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'गौरी लंकेश! ये स्वर्गादपि गरीयसी भूमि हत्यारों की भी है'

लेखकों, साहित्यकारों ने इस घटना को पंसारे, कलबुर्गी और दाभोलकर की हत्या की तरह ही असहमति के खिलाफ हिंसा का नाम दिया है।
'गौरी लंकेश! ये स्वर्गादपि गरीयसी भूमि हत्यारों की भी है'

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की बंगलुरु में मंगलवार को गोली मारकर हत्या कर दी गई। कट्टरपंथियों के खिलाफ लिखने वाली लंकेश की इस हत्या की चौतरफा निंदा हो रही है। देश के साहित्यकार, लेखक, नेता, समाजिक कार्यकर्ता सभी इस इस हत्या के खिलाफ एकजुट होकर देश के अलग-अलग हिस्सो में प्रदर्शन कर रहे हैं और अपना गुस्सा प्रकट कर रहे हैं।

लेखकों, साहित्यकारों ने इस घटना को पंसारे, कलबुर्गी और दाभोलकर की हत्या की तरह ही असहमति के खिलाफ हिंसा का नाम दिया है। आइए जानते हैं इस घटना पर साहित्यकारों ने क्या कहा-

मंगलेश डबराल

“फासिस्ट आतंकवाद की गोलियों से एक और शहीद. दाभोलकर, पानसरे और कलबुर्गी के बाद चौथा शिकार। गौरी लंकेश कन्नड़ के प्रख्यात लेखक पी लंकेश की बेटी और निर्भीक, दक्षिणपंथ-विरोधी वरिष्ठ पत्रकार थीं।”

गौरी लंकेश के बारे में लेखक मंगलेश डबराल ने बीबीसी से कहा, "उनकी हत्या यकीनन विचारधारा के कारण हुई है। वो पिछले दो साल से दक्षिणपंथी ताकतों के निशाने पर थीं। और अंतत: वो उनकी हत्या करने में सफल हुए। अपने पिता पी लंकेश की तरह ही वो भी एक निर्भीक पत्रकार थीं। कन्नड़ पत्रकारिता और साहित्यिक पत्रकारिता में उनकी 'लंकेश पत्रिका' की प्रमुख भूमिका रही। पिछले दो सालों से उनको अनेक तरह की धमकियां दी जा रही थीं। गौरी ने बार-बार लिखा कि मैं एक सेकुलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी तरह की धार्मिक कट्टरता के खिलाफ हूं।"

उर्मिलेश

“तुम उनसे असहमत हो और उनकी आलोचना करने का 'दुस्साहस' भी करते हो तो पहले वे तुम पर तमाम तोहमत लगायेंगे। इसके बाद भी तुम खामोश नहीं हुए तो वे तुम्हें कोर्ट-कचहरी में उलझायेंगे और इसके बाद भी तुम नहीं झुके तो वे वही करेंगे, जो उन्होंने प्रो कलबुर्गी, दाभोलकर, पानसरे और गौरी लंकेश को रास्ते से हटाने के लिए किया। एक समय जर्मनी, इटली सहित दुनिया के अनेक मुल्कों में यह आफत आई। पर लोगों ने उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। और अंततः जीती। भारत को भी लड़ना होगा। और कोई विकल्प नहीं!”

 

जगदीश्वर चतुर्वेदी

“गौरी लंकेश की हत्या करके वे प्रतिवाद करने वालों को भयभीत करना चाहते हैं। हम इस हत्याकांड की निंदा करते हैं। गौरी लंकेश को सच्ची श्रद्धांजलि तो यही होगी कि हम सब निडर होकर लोकतंत्र के पक्ष में लिखें और बोलें।”

जावेद अख्तर

“इस घटना पर रोष प्रकट करते हुए गीतकार जावेद अख्तर ने सवाल उठाया है, “कलबुर्गी,पंसारे, दाभोलकर, और अब गौरी लंकेश यदि एक तरह के लोग मारे जा रहे हैं तो किस प्रकार के लोग हत्यारे हैं?”

