नेट को लेकर इस बार संकट अनिश्चितता की स्थिति पैदा हो गई है। परीक्षा का आयोजन करने वाले केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने इससे हाथ खड़े कर दिए हैं। यह परीक्षा साल में दो बार जनवरी और जून-जुलाई में होती है। अगर इस बार जून में परीक्षा नहीं होती है तो पिछले 33 सालों में यह पहला मौका होगा, जब नेट परीक्षा अस्थायी तौर पर स्थगित हुई। देश में हर साल करीब पांच लाख से ज्यादा उम्मीदवार इस परीक्षा में बैठते हैं।
अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ में छपी खबर के अनुसार, सीबीएसई का कहना है कि राष्ट्रीय परीक्षाओं के अत्यधिक दबाव की वजह से वह नेट परीक्षा कराने में असमर्थ है। आमतौर पर परीक्षा से तीन महीने पहले नेट की अधिसूचना जारी हो जाती है। पिछले साल 4 अप्रैल को सीबीएसई ने 10 जुलाई काेे हुुुुई परीक्षा का ऐलान कर दिया था। लेकिन इस साल अभी तक नेेेट की काेई खबर नहीं है।
यूजीसी की चुप्पी
नेट को लेकर पैदा अनिश्चितता के बारे में अभी तक सीबीएसई और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की तरफ से कोई स्पष्टीकरण नहीं आया है। जबकि कई लोग इसे मामले को यूनिवर्सिटी स्तर पर नौकरियों का रास्ता रोकने के कदम के तौर पर देख रहे हैं। अगर यह परीक्षा अस्थायी तौर पर भी स्थगित होती है तो नेट की तैयारी कर रहे लाखों छात्रों के भविष्य पर सवालिया निशान लग जाएगा। हर साल लाखों जी जान से नेट की तैयारी में जुटते हैं। शिक्षकों की कमी से जूझ रहे उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए भी यह अच्छी खबर नहीं है।
अकादमिक कॅरियर का पासपोर्ट है नेट
गौरतलब है कि विश्वविद्यालय स्तर पर शिक्षकों की नियुक्ति के अलावा नेट के रिजल्ट का इस्तेमाल जूनियर रिसर्च फेलोशिप और एमफिल व पीएचडी में दाखिलों के लिए भी किया जाता है। यानी अकादमिक क्षेत्र में कॅरियर बनाने के लिए यह परीक्षा एक पासपोर्ट की तरह है।
मंत्रालय को बता चुका है सीबीएसई
सीबीएसई के चेयरमैन राजेश कुमार चतुर्वेदी ने करीब छह महीने पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर नेट परीक्षा आयोजित कराने में असमर्थता जताई थी। क्योंकि सीबीएसई पर पहले ही जेईई, टीईटी जैसी परीक्षाओं का बोझ है। इसकी वजह से बोर्ड का मूल काम स्कूल शिक्षा प्रभावित हो रहा है।
क्या कहते हैं छात्र ?
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के आर्ट्स एंड एस्थेटिक्स विभाग में एमफिल कर रहे अरूण पटेल कहते हैं कि नई सरकार की नीतियों का ही यह नतीजा है जो नेट की परीक्षाएं भी स्थगित होने लगी है। सीट कटौती,फीस बढ़ोत्तरी फिर नेट परीक्षाओं का स्थगन इस सरकार की रिसर्च विरोधी प्रवृत्ति को दिखा रही है। आम जनमानस में यह भ्रम भी फैलाया जा रहा है कि रिसर्च कर रहे छात्र अधिक उम्र तक पढ़ाई करते हैं, कुछ काम-धाम नहीं करते। यह समझना चाहिए कि रिसर्च समाज के लिए होता है,इसे प्रोत्साहित करने की जरूरत है। वहीं जैएनयू के अंतरराष्ट्रीय संबंध में एमए कर रहे छात्र आकाश देवांगन का कहना है कि नेट परीक्षा की तैयारी हम एक लक्ष्य बनाकर करते है, साथ ही हमें अपने पाठ्यकक्रम में भी ध्यान देना होता है और इस तरह कोई स्थाई समयसीमा तय नहीं की जाएगी तब हम छात्रों के लिए बड़ी समस्या पैदा हो जाएगी।