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स्‍टेरॉयड बढ़ा रहा ब्‍लैक फंगस का खतरा, झारखंड-उड़ीसा समेत कई राज्यों में संक्रमण

कोरोना के संक्रमण के बीच ब्‍लैक फंगस (म्‍यूकोर माइकोसिस ) ने लोगों को आतंकित करना शुरू कर दिया है।...
स्‍टेरॉयड बढ़ा रहा ब्‍लैक फंगस का खतरा, झारखंड-उड़ीसा समेत कई राज्यों में संक्रमण

कोरोना के संक्रमण के बीच ब्‍लैक फंगस (म्‍यूकोर माइकोसिस ) ने लोगों को आतंकित करना शुरू कर दिया है। कोरोना के इलाज के दौरान धड़ल्‍ले से स्‍टेरॉयड का इस्‍तेमाल बड़ी वजह बन रहा है। झारखण्‍ड में चार दिनों के भीतर कोई दो दर्जन मामले सामने आ गये हैं। यह सीधे तौर पर आंख को निशाना बना रहा है, रोशनी छीन रहा है। रांची के साथ-सा‍थ रामगढ़, जमशेदपुर, चतरा, धनबाद में भी मामले दिखे हैं। यह कोरोना की तरह अचानक आया कोई नया फंगस नहीं है मगर कोरोना में जब लोगों की रोग निरोधक क्षमता घट गई है इसने अचानक उग्र रूप ले लिया है। वहीं, अन्य राज्यों से भी अब ब्लैक फंगस का मामला सामने आया है। इसमें झारखंड के अलावा उडीसा, गुजरात समेत कई अन्य राज्य शामिल हैं।

ईएनटी के सर्जन डॉ अभिषेक रामाधीन बताते हैं कि साल में दो-तीन मामले आते थे, चार दिनों में बीस मामले आये। उन्‍होंने सात-आठ लोगों का ऑपरेशन किया है। उन्‍होंने कहा कि ब्‍लैक फंगस हमेशा वातावरण में रहते हैं। जहां अंतिम संस्‍कार होता है, गन्‍ने की खेती होती है वहां ये प्रचुर मात्रा में रहते हैं। मगर शरीर में रोग निरोधक क्षमता बहुत कम होने पर ये हमला करते हैं। अनियंत्रित शुगर, कैंसर के मरीजों को यह निशाना बनाता है। कोरोना में शरीर की रोग निरोधक क्षमता बहुत कम हो जाती है, धड़ल्‍ले से एस्‍टेरॉयड का इस्‍तेमाल हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में क्‍वैक्‍स सिर्फ बुखार देखकर डेक्‍सामेथासोन दस-दस दिन चला रहे हैं। यह स्‍टेरॉयड है। एस्‍टेरॉयड से शरीर की रोग निरोधक क्षमता कम होती है और अनियंत्रित शुगर हो जाता है। जो शुगर के मरीज नहीं होते हैं उनमें भी अनियंत्रित शुगर की शिकायत हो जाती है। इस तरह यह दोधारी तलवार की तरह काम करता है। तुरंत इलाज नहीं होने पर ब्‍लैक फंगस के मामले में पचास प्रतिशत लोगों की मौत हो जाती है।

रांची के मेडिका में एक व्‍यक्ति की आंख निकालनी पड़ी। धनबाद में रहने वाली राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्‍थान, रांची के छात्र की मां को ब्‍लैक फंगस का आक्रमण हुआ था, इलाज के लिए रांची लाना था कल ही मौत हो गई, जमशेदपुर से भी इसी तरह की सूचना मिली। एचईसी (भारी अभियंत्रण निगम, रांची) के पूर्व चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ केके कदम ने आउटलुक से कहा कि यह नया फंगस नहीं है मगर पहले इसके मरीज नहीं आते थे। इधर तेजी से आने लगे हैं। गन्‍ना के खेतों में इसका फंगस बहुत पाया जाता है। कैंसर, शुगर, बीपी के मरीज जिनकी रोग निरोधक क्षमता कम होती है, ब्‍लैक फंगस हावी हो जाता है। कोरोना संक्रमण के दौरान लोगों की रोग निरोधक क्षमता कम हुई है स्‍टेरॉयड एम्‍युनिटी को और कम कर देता है, शुगर बढ़ा देता है बस ब्‍लैक फंगस को मौका मिल जाता है। स्‍टेरॉयड का बहुत सोच कर इस्‍तेमाल होना चाहिए, इधर देख रहा हूं डॉक्‍टर पर्चे पर तुरंत स्‍टेरॉयड लिख देते हैं। ईएनटी रोग विशेष डॉ हर्षवर्धन के अनुसार ब्‍लैक फंगस आज नहीं 1885 की बीमारी है, जर्मनी में पहली बार इसकी पहचान हुई थी। भारत में शुगर के काफी मरीज हैं और करोरोना में स्‍टेरॉयड का इस्‍तेमाल हो रहा है इस कारण भी ब्‍लैक फंगस का प्रकोप अचानक बढ़ा है।
कैसे होता है, यह है लक्ष्‍ण

डॉ. अभिषेक बताते हैं कि ब्‍लैक फंगस नाक और साइनस के माध्‍यम से प्रवेश करता है और आंख पर हमला करने के बाद दिमाग को अपनी जद में ले लेता है। संक्रमण के दो-चार दिनों भीतर ही सिर में तेज दर्द होता है, आंख की पलक सूज जाती है। आंख का मूवमेंट बंद हो जाता है। एक तरफ चेहरा सुन्‍न हो जाता है, काला होने लगता है। आंख की रोशनी चली जाती है। प्रारंभिक लक्ष्‍ण के साथ इलाज प्रारंभ होने पर रोशनी बचाई जा सकती है। आंख के डॉक्‍टर के पास जाने के बदले सीधा ईएनटी एक्‍सपर्ट के पास जाना चाहिए। इनके यहां इलाज के लिए आये चार लोगों ने बताया कि उनके आंख की रोशनी चली गई है। किसी की दो दिन में गई, किसी की चार-छह दिनों में।

चिकित्‍सकों के अनुसार ब्‍लैक फंगस का इलाज है। बशर्ते तुरंत शुरू किया जाये। इंफोटेरेसिन बी, पोसाकोनाजोल इलाज में काम आता है। इंफोटेरेसिन बी की तो अब कालाबाजारी होने लगी है। एक्‍स रे और सीटी स्‍कैन से रोग की पहचान होती है। इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइड लाइन के अनुसार स्‍टेरॉयड की इस्‍तेमाल डॉक्‍टरों के परामर्श से ही लें। एंटी फंगल दवाएं अपने मन से न लें। इम्‍युनिटी बुस्‍टर दवाओं का ज्‍यादा दिनों तक इस्‍तेमाल न करें। शुगर के मरीज अपना शुगर नियंत्रित रखें।

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