न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति पी एस तेजी की पीठ ने कुमार एवं अन्य की वह अर्जी भी खारिज कर दी जिसमें मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ के एक सदस्य पर पूर्वाग्रह से ग्रसित होने का आरोप लगाया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि यह इन मामलों की सुनवाई रोकने की कोशिश है।
पीठ ने कहा कि इन याचिकाओं में दी गई दलीलें अदालत की अवमानना की तरह है, लेकिन वह कोई कार्रवाई शुरू नहीं कर रही है ताकि 32 साल पहले हुई घटना से जुड़े मामले में और विलंब नहीं हो। कड़े शब्दों में की गई टिप्पणियों में पीठ ने कहा, एक न्यायाधीश को चुनकर निशाना बनाना और पीठ में शामिल न्यायाधीशों का नाम लेकर उन्हें संबोधित करना एवं उनके खिलाफ व्यक्तिगत आरोप लगाना दरअसल सार्वजनिक तौर पर संबंधित न्यायाधीश को अपमानित करने की मंशा से किया गया सीधा हमला है। पीठ ने कहा कि यह कोशिश कड़ी निंदा के लायक है।
कुमार एवं दोषियों - पूर्व विधायक महेंद्र यादव एवं किशन खोक्कर - को अवमानना की चेतावनी देते हुए पीठ ने कहा, हम संयम बरत रहे हैं और अदालत की अवमानना कानून के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहे हैं और अर्जी दाखिल करने वालों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं शुरू कर रहे हैं क्योंकि ऐसा करने से इन मामलों में और देरी होगी। अदालत ने कहा, मौजूदा याचिकायें बेबुनियाद, दुर्भावनापूर्ण और भ्रामक हैं। हमें इसमें कोई दम नजर नहीं आता और इसलिए इन्हें खारिज किया जाता है। यह कानून का दुरूपयोग है। कुमार एवं अन्य ने अपनी याचिकाओं में आरोप लगाया था कि न्यायमूर्ति तेजी को मामले की सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह निचली अदालत के जज के तौर पर मामले की सुनवाई कर चुके हैं।
इन दलीलों के जवाब में सीबीआई ने कहा था कि न्यायमूर्ति तेजी ने निचली अदालत में इस मामले की कार्यवाही कभी संचालित नहीं की, बल्कि सिर्फ उस वक्त जमानत अर्जी पर सुनवाई की थी जब वह एक निचली अदालत के जज थे और तत्कालीन सत्र न्यायाधीश होने के नाते जमानत के मामलों को देख रहे थे।
भाषा