आज भारत का स्वतंत्रता दिवस है। भारत को लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों के शासन से मुक्ति मिली। इस आज़ादी में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे नेताओं को बहुत ख्याति मिली। मगर कई ऐसे सूरमा रहे, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर किया और भारत की आज़ादी उनके लहू से प्राप्त हुई। ऐसे ही सूरमाओं को याद करते हुए, उनका संक्षिप्त परिचय
खुदीराम बोस
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मोहोबनी में हुआ था। खुदीराम के पिता त्रैलोक्यनाथ बोस तहसीलदार थे। बचपन में ही खुदीराम बोस के माता-पिता की मौत हो गई।इसके बाद खुदीराम बोस को उनकी बड़ी बहन ने पाला।साल 1902-03 में खुदीराम बोस क्रांतिकारी समूहों में शामिल होने लगे।यहां होने वाली चर्चाओं में खुदीराम काफी एक्टिव रहते थे।15 साल की उम्र में खुदीराम बोस क्रांतिकारी बन गए।साल 1906 में सत्येंद्रनाथ बोस ने ब्रिटिश शासन के विरोध करते हुए वंदे मातरम का पर्चा छपवाया था।
30 अप्रैल 1908 को रात के समय डगलस किंग्सफोर्ड अपनी पत्नी के साथ वापस लौट रहे थे।साथ में एक दूसरी बग्घी भी थी जिसमें दो महिलाएं बैठी हुई थीं।खुदीराम ने बग्घी को आता देख उस पर बम फेंक दिया। खुदीराम बोस ने डगलस की बग्घी समझकर महिलाओं वाली बग्गी पर बम फेंका था।इस हमले में बग्घी में सवार दोनों महिलाओं की मौत हो गई. डगलस किंग्सफोर्ड और उनकी पत्नी हमले से बच गए।इसी हमले के बाद खुदीराम बोस की गिरफ्तारी हुई। एक महीने के भीतर की कोर्ट ने खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुना दी। 11 अगस्त 1908 को पहली बार भारत में एक किशोर को फांसी दी गई।
मंगल पांडे
एक समय था, जब ब्रिटिश सेना द्वारा लॉन्च की गई एनफील्ड राइफल पी-53 में जानवरों की चर्बी से बना एक खास तरह का कारतूस इस्तेमाल किया जाता था। इसे राइफल में डालने से पहले मुंह से छीलना पड़ता था। अंग्रेज इस कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल करते थे। इसके इस्तेमाल पर मंगल पांडे ने आपत्ति जताई, लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई। इसके बाद उन्होंने अपने साथी सैनिकों को यह भी बताया कि अंग्रेज अधिकारी भारतीयों का धर्म भ्रष्ट करने पर तुले हुए हैं। यह हिंदू और मुसलमान दोनों के लिए अपवित्र था। यह जानने पर पूरी छावनी के सैनिक भड़क गए।29 मार्च 1857 को जब पैदल सेना को नए कारतूस बांटे जा रहे थे, तो मंगल ने उन्हें लेने से इनकार कर दिया। इससे नाराज अंग्रेजों ने उनका हथियार छीनने और वर्दी उतारने का आदेश दिया। जब अंग्रेज अधिकारी मेजर ह्यूजेस उनकी राइफल छीनने के लिए आगे बढ़ा, तो मंगल पाण्डे ने उसे मार डाला। उन्होंने एक अन्य अंग्रेज अधिकारी लेफ्टिनेंट बाब को भी मार डाला।मंगल पांडे का कोर्ट मार्शल हुआ और उन पर मुकदमा चला। 6 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। सुनाई गई फैसले के मुताबिक उन्हें 18 अप्रैल 1857 को फांसी दी जानी थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने तय तारीख से 10 दिन पहले ही 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी पर लटका दिया।
रामप्रसाद बिस्मिल
यूपी के शाहजहांपुर के रहने वाले रामप्रसाद बिस्मिल का जन्म 11 जून 1897 को हुआ। रामप्रसाद बिस्मिल, स्वतंत्रता सेनानियों के 'द्रोण' कहे जाने वाले गेंदा लाल दीक्षित के शिष्य बने । रामप्रसाद बिसमिल का नाम 1918 के मैनपुरी केस में आया था, जिसे काकोरी ट्रेन कांड का आधार माना जाता है। काकोरी कांड की स्क्रिप्ट रामप्रसाद बिस्मिल ने ही लिखीथीं। उन्हें इसका मास्टरमाइंड कहा जा सकता है। बिस्मिल कवि और लेखक भी थे जो 'राम', 'अज्ञात' और 'बिस्मिल' उपनाम से लिखा करते थे। 26 सितंबर 1925 को उन्हें गिरफ्तार किया गया और 19 दिसंबर 1927 को महज 30 साल की उम्र में वह फांसी पर शहीद हो गए।
अशफाकउल्ला खान
यूपी के शाहजहांपुर के रहने वाले अशफाकउल्ला खान का 22 अक्टूबर 1900 को जन्म हुआ। देश की गुलामी ने उनके मन को दुखी किया।1918 में स्वतंत्रता संग्राम में कूदे।काकोरी कांड के दौरान जब लाहिड़ी ने ट्रेन को रोका तब अशफाक, बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ही सबसे पहले ट्रेन में घुसे थे। उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश खजाने (करीब 4600 रुपये कीमत) की रखवाली कर रहे गार्ड को काबू किया था।कांड को अंजाम देकर वह लखनऊ भाग गए। बाद में वह नेपाल चले गए। वह एक साल से ज्यादा समय तक पुलिस की पकड़ से दूर रहे। दिसंबर 1926 में ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया और फैजाबाद जेल में बंद रखा। 27 साल की उम्र में उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।