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मोदी की हिंदी पाठशाला

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने गैर हिंदी भाषी सांसदों को हिंदी सिखाने जा रहे हैं। इसके लिए बाकायदा विशेषज्ञों की सेवाएं ली जाएंगी और सप्ताहंत में कक्षाएं लगेंगी। अ से अनार और आ से आम सीखने के लिए कुछ सांसद राजी हैं तो कुछ ‘स्कूल’ आना नहीं चाहते
मोदी की हिंदी पाठशाला

‘मित्रों’ अगर अब तक आपको लगता है कि अंग्रेजी ‘पॉवर लैंग्वेज’ है तो जरा दोबारा सोचिए। गृह मंत्रालय जल्द ही अपने 30 माननीयों यानी सांसदों के लिए भाषा विशेषज्ञों की सेवाएं लेने जा रहा है जो इन्हें हिंदी सिखाएंगे। यह सांसद गैर हिंदी भाषी राज्यों के हैं। इनमें से ज्यादातर तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के हैं। मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स (एमएचए) केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान (सीएचटीआई) से विशेषज्ञों को बुलाएगा जो 24 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच सांसदों को हिंदी पढ़ाएंगे।

यह हिंदी प्रेम जागने के पीछे मोदी का सदन में हिंदी में धाराप्रवाह बोलना और राजनाथ के शुद्ध हिंदी में दिए गए भाषण हैं। सदन के एक अधिकारी ने कहा कि सांसद दोनों के ही भाषण के हेडफोन पर अनुवाद सुनने के बजाय इसे हिंदी में ही समझना चाहते हैं।

सीएचटीआई के निदेशक जय प्रकाश कदम ने बताया, ‘इस कार्यक्रम को विशेष तौर पर बनाया गया है। हर व्याख्यान एक घंटे का होगा और हम शनिवार-रविवार को कक्षाएं लेंगे।’

जिन सांसदों ने इस ‘हिंदी पाठशाला’ में आने की अनुमति दी है, उनमें कांग्रेस के विरष्ठ नेता केवी थॉमस, बीजू जनता दल की रीता तराई, तृणमूल कांग्रेस के तापस मंडल, सीपीआई(एम) के शंकर दत्ता, और टीआरएस के विनोद कुमार हैं। लेकिन राज्यसभा में द्रविड मुनेत्र कषगम के सांसद केपी रामालिंगम इस से असहमत हैं। उनका कहाना है मोदी का एक ही भाषा को बढ़ावा देना गलत है। उन्हें केवल हिंदी को बढ़ावा नहीं देना चाहिए। यह जनता के पैसे का दुरपयोग है।

हालांकि तापस मंडल ने माना कि उन्हें संसद के कामकाज को समझने में दिक्कत आती है, क्योंकि यहां ज्यादार काम काज हिंदी में होता है।

बहरहाल मुद्दा जो भी हो पर लगता है इस बार बात हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़े से आगे जाएगी।  

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