अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर में दावा किया गया है कि प्रसाद ने इस मामले के एक गवाह को पहले ही यह बता दिया कि उससे क्या सवाल पूछा जाएगा और उसे क्या जवाब देना है। अखबार ने दावा किया है कि उसने अप्रैल में चीनी विद्रोही नेता डोल्कुन ईसा के वीजा विवाद पर गृह मंत्रालय का पक्ष लेने के लिए बी.के. प्रसाद को फोन किया था और इस कॉल को रिपोर्टर ने अपने फोन में टेप किया था। बातचीत के दौरान प्रसाद ने रिपोर्टर का फोन होल्ड करके दूसरे फोन पर बात करना शुरू किया और इस दौरान उन्होंने दूसरे फोन वाले शख्स से कहा, ‘मेरे को ये पूछना है कि आपने ये पेपर देखा? आपको कहना है कि मैंने ये पेपर नहीं देखा… सीधी सी बात है।’ रिपोर्ट के फोन में प्रसाद की बातचीत रिकॉर्ड है। अखबार का दावा है कि उसने बाद में यह पता लगाया कि उस समय प्रसाद किससे बात कर रहे थे तो पता चला कि वह गृह मंत्रालय के पूर्व निदेशक अशोक कुमार से बात कर रहे थे जो कि गुम दस्तावेज मामले में एक गवाह हैं।
इस रिकॉर्डिंग के अनुसार प्रसाद ने संबंधित अधिकारी से कहा, ‘आपको इतना तो कहना होगा कि ये तो वो फाइल है मैंने कभी जिंदगी में डील नहीं किया, कभी फाइल को देखने का मौका ही नहीं मिला।… मुझे नहीं लगता कि किसी मौके पर आपने ये फाइल देखी होगी। बस इतना ही मैं आपसे चाहता हूं।’ यही नहीं प्रसाद ने संबंधित अधिकारी को यह भी सिखाया, ‘एक सवाल यह होगा कि क्या किसी ने आपको ये दस्तावेज अपने पास संभाल कर रखने के लिए दिया? आपको कहना होगा कि नहीं मेरे को किसी ने नहीं दिया।’
अंग्रेजी अखबार ने अप्रैल में हुई इस रिकॉर्डिंग को संभाल कर रखा और जब प्रसाद कमेटी ने कल यानी 15 जून को अपनी रिपोर्ट दे दी तब जांच में हुई इस गड़बड़ी को सामने लाने का फैसला किया। बी.के. प्रसाद के नेतृत्व में एक सदस्यीय जांच समिति ने कल जमा की गई अपनी रिपोर्ट में कहा था कि गुम हुए पांच दस्तावेजों में से चार दस्तावेज अब भी नहीं मिले हैं।
इस खुलासे के बाद कांग्रेस के नेता एवं पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने मोदी सरकार पर इशरत जहां मामले में दायर दो हलफनामों को लेकर फर्जी विवाद पैदा करने और लापता फाइलों की रिपोर्ट छेड़छाड़ करके तैयार करने का आज आरोप लगाया। इसके बाद चिदंबरम ने एक बयान में कहा कि अखबार की रिपोर्ट ने मामले में केंद्र सरकार की ओर से दायर दो हलफनामों पर राजग सरकार द्वारा पैदा किए गए फर्जी विवाद को व्यापक रूप से उजागर कर दिया है।
उन्होंने कहा, कहानी से यह सीख मिलती है कि छेड़छाड़ करके तैयार की गई (जांच अधिकारी की) रिपोर्ट भी सच नहीं छुपा सकती। असल मुद्दा यह है कि क्या इशरत जहां और तीन अन्य लोग वास्तविक मुठभेड़ में मारे गए थे या उनकी मौत फर्जी मुठभेड़ में हुई थी। मामले की जुलाई 2013 से लंबित सुनवाई ही सच को सामने लेकर आएगी।