिना चीफ प्रमुख की नियुक्ति के खाली पड़े हैं। इनमें सीआईएसएफ, एनआईए, बीसीएएस, सिविल डिफेंस एंड होम गार्ड्स, ब्यूरो ऑफ पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट (बीपीआरएंडडी), एनसीबी और गृह मंत्रालय में सचिव (सुरक्षा) शामिल हैं। रेलवे सुरक्षा बल के डीजी का पद कल 30 जून को खाली हो गया। राकेश अस्थाना 31 जुलाई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं तब बीएसएफ प्रमुख का पद भी खाली हो जाएगा। पूर्व डीजीपी कहते हैं, “सरकार इसे कैसे समझा सकती है? किसी भी संगठन में एक प्रमुख से दूसरे प्रमुख के रूप में परिवर्तित करना सहज माना जाता है। खाली हो रहे पद पर समय रहते अग्रिम रूप से नए अधिकारी को चुना जाता है। लेकिन ऐसा नहीं किया जा रहा है।”