कैग की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि अगर भारतीय सेना को लगातार 10 दिन युद्ध करना पड़ गया तो उसके पास पर्याप्त गोला-बारूद नहीं है। साथ ही कहा गया है, "हमारे देश की ऑर्डिनेंस फैक्ट्री आवश्यकता के हिसाब से गोला-बारूद का निर्माण नहीं कर पा रही है। 2013 के बाद ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड की ओर से सप्लाई में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। सेना की जितनी मांग है उतना गोला-बारूद तैयार नहीं किया जा रहा है।"
कैग रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश की ऑर्डिंनेस फैक्ट्रियां क्षतिग्रसत सामानों की मरम्मत भी नहीं कर पा रही है। गोला-बारूद के डिपो में अग्निशमनकर्मियों की कमी रही और उपकरणों से हादसे का खतरा रहा।
2019 तक होगी भरपाई!
रिपोर्ट के अनुसार मंत्रालय ने 2013 में रोडमैप मंजूर किया था, जिसके तहत तय किया गया कि 20 दिन के मंजूर लेवल के 50 फीसदी तक ले जाया जाए और 2019 तक पूरी तरह से भरपाई कर दी जाए। 10 दिन से कम अवधि के लिए गोला-बारूद की उपलब्धता क्रिटिकल (बेहद चिंताजनक) समझी गई है। 2013 में जहां 10 दिन की अवधि के लिए 170 के मुकाबले 85 गोला-बारूद ही (50 फीसदी) उपलब्ध थे, अब भी यह 152 के मुकाबले 61 (40 फीसदी) ही उपलब्ध हैं।
वाइस चीफ का वित्तीय अधिकार बढ़ा
बता दें कि 2008 से 2013 के बीच खरीदारी के लिए 9 आइटमों की पहचान की गई थी। 2014 से 2016 के बीच इनमें से पांच के ही कॉन्ट्रैक्ट पर काम हो सका है। अब भारतीय सेना ने बताया है कि इस कमी को दूर करने के लिए मंत्रालय ने वाइस चीफ के वित्तीय अधिकार बढ़ा दिए हैं।