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कांग्रेस-जेडीएस ने किस आधार पर दी राज्यपाल के फैसले को चुनौती, क्या हैं सिंघवी के तर्क

कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर सियासी दलों के बीच खींचतान जारी है। गुरुवार सुबह भाजपा के बीएस...
कांग्रेस-जेडीएस ने किस आधार पर दी राज्यपाल के फैसले को चुनौती, क्या हैं सिंघवी के तर्क

कर्नाटक में सरकार बनाने को लेकर सियासी दलों के बीच खींचतान जारी है। गुरुवार सुबह भाजपा के बीएस येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बुधवार को बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता मिला। इस फैसले के खिलाफ कांग्रेस रात को ही सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। राज्यपाल ने कल देर शाम भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था और येदियुरप्पा को 15 दिन में विधानसभा में बहुमत साबित करने को कहा था। भाजपा राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में 104 सीटें हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। वहीं चुनाव के बाद बने कांग्रेस-जद (एस) गठबंधन के 116 विधायक हैं। इस गठबंधन ने भी राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश किया था।

कांग्रेस और जेडीएस की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में कहा गया कि राज्यपाल द्वारा बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिए जाने के फैसले को रद्द किया जाए या फिर कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन को सरकार बनाने के लिए न्योता दें क्योंकि उनके पास बहुमत के लिए जरूरी 112 से ज्यादा विधायकों का समर्थन है।

उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति एके सीकरी , न्यायमूर्ति एसके बोबडे और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की एक विशेष पीठ ने मामले की सुनवाई शुरु की। देर रात दो बजकर 11 मिनट से सुबह पांच बजकर 28 मिनट तक यह सुनवाई चली।

कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने इस बात पर जोर दिया की शपथ ग्रहण समारोह पर पर रोक लगायी जानी चाहिए या इसे स्थगित किया जाना चाहिए।

हालांकि पीठ ने कहा, ‘‘हम शपथ ग्रहण समारोह पर रोक नहीं लगा रहे हैं।’’

इधर, केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और भाजपा विधायक गोविंद एम कारजोल, सीएम उदासी तथा बासवराज बोम्मई की पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने शपथ ग्रहण पर रोक लगाने या उसे स्थगित करने की सिंघवी की दलीलों का विरोध किया।

सिंघवी ने दी ये दलीलें

-“सरकारिया आयोग दिशानिर्देशों के अनुसार, "सबसे बड़ी पार्टी या पार्टियों के समूह" को गवर्नर द्वारा आमंत्रित किया जाना चाहिए।”

-"भाजपा के पास 104 विधायकों का समर्थन है और राज्यपाल ने भाजपा नेता बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने न्योता दिया। ये पूरी तरह असंवैधानिक है। ये कभी नहीं सुना गया कि वो पार्टी जिसके पास 104 सीटें हों उसे 112 सीटों का बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन दिए जाएं। पहले ऐसे किसी भी मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से 48 घंटे ही दिए जाते थे।"

- "सामान्य ज्ञान कहता है कि 104 संख्या वाली  पार्टी को 116 संख्या वाली  पार्टी से पहले न्योता दिया रहा है और फिर उन्हें 15 दिन देकर जख्म पर नमक लगाया जा रहा है।”

-"गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी फिर भी हमें सरकार बनाने से रोक दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी भाजपा के सरकार बनाने को सही ठहराया था।"

- "शपथ ग्रहण पूरी तरह से कार्यकारी प्रक्रिया है। क्या होगा यदि राज्यपाल केवल 10 विधायकों के समूह को आमंत्रित करते हैं और 9 बजे शपथ ग्रहण रखते हैं। और आपके प्रभुत्व (Lordships) का कहना है कि राज्यपाल को रोका नहीं जा सकता है।"

- "गवर्नर की प्रतिरक्षा है। आप उसे फोन नहीं कर सकते हैं या उसे नोटिस जारी नहीं कर सकते हैं। लेकिन उनके कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं। मैं उनके फैसले को चुनौती दे रहा हूं हालांकि उन्हें उसी के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। "उनके कार्य पूरी तरह से समीक्षा योग्य हैं। मुद्दा यह है कि हम उसे निषेध कर सकते हैं?”

अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल और वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी के तर्क

भाजपा के वकील मुकुल रोहतगी ने सुनवाई के दौरान कहा, "इस मामले में देर रात सुनवाई आवश्यक नहीं है। यदि कोई शपथ ले लेता है तो आसमान नहीं टूट पड़ेगा। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने केवल याकूब मेनन के मामले में देर रात सुनवाई की थी, क्योंकि वह फांसी दिए जाने का मामला था।"

-केंद्र के वकील अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि इस याचिका को लगाया ही नहीं जाना चाहिए था। कांग्रेस -जेडीएस को बहुमत साबित होने तक इंतजार करना चाहिए था।"

- रोहतगी ने कांग्रेस-जेडीएस की अर्जी को खारिज करने की मांग की। साथ ही उन्होंने कहा कि शपथ के लिए न्योता देना राज्यपाल का काम है। राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी कोर्ट के लिए जवाबदेह नहीं हैं। कोर्ट को किसी संवैधानिक पदाधिकारी को उसके आधिकारिक कर्तव्य निभाने से नहीं रोका जाना चाहिए।

-केके वेणुगोपाल कहते हैं कि इस मामले में कोई तात्कालिकता नहीं है। इसकी सुनवाई नहीं होने से कोई अपरिवर्तनीय क्षति नहीं होगी।”

- मुकुल रोहतगी ने कहा, "गवर्नर की कार्रवाई न्यायिक समीक्षा के लिए उपयुक्त होगी लेकिन उन्हें उनके कर्तव्यों का प्रयोग करने से नहीं रोका जा सकता। अगर अनुच्छेद 356 की शक्ति को कम नहीं किया जा सकता है तो अनुच्छेद 361 शक्ति को निषेध नहीं किया जा सकता है। क्या आप गवर्नर को बिल पर हस्ताक्षर करने से रोक सकते हैं?"

- मुकुल रोहतगी ने 2017 के गोवा चुनाव मामले की दलील पर सिंघवी को जवाब दिया, "यह एक आदेश है। इसलिए बाध्यकारी उदाहरण नहीं है और इससे कोई कानून नहीं बन जाता। दूसरी बात, कांग्रेस ने कभी गोवा में सरकार बनाने का दावा नहीं किया। यदि आप दावा नहीं करते हैं तो यह आपकी मदद कैसे करेगा?”

कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- क्या वो राज्यपाल को रोक सकता है? क्या सुप्रीम कोर्ट गवर्नर को किसी पार्टी को सरकार बनाने का न्योता देने से रोक सकता है?

- "हम इस पर विचार कर रहे हैं कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपाल को रोक सकती है, जो राज्य में संवैधानिक निर्वात का कारण होगा। मुद्दा यह है कि हम उसे निषेध कर सकते हैं? बेशक उनके कार्य न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं।”

-क्या हम किसी ऐसे व्यक्ति को रोक सकते हैं जिसके लिए हम नोटिस जारी नहीं कर सकते?

- ‘‘ न्यायालय बीएस येदियुरप्पा के शपथ ग्रहण समारोह पर रोक लगाने के संबंध में कोई आदेश नहीं दे रहा है। अगर वह शपथ लेते हैं तो यह प्रक्रिया न्यायालय के समक्ष इस मामले के अंतिम फैसले के दायरे में आएगी।

- राज्यपाल वजुभाई वाला के समक्ष सरकार बनाने का दावा पेश करने के लिए भेजे गए दो पत्र अदालत में पेश करने का आदेश देते हुए कहा है कि मामले का फैसला करने के लिए उनका अवलोकन आवश्यक है।

-कोर्ट ने कनार्टक सरकार तथा येदियुरप्पा को नोटिस जारी करते हुए इस पर जवाब मांगा है और मामले की सुनवाई के लिए शुक्रवार का दिन तय किया है।

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