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चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने खेती-किसानी को सियासत से जोड़ा

भारतीय राजनीति में खेती-किसानी के मुद्दे इस समय प्रमुख रुप से उभर कर सामने आ रहे हैं। हाल ही में हुए...
चौधरी चरण सिंह, जिन्होंने खेती-किसानी को सियासत से जोड़ा

भारतीय राजनीति में खेती-किसानी के मुद्दे इस समय प्रमुख रुप से उभर कर सामने आ रहे हैं। हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में राजनीतिक पार्टियां किसानों को आकर्षित करती नजर आईं। लेकिन किसानों के मसले हमेशा इस तरह नहीं उठते रहे हैं। कहा जाता है कि कृषि और किसान को राजनीति के केन्द्र में लाने का काम पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने किया। गांव, गरीब और किसानों के लिए वे मसीहा थे। किसान घर में जन्मे और ताउम्र किसानों की लड़ाई लड़ते रहे। उन्होंने समाज के उस वर्ग को आवाज दी जो शोषित और उपेक्षित था और जिसकी कोई लॉबी नहीं थी।

आज का दिन यानी 23 दिसंबर उन्हीं किसानों को समर्पित है जो भारत की अर्थव्यवस्था के आधार कहे जाते हैं। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह आज के दिन ही पैदा हुए थे। वह किसानों के हितैषी थे इसलिए उन्हीं के सम्मान में 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाते हैं।

चौधरी चरण सिंह कहा करते थे कि देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है। इसीलिए लोग मानते रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है।

चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने 1923 में विज्ञान से स्नातक की एवं 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। कानून में प्रशिक्षित श्री सिंह ने गाजियाबाद से अपने पेशे की शुरुआत की। वे 1929 में मेरठ आ गये और बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए।

राजनीतिक सफर

चौधरी सबसे पहले 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए एवं 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया एवं न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार दिया गया। बाद में 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।

सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह एवं कृषि मंत्री (1960) थे। सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में वे कृषि एवं वन मंत्री (1962-63) रहे। उन्होंने 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।

चौधरी चरण सिंह, श्रीमती इंदिरा गाँधी तथा बेग़म अली ज़हीर

कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी 1970 में दूसरी बार वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि राज्य में 2 अक्टूबर 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।

सन् 1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया। केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की।

सन् 1979 में वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में चोधरी ने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की। बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच मतभेद हो गया। 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने।

चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा। महज पांच महीने में उन्हें पद छोड़ना पड़ा। वो एक दिन भी संसद का सामना नहीं कर पाए।

ऐसे बने किसानों की आवाज

चौधरी चरण सिंह के द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। उनकी कोशिशों के बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋणमुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके। उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखी जिसमें ‘जमींदारी उन्मूलन’, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान’, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ डिवीजन ऑफ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम’, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद्’ आदि प्रमुख हैं।

निधन के वक्त खाते में सिर्फ 470 रूपये

चौधरी चरण सिंह के बारे में कहा जाता है कि वो मामूली सी एंबेसडर कार में चला करते थे। वो जहाज पर उड़ने के खिलाफ थे और प्रधानमंत्री होने के बावजूद लखनऊ ट्रेन से जाया करते थे। अगर घर में कोई अतिरिक्त बल्ब जला हुआ है तो वो डांटते थे कि इसे तुरंत बंद करो। किसान-मजदूरों के दिल में चौधरी चरण सिंह की अमिट यादें हैं। ईमानदारी उनकी बड़ी पहचान रही, यही वजह है कि जिस दिन उनका निधन हुआ तब उनके खाते में सिर्फ 470 रुपये थे।  

 

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