जीएसएलवी मार्क 3 की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और यह चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है। समझा जाता है कि इस सैटेलाइटल का वजन कई हाथियों के बराबर है और अपने साथ एक हाथी के वजन के बराबर वजनी देश के सबसे भारी कम्युनिकेशन सैटेलाइटट जीएसएटी-19 वजन करीब 3136 किलोग्राम को लेकर जाएगा और इसके साथ ही हाई स्पीड इंटरनेटे युग की शुरुआत हो जाएगी। जीएसएलवी-तीन की लॉन्चिंग के साथ ही स्पेश में लोगों को भेजने का भारत का सपना जल्द ही पूरा हो सकता है। फिलहाल रूस, अमेरिका और चीन पास ही लोगों को भेजने का इंतजाम है। इसके साथ ही भारत बिना किसी से सहायता लिए बड़े और भारी सैटेलाइट्स की देश में ही लॉन्चिंग कर सकेगा। इसरो के अध्यत्क्ष किरण कुमार का कहना है कि मिशन काफी अहम् है क्योंिक अब तक सबसे भारी राकेट और उपग्राह है जिसे देश से छोड़ा जाना है।
जानें क्या है खासियत
-640 टन का वजन, यानी भारत का यह सबसे वजनी रॉकेट है।
-पूरी तरह भारत में बना है।
-इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लग गए और करीब तीन सौ करोड़ रुपये की लागत आई।
-इसकी ऊंचाई 13 मंजिली इमारत के बराबर है और चार टन तक उपग्रह लॉन्च कर सकता है।
-अपनी पहली उड़ना में यह 3136 किलोग्राम के सैटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा।
-पूरी तरह स्वेदशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है।
-इसरो ने लोगों को स्पेश में पहुंचाने के लिए केंद्र सरकार से 12500 करोड़ रुपये की मांग रखी है। अगर मंजूरी मिलती है तो सात साल में इसका काम पूरा होने की उम्मीद है।
-स्पेश एजेंसी ने लोगों को मिशन पर ले जाने के लिए पहले ही तकनीकी विकसित कर ली है।
-केवल रूस, यूएसए व चीन ने पहले किसी यात्अंरी को तरिक्ष में भेजा है। सबसे पहले रूस के यूरी गागरिन 12 अप्रैल, 1961 को ने स्पेश की यात्रा की थी।
-पहले भारतीय स्क्वैडन लीडर राकेश शर्मा 1984 में सोवियत रूस के एक संयुक्त मिशन पर स्पेश गए थे।
कैसे काम करता है रॉकेट
- पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं।
- उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है।
- ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं।
- उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं।
- अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है।
- फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है।
- फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है।
- उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है।
- भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा