सीबीआई के नए डायरेक्टर के नाम पर फैसला करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली समिति की गुरुवार को हुई बैठक बेनतीजा रही। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि सीबीआई निदेशक के नाम पर बैठक में कोई फैसला नहीं लिया जा सका।
एक अधिकारी ने नाम जाहिर नहीं होने के अनुरोध पर बताया, सक्षम अधिकारियों के दस्तावेजों के साथ उनकी सूची समिति के सदस्यों के साथ साझा की गई। लेकिन, अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा कि नाम तय करने के लिए समिति की एक और बैठक जल्द बुलाई जाएगी। प्रधानमंत्री आवास पर हुई बैठक में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी हिस्सा लिया।
तीन बैच के अफसरों की बनाई है सूची
डीओपीटी (डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग) ने डीजीपी स्तर के करीब दस नामों की लिस्ट तैयार कर ली है। इस लिस्ट में 1983, 1984 और 1985 बैच के आईपीएस अफसरों को शामिल किया गया है। बताया जाता है कि इसमें 1985 बैच के मुंबई के पुलिस आयुक्त सुबोध कुमार जायसवाल, उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह और एनआईए के चीफ वाईसी मोदी का नाम भी शामिल है।
खड़गे ने पीएम को लिखा था पत्र
इससे पहले सेलेक्ट कमेटी की बैठक 21 जनवरी को होनी थी, लेकिन खड़गे के अनुरोध पर इसे टाल दिया गया था। फिलहाल एम नागेश्वर राव सीबीआई के अंतरिम डायरेक्टर हैं। उनकी नियुक्ति के बाद काफी विवाद खड़ा हुआ था। इसको लेकर खड़गे ने पीएम को एक पत्र भी लिखा था। खड़गे ने इस पत्र में राव की नियुक्ति को गैरकानूनी बताया था और बिना किसी देरी के नए सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति के लिए सेलेक्ट कमेटी की बैठक बुलाने के लिए निवेदन किया था।
विवादों में रही है जांच एजेंसी
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी का खिताब पाने वाली सीबीआई पिछले काफी समय से विवादो के घेरे में रही है। सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा और जांच एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के बीच छिड़ी जंग सार्वजनिक होने के बाद सरकार ने दोनों अधिकारियों को उनके अधिकारों से वंचित कर छुट्टी पर भेजने का निर्णय किया था। दोनों अधिकारियों ने एक दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे।
वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद से हटाए जाने के बाद उन्हें दमकल सेवा, नागरिक रक्षा और होम गार्ड्स का महानिदेशक बनाया गया था। यह सीबीआई प्रमुख की तुलना में कम महत्वपूर्ण पद था। वर्मा ने उस पेशकश को स्वीकार नहीं किया और उन्होंने सरकार को पत्र लिखकर कहा कि उन्हें सेवानिवृत्त मान लिया जाना चाहिए क्योंकि उनकी 60 साल की आयु पूरी हो चुकी है।
सरकार द्वारा प्रस्तावित नए पदभार को ग्रहण नहीं कर सकता: वर्मा
वर्मा ने एक फरवरी 2017 को सीबीआई निदेशक का पदभार संभाला था। सीबीआई प्रमुख के तौर पर उनका कार्यकाल दो साल का था। कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सचिव सी चंद्रमौलि को लिखे गए पत्र में वर्मा ने कहा था कि वह 31 जुलाई 2017 को ही सेवानिवृत्त हो चुके हैं इसलिए सरकार द्वारा प्रस्तावित नए पदभार को ग्रहण नहीं कर सकते।
'लगा सीबीआई की साख पर बट्टा'
सीबीआई पर उठ रहे सवालों पर पूर्व संयुक्त निदेशक एन के सिंह का कहना था कि कुछ हुआ या नहीं पर एक बात साफ हो गई कि इन विवादों से सीबीआई की साख पूरी तरह से खत्म हो गई है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले में साफ कहा गया था कि आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजना गैर-कानूनी था और ये भी कहा कि सीवीसी ने अपने अधिकार क्षेत्र से आगे बढ़कर ये काम किया। मामले में सीवीसी की भूमिका भी शुरू से अच्छी नहीं रही क्योंकि सरकार के कहने पर उन्होंने गैर-कानूनी ऑर्डर पास कर दिया।