विष्णु नागर

“गौरी लंकेश के हत्यारे कांग्रेस के राज में पकड़े जा सकेंगे, इसमें संदेह है लेकिन सब जानते हैं कि वे कौन हो सकते हैं।अखबारों में इसके संकेत स्पष्ट हैं।हत्यारे और हत्या के पीछे की असली ताकतें नहीं जानतीं कि हत्याओं से फासिस्ट ताकतों से लड़ने का संकल्प कमजोर नहीं बल्कि मजबूत होता है।हत्यारों के प्रमोटर अपने एजेंडे के खिलाफ खुद गड्ढा खोद रहे हैं,खोदें,हम लड़ने को तैयार हैं और हत्या और डराना हमारा एजेंडा नहीं है, न हो सकता है।”

 

 प्रिय दर्शन

"उन्होंने हत्या का माहौल बनाया, उन्होंने हत्या पर दुख जताया, उन्होंने हत्या की निंदा की, उन्होंने दिवंगत को श्रद्धांजलि दी, उन्होंने कार्रवाई का भरोसा दिलाया, उन्होंने फिर याद दिलाया कि पहले भी हत्याएं हुई हैं, उन्होंने इसे ख़ुद को बदनाम करने की साज़िश बताया, उन्होंने पुरस्कार वापस करने वाले लेखकों पर ताने कसे, उन्होंने उन्हें गैंग करार दिया, वे धीरे-धीरे हत्यारों के साथ खड़े हो गए। उन्होंने जनता से वादा किया कि वे 'न्यू इंडिया' बनाएंगे। (हत्यारे इन सबके बीच छुपे रहे, वे अपने हथियार पैने करते रहे, अपनी सूची पक्की करते रहे, अगले शिकार तय करते रहे, अपने संरक्षकों को सलामी देते रहे और कसम खाते रहे कि जो भी देश और धर्म की राह में आएगा, उसे मार डालेंगे। कभी-कभी उनकी आंखों में एक पवित्र पश्चाताप चमकता था।)"

त्रिभुवन

"ये स्वर्गादपि गरीयसी भूमि हत्यारों की भी है, गौरी लंकेश!


वे मर्डरर हैं। वे मॉन्स्टर नहीं हैं। वे इन्सान हैं। यही बात सबसे ख़तरनाक़ है। लेकिन यह तब और घृणित हो जाती है जब वे किसी धर्म या विचारधारा विशेष के आवरण में लिपटे होते हैं। इससे भी ख़तरनाक़ वे तब हो जाते हैं, जब वे इस पर न्याय का एक और आवरण ओढ़ लेते हैं।

वे सिंह बनकर दहाड़ने की कोशिश करते हैं। लेकिन उनकी देह पर शेर की खाल ओढ़ी हुई होती है और सिर, जिसे वे शेर का समझते हैं, दरअसल सियार का होता है। हुआं-हुआं करता हुआ, जिसे वे दहाड़ समझते हैं। वे मॉन्स्टर नहीं हैं, लेकिन इनके सीने पर एक त्रिजटा, तारका और शूर्पणखा की छातियां लगी होती हैं, जिन से सतत कालकूट विष प्रवाह होता है।

लेकिन साहस हत्या करके भागते हुए, छिपते हुए और झूठ पर झूठ गढ़ते हुए हत्यारे के साथ नहीं होता। वह खून से लथपथ देह के साथ लिपटा होता है। आत्मा की तरह कभी न गलाया जा सकने वाला, कभी न भिगोया जा सकने वाला और कभी न सुखाया जा सकने वाला। आत्मा की तरह अजर और अमर साहस।

यह साहस मेरे, तुम्हारे और सबके सीनों में प्रज्वलित रहे, गौरी लंकेश!
तुम्हारी हत्या उनकी उपलब्धि नहीं है, तुम्हारे रक्त से विकीर्णित होता साहस पत्रकारिता के माथे पर लगी सौभाग्य की लाल बिंदी है, जो हत्यारों की आत्मा पर संताप का दग्ध निशान है।
यह रात के अंधेरे में प्रसन्नचित्त उल्लुओं के उत्सव और साहसिकता की कोंपलें खिलने का समय है।

हत्या के कारोबारी कोई हों, वे निंदनीय और घृणास्पद हैं। हत्याराें का कोई रंग नहीं होता। हत्यारों का कोई पंथ नहीं होता। हत्या गांधी की हो जाती है। हत्या कलबुर्गी और पंसारे की कर दी जाती है। किसी पादरी को जीवित जलाया जा सकता और दयानंद जैसे किसी साधु को शीशा पिघलाकर दूध में पिलाया जा सकता है। हत्यारे किसी भी रंग में किसी भी रूप में हो सकते हैं। हत्यारे हत्यारे होते हैं।

