सैलिएन ने कहा, मैं चौंक गई जब मुझसे ऐसा सवाल किया गया। अदालत के कर्मियों ने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास उन छह-सात अहम गवाहों की ओर से मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज कराए गए बयान वाले दस्तावेज हैं। उन्होंने बताया, मैंने उन्हें कहा कि एनआईए अधिकारियों की मौजूदगी में सारे दस्तावेज नए विशेष लोक अभियोजक अविनाश रासल को सौंप दिए गए थे और ऐसे भी सारे मूल दस्तावेज तो अदालत में ही थे।
जिन गवाहों के बयान गायब बताए जा रहे हैं उनमें रामजी कलसांगरा के एक करीबी सहयोगी का भी बयान शामिल है जिसने एक मजिस्ट्रेट के सामने कबूल किया था कि महाराष्ट्र के मालेगांव में विस्फोटक रखने के लिए आपराधिक साजिश रची गई थी। गौरतलब है कि 29 सितंबर, 2008 को हुए दो कम तीव्रता वाले बम धमाकों में सात लोग मारे गए थे। मामले की जांच सबसे पहले महाराष्ट्र एटीएस ने शुरू की। फिर जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया गया और 2011 में यह जिम्मेदारी एनआईए को दे दी गई। एनआईए ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और भारतीय थलसेना के अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित सहित एक दर्जन आरोपियों को गिरफ्तार किया था।
बहरहाल, रासल ने कहा कि फाइलें गायब नहीं हैं और हो सकता कि वे इधर-उधर रख दी गई हों। हम उनकी तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि दस्तावेज नहीं मिल पाते हैं तो एनआईए अदालत की अनुमति लेकर उन्हीं बयानों की फोटो प्रति कराएगी और उन्हें द्वितीयक प्रमाण के तौर पर इस्तेमाल करेगी। हालांकि, सैलिएन ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए बयान हमेशा प्राथमिक सबूत होते हैं और फाइलों के गायब होने से केस पर असर पड़ सकता है।