केंद्र की अगुवाई वाली नरेंद्र मोदी सरकार में इस बात के आरोप विपक्ष की तरफ से लगते रहे हैं कि वो बिना किसी सार्थक बहस के संसद से बिल को पास करा रही है। पिछले सत्र में कृषि संबंधी कानून और सीएए-एनआरसी के मुद्दे पर इसी तरह के आरोप विपक्ष की तरफ से लगाए गए थे और लगातार केंद्र के खिलाफ आवाज उठ रहे हैं।
अब सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमना ने भी चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि जो कानून बनाए जा रहे हैं उस पर संसद में बहस नहीं होती है। कानून में सब कुछ स्पष्ट भी नहीं होता है। पता नहीं किस मकसद से ऐसे कानून बनाए जाते हैं।
इस बार के मानसून सत्र में भी यही देखने को मिला है। इस बार के सत्र में बीस विधेयक को पारित कराया गया है जिसमें से 19 विधेयकों पर किसी भी तरह की चर्चा-बहस नहीं देखने को मिला है। विपक्ष के हंगामें और बहिष्कार के बीच केंद्र विधेयक पारित कराती रही।
स्वतंत्रता दिवस के मौके पर सीजेआई रमना सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित ध्वजारोहण समारोह में ये बातें कही है। चीफ जस्टिस ने रविवार को अफसोस जताते हुए कहा कि कानून बनाने वाली संस्था द्वारा बनाए गए कानूनों में स्पष्टता का अभाव है। उन्होंने कहा कि आप जानते हैं कि संसद में क्या हो रहा है। हम नहीं जानते हैं कि ऐसा किस मकसद से किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इससे सरकार को नुकसान हो रहा है तो जनता को बहुत असुविधा का सामना करना पड़ रहा है। मुकदमेबाजी भी बढ़ रही है। सीजेआई रमना ने कहा कि पहले बिल को सदन में पारित कराने से पहले बहस और चर्चा होती थी। इससे अदालतों के लिए कानूनों की व्याख्या करना आसान था। अदालत पर बोझ कम पड़ते थे। इसमें विधायी हिस्सा स्पष्ट होता था कि वे इस कानून को लेकर क्या सोचते हैं। ऐसा कानून क्यों बनाया जा रहा है। अब हम कानून को खेदजनक स्थिति में देखते हैं।