हत्यारे एसेसिनेशन करते हैं। वे कैनिबैलिज्म से बाज़ नहीं आते। वे चाइल्ड मर्डरर हैं। वे कॉन्सेंसुअल होमिसाइड के लिए ताकत लगाते हैं। वे कॉन्ट्रेक्ट किलर हैं। हत्याएं उनके लिए पैशन है।

वे कभी हिन्दू धर्मांध नाथूराम गोडसे जैसे धर्मांध होकर आते हैं, कभी नक्सलवादी बनकर। वे कभी इस्लाम के फरिश्ते होकर आते हैं। कभी वे फांसी की सजा देकर हत्याओं का आयोजन करते हैं और कभी भ्रूणों की गर्भ में ही हत्याएं करते हैं।

गौरी लंकेश, यहां तरह-तरह के हत्यारे हैं। यहां ऑनर किलर हैं। यहां लव जेहादी हैं। यहां ऑनर किलर हैं। यहां कलबुर्गी की हत्या की निंदा करके तस्लीमा नसरीन की मौत का फतवा जारी करने वाले भी हैं। यहां लस्ट मर्डरर हैं। यहां लिंचिंग करने वालों को अभयदान है। यहां नक्सलवाद और जातिवाद के नाम पर हत्यारों का गौरवान्वयन होता है। यहां गो रक्षा के लिए इन्सान की हत्या करके तंदूरी चिकन खाकर राहत की सांस लेने वाले धर्मप्राण लोग भी हैं।

यहां गोरखपुर के अस्पताल में नन्हे शिशुओं के हत्यारे माथे पर चंदन लगाकर दनदनाते हैं और यहां कश्मीरी पंडितों की मौत के सौदागर खिलखिलाते हैं। यहां सामूहिक नरसंहार रचने वालों को शीश नवाते हैं और सत्ता के केंद्रीय कक्ष में एक तरफ छोटे और दूसरी तरफ थके हुए बड़े हत्यारे बैठकर अहिंसा पर चिंतन करते हैं।

यहां मास मर्डरर संविधान रचते हैं और लाखों लोगों की हत्याओं के रचनाकर शांति दूत बनकर इतिहास में बैठते हैं।

यहां स्यूडो पाइजनिंग और स्यूडो कमांडो एकांतवासी हृदयहीन हत्यारे यज्ञ में ब्रह्मा बनकर बैठते हैं। यहां सीरियल किलर न्यायकारी और सुपारी किलर दयालु बनकर जीते हैं।

और अगर और कुछ नहीं तो आपके लिए ब्लू व्हेल है। आपका स्वागत है। यहां हत्यारे ही हत्यारे हैं। यहां कोई मॉन्स्टर नहीं हैं। यहां नाना प्रकार के रक्तपिपासु हैं और सबके सब इन्सान हैं!

यहां इतिहास के सबसे घृणित हत्याकांड रचने वाले और मनुष्य की हिंसा के सतत चिंतक एक गौरी लंकेश की हत्या पर क्रांतिकारी भी बन जाते हैं।

ये हत्यारों की विचारधाराएं और हत्यारों की संस्कृतियां हैं। हत्यारे तरह-तरह के धर्मों, विचारधाराओं और नाना प्रकार की मानव भक्षी और रक्तपिपासु रूपों में मौजूद हैं।

हत्यारे यहां तरह-तरह के नारे लगात हैं। वे अखंड भारत भी रचते हैं और यह भी चाहते हैं कि कोई रोहिंग्या न झांके। वे समग्र वसुधा को कुटुंब भी मानते हैं और कुटुुंब का कोई बिलखता सदस्य झांते तो आंख भी तरेरते हैं। हम अपने भीतर तरह-तरह के हत्यारे लिए घूमते हैं, गौरी लंकेश! जिस देश में पिता या माता भ्रूण में हत्या कर देते हों, वहां हत्यारे पूजनीय ही हो सकते हैं, घृणित नहीं। गौरी लंकेश, यह स्वर्गदापि गरीयसी भूमि हत्यारों की भी है!"

 

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