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नीट और जेईई परीक्षा पैटर्न में बदलाव, जानें क्या हैं नए नियम

नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट परीक्षा साल में दो बार और सिर्फ ऑनलाइन मोड से कराने का...
नीट और जेईई परीक्षा पैटर्न में बदलाव, जानें क्या हैं नए नियम

नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट यानी नीट परीक्षा साल में दो बार और सिर्फ ऑनलाइन मोड से कराने का निर्णय बदल दिया गया है। यह फैसला मानव संसाधन विकास (एचआरडी) मंत्रालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय की सिफारिश के बाद लिया है। अब मेडिकल में प्रवेश लेने के लिए नीट परीक्षा पुराने पैटर्न से ही होगी। आपको बता दें कि पुराने पैटर्न के मुताबिक यह परीक्षा साल में एक बार और पैन पेपर की मदद से होगी।

नीट के साल में एक बार होने के साथ ही परीक्षा का आयोजन भी पेन और पेपर के जरिए करवाया जाएगा। हालांकि कुछ दिन पहले ही मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि पहले साल में उम्मीदवार पेन और पेपर का उपयोग कर सकेंगे और पेपर ऑनलाइन नहीं होंगे जबकि पेपर कंप्यूटर पर अपलोड किए जाएंगे।

नीट परीक्षा अब 5 मई 2019 को होगी। एनटीए ने नीट के अलावा यूजीसी नेट 2018, सीमैट और जीपैट परीक्षाओं की तिथि भी जारी कर दी है। इनमें यूजीसी नेट की परीक्षा 9 से 23 दिंसबर 2018 के बीच होगी। इस परीक्षा के लिए 19 नवंबर से प्रवेश पत्र डाउनलोड किए जा सकेंगे। सीमैट और जीपैट की परीक्षा 28 जनवरी 2019 को होगी। परीक्षा का परिणाम 10 जनवरी, 2019 को घोषित किया जाएगा।

वहीं जेईई मुख्य पहली परीक्षा 6 से 20 जनवरी 2019 के बीच होगी, जबकि दूसरी परीक्षा 6 से 20 अप्रैल 2019 के बीच होगे की संबावना है। दोनों ही परीक्षाएं कम्प्यूटर आधारित होंगी। इसकी प्रैक्टिस के लिए एनटीए ने देशभर में 26 सौ से ज्यादा टेस्ट प्रैक्टिस सेंटर बनाए है। इनमें इंजीनियरिंग कॉलेज और स्कूलों के कम्प्यूटर लैब शामिल हैं।

बता दें कि पिछले महीने मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ऐलान किया था कि नवगठित नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) साल में दो बार राष्ट्रीय योग्यता सह-प्रवेश परीक्षा के साथ ही इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा-मुख्य का आयोजन करेगी। उन्होंने कहा था की थी कि एनटीए  द्वारा ली जाने वाली सारी परीक्षा कंप्यूटर आधारित होगी।

इसके बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय को खत लिखकर साल में दो बार नीट परीक्षा कराने को लेकर चिंता जाहिर की, क्योंकि इस तरह के परीक्षा कार्यक्रम से छात्रों पर अतिरिक्त दबाव बन सकता है। ग्रामीण इलाके में रहने वाले छात्रों को लेकर भी चिंता प्रकट की गई कि सिर्फ ऑनलाइन मोड में परीक्षा होने से उन्हें घाटा हो सकता है।

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