सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केन्द्र को यह स्पष्ट करने के लिये कहा कि क्या वह सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वालों के खातों को आधार के साथ जोड़ने के लिये दिशा निर्देश या कोई रूपरेखा तैयार करने पर विचार कर रही है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि इस मामले में जल्द से जल्द फैसले लेने की आवश्यकता है। ऐसा होने पर यह पता लगाना सरल हो जायेगा कि यह संदेश या विवरण कहां से शुरू हुआ था।
जस्टिस दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा, ‘‘इस समय, हमें नहीं मालूम कि क्या हम इस मुद्दे पर फैसला कर सकते हैं या हाई कोर्ट इस पर फैसला करेगा।’’ पीठ ने कहा, ‘‘अगर केन्द्र सरकार निकट भविष्य में इस मामले में कोई दिशा निर्देश या रूपरेखा तैयार करने पर विचार कर रही है तो हम आपको (केन्द्र को) कुछ समय दे सकते हैं।’’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस समय वह इस मामले के गुण दोष पर गौर नहीं करेगी और सिर्फ फेसबुक इंक की याचिका पर फैसला करेगी जिसमे आधार से जोड़ने से संबंधित मुद्दे पर मद्रास, बंबई और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों को स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है।
केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें इन मामलों को हाई कोर्ट से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने पर कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि पहले ही उच्च न्यायालयों में ऐसे मामलों पर काफी न्यायिक समय लग चुका है।
वहीं फेसबुक और व्हाट्सएप की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्होंने मद्रास उच्च न्यायालय के आदेशों के खिलाफ दो अपील दायर की हैं। पीठ ने कहा कि वह इन दो अपीलों को स्थानांतरण याचिका के साथ सूचीबद्ध करेगी। इसके साथ उसने इस मामले को 24 सितंबर के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
क्या है मामला?
तमिलनाडु सरकार ने गुरुवार को अदालत में दावा किया था कि फेसबुक इंक. और अन्य सोशल मीडिया कंपनियां भारतीय कानून का अनुपालन नहीं कर रही हैं, जिसके कारण से “अराजकता बढ़ रही है” और “अपराधों की पहचान” में मुश्किल आ रही है। उसने अदालत से उसके 20 अगस्त के आदेश में संशोधन का अनुरोध किया था जिसमें मद्रास हाई कोर्ट को निर्देश दिया गया था कि वह सोशल मीडिया प्रोफाइल को आधार से जोड़ने संबंधी याचिकाओं पर सुनवाई जारी रखे लेकिन कोई प्रभावी आदेश पारित करने से बचे।
प्रदेश सरकार ने कहा था कि हाई कोर्ट में सुनवाई काफी आगे बढ़ चुकी है लेकिन शीर्ष अदालत के 20 अगस्त के आदेश के कारण से उसने उन याचिकाओं पर सुनवाई टाल दी थी। विभिन्न आपराधिक मामलों का संदर्भ देते हुए प्रदेश सरकार ने कहा था कि स्थानीय विधि प्रवर्तन अधिकारियों ने इन कंपनियों से कई मामलों पर जांच और अपराधियों की पहचान के लिये जानकारी हासिल करने की कोशिश की गई।
तमिलनाडु सरकार ने और क्या कहा?
उसने कहा था कि ये कंपनियां “भारतीय धरती से संचालित होने के बावजूद” अधिकारियों से अनुरोध पत्र भेजने को कहती हैं और सभी मामलों में “पूर्ण जानकारी मुहैया कराने में नाकाम रहीं।” प्रदेश सरकार ने यह भी कहा कि मद्रास, बंबई और मध्य प्रदेश उच्च न्यायालयों में दायर याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने का फेसबुक का अनुरोध झूठे और भ्रामक कथनों से भरा हुआ है और यह अदालत को अपनी परोक्ष मंशाओं को लेकर दिग्भ्रमित करने का सीधा प्रयास है।
कोर्ट ने 20 अगस्त को केंद्र, गूगल, वाट्सएप, ट्विटर, यूट्यूब से मांगा था जवाब
अदालत ने 20 अगस्त को केंद्र, गूगल, वाट्सएप, ट्विटर, यूट्यूब और अन्य को फेसबुक की याचिका पर नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा था। फेसबुक ने अपनी याचिका में दलील दी थी कि सेवा प्रदाता आपराधिक मामलों की जांच में जांच एजेंसियों से आंकड़ा साझा कर सकता है या नहीं, इसका फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा किये जाने की जरूरत है क्योंकि इसके वैश्विक प्रभाव होंगे।