इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने आउटलुक को बताया इन खुलासों से एक बात फिर प्रमाणित होता है कि बड़ी संख्या में भारतीय कॉरपोरेट, सेलिब्रिटी और नौकरशाह विदेश के करमुक्त स्वर्ग में अपनी कमाई को जुटा रहे हैं। जहां तक अमिताभ बच्चन की बात है तो अभी तक यह नहीं सामने आया है कि उनकी वाकई क्या भूमिका है, क्या कानूनी रूप से ठोंक बजाकर यह पैसा बाहर भेजा गया था। सीधा सवाल यह भी है कि आखिरकार नाम छिपाने की जरूरत क्यों पड़ती है। यह बात तो तय है कि कोई भी टैक्स हेवन में लॉ फर्म को करोड़ों रुपये की फीस देकर सफेद पैसा तो नहीं भेजेगा। यह सारा जुगाड़ काले धन को सफेद करने और हवाला पैसे को सफेद करने के लिए ही किया जाता है। अमिताभ बच्चन का नाम बोफोर्स के समय भी आया था और उस पैसे को क्वात्रोच्चि का पैसा बताया गया था। आगे क्या हुआ, सब बराबर हो गया क्योंकि कुछ भी साबित करना मुश्किल है। जांच एजेेंसियां भी किस तरह काम करती हैं, यह भी हम सब जानते हैं। काले धन की वापसी को लेकर जितने भी दावे सरकार करे, जमीन पर कुछ होता दिखना भी तो चाहिए। इसी तरह अब भी सवाल यही है कि क्या इस मामले में कुछ होगा। इसकी उम्मीद बहुत कम है। कमोबेश यही राय टैक्स मामलों के विशेषज्ञ अरविंद दातर ने दी। उनका कहना है कि विदेश में निवेश करना, टैक्स हैवन में कंपनी बनाना अपने आप में कोई अपराध नहीं है। काले धन कानून में जो प्रावधान हैं, उन्हें साबित करना टेढ़ी खीर है। अभी तक जो सामने आया है उससे यह पता चलता है कि विदेश में या यूं कहें कि टैक्स हैवन में करोड़ों रुपये निवेश करने वाले 500 भारतीयों की सूची सामने आई है। इसमें अंडर वायसिंग और ओवरवायसिंग का खेल भी कॉरपोरेटों ने किया होगा। इन तमाम पहलुओं की कड़ी जांच हो तो शायद असली तस्वीर सामने आए।
पनामा खुलासाः कानूनी रूप से फंसने के आसार कम
पनामा की लॉ फर्म मोसेक फोंसेका से लीक दस्तावेजों के आधार पर टैक्स हेवन में 500 भारतीयों के नाम के खुलासे के साथ यह सवाल प्रमुखता से उठाया जा रहा है कि क्या वाकई इन लोगों के खिलाफ कोई कानूनी मामला बनता है या नहीं। और, अगर होता इस पूरे खुलासे के दो कानूनी पहलू हैं, जिनपर आगे जाकर स्थिति स्पष्ट होगी-पहला यह कि क्या इन भारतीयों ने भारतीय कानून के तहत यानी कानूनी रूप से करोड़ों रुपये के निवेश किए और दूसरा यह कि कानूनी रूप से नहीं फंसने के बावजूद नैतिक आधार पर यह गलत है।
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