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आतंकवाद एक कैंसर, तीखी छुरी से करना होगा इलाज: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 67वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में आगाह किया कि निर्णय और कार्यान्वयन में विलंब से विकास की प्रक्रिया का ही नुकसान होगा। अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने हाल ही में पठानकोट वायु सेना स्टेशन पर हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका संवाद है जो सही तरह से कायम रहना चाहिए लेकिन हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते।
आतंकवाद एक कैंसर, तीखी छुरी से करना होगा इलाज: राष्ट्रपति

राष्ट्रपति ने अपने संदेश में संभवत: संसद में लंबित जीएसटी विधेयक के संदर्भ में विधि निर्माताओं और सरकार से कहा कि आर्थिक सुधारों और प्रगतिशील विधानों को सुनिश्चित करना उनका कर्तव्य है और इसके लिए निर्णय लेने का प्रमुख तरीका सामंजस्य, सहयोग और सर्वसम्मति बनाने की भावना पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा, विकास की शक्तियों को मजबूत बनाने के लिए हमें सुधारों और प्रगतिशील विधान की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना विधि निर्माताओं का परम कर्तव्य है कि पूरे विचार-विमर्श और परिचर्चा के बाद ऐसा विधान लागू किया जाए। निर्णय और कार्यान्वयन में विलंब से विकास प्रक्रिया का ही नुकसान होगा।

 

चुनौतियों भरा रहा पिछला साल  

राष्ट्रपति की यह टिप्पणी जीएसटी विधेयक के पारित होने में बने गतिरोध के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। प्रणब ने कहा, पिछला साल चुनौतियों का वर्ष रहा। इस दौरान विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी रही। वस्तु बाजारों पर असमंजस छाया रहा और संस्थागत कार्रवाई में अनिश्चितता आई। ऐसे कठिन माहौल में किसी भी राष्ट्र के लिए तरक्की करना आसान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा, भारतीय अर्थव्यवस्था को भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। हमारा निर्यात प्रभावित हुआ और हमारे विनिर्माण क्षेत्र का अभी पूरी तरह उभरना बाकी है। राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2015 में प्रकृति की कृपा से भी वंचित रहे। भारत के अधिकतर हिस्सों पर भीषण सूखे का असर पड़ा जबकि अन्य हिस्से विनाशकारी बाढ़ की चपेट में आ गए। उन्होंने कहा कि मौसम के असमान हालात ने हमारे कृषि उत्पादन को प्रभावित किया और ग्रामीण रोजगार तथा आमदनी के स्तर पर इसका बुरा असर पड़ा। हम इन्हें चुनौतियां कह सकते हैं क्योंकि हम इनसे अवगत हैं। समस्या की पहचान करना और इसके समाधान पर ध्यान देना एक श्रेष्ठ गुण है।

 

विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर भारत 

अपने संबोधन में प्रणब ने कहा कि इस वर्ष 7.3 प्रतिशत की अनुमानित वृद्धि दर के साथ भारत सबसे तेजी से बढ़ रही विशाल अर्थव्यवस्था बनने के मुकाम पर है। राष्ट्रपति ने कहा कि विश्व में तेल की कीमतों में गिरावट से बायो क्षेत्र को स्थिर बनाए रखने और घरेलू कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिली है। बीच-बीच में रूकवटों के बावजूद इस वर्ष उद्योगों का प्रदर्शन बेहतर रहा है। उन्होंने कहा कि चौथी औद्योगिक क्रांति पैदा करने के लिए जरूरी है कि उन्मुक्त और रचनाशील मनुष्य उन बदलावों को आत्मसात करने के लिए परिवर्तन गति पर नियंत्रण रखे, जो व्यवस्थाओं और समाजों के भीतर स्थापित होते जा रहे हैं। राष्ट्रपति ने ऐसे माहौल की आवश्यकता बताई जो महत्वपूर्ण विचारशीलता को बढ़ावा दे और अध्यापन को बौद्धिक रूप से उत्साहवर्द्धक बनाए। उन्होंने कहा कि इससे महिलाओं के प्रति आदर की भावना पैदा होगी जिससे व्यक्ति जीवन पर्यन्त सामाजिक सदाचार के मार्ग पर चलेगा। उन्होंने कहा कि इससे गहन विचारशीलता की संस्कृति प्रोत्साहित होगी और चिंतन एवं आतंरिक शांति का वातावरण पैदा होगा। हमारी शैक्षणिक संस्थाएं मन में जागृत विविध विचारों के प्रति उन्मुक्त दृष्टिकोण के जरिये विश्व स्तरीय बननी चाहिए। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय वरीयता में प्रथम 200 में स्थान प्राप्त करने वाले दो भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों द्वारा यह शुरूआत पहले ही हो गई है।

 

आतंकी कैंसर का इलाज तीखी छुरी से करना होगा

राष्ट्रपति ने अपने संदेश में आतंकवाद को ऐसा कैंसर बताया जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। उन्होंने कहा कि असहमति दूर करने का एक सभ्य तरीका संवाद है जो सही तरह से कायम रहना चाहिए लेकिन हम गोलियों की बौछार के बीच शांति पर चर्चा नहीं कर सकते। पठानकोट वायु सेना स्टेशन पर हाल में हुए आतंकी हमले की पृष्ठभूमि में राष्ट्रपति की इस टिप्पणी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अपने संबोधन में आतंकवाद का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, आतंकवाद उन्मादी उद्देश्यों से प्रेरित है, नफरत की अथाह गहराईयों से संचालित है, यह उन कठपुतलीबाजों द्वारा भड़काया जाता है जो निर्दोष लोगों के सामूहिक संहार के जरिये विध्वंस में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा,यह बगैर किसी सिद्धांत की लड़ाई है और ऐसा कैंसर है जिसका इलाज तीखी छुरी से करना होगा। आतंकवाद अच्छा या बुरा नहीं होता है, यह केवल बुराई है। आतंकवादी महत्वपूर्ण स्थायित्व की बुनियाद, मान्यता प्राप्त सीमाओं को नकारते हुए व्यवस्था को कमजोर करना चाहते हैं। यदि अपराधी सीमाओं को तोड़ने में सफल हो जाते हैं तो हम अराजकता के युग की ओर बढ़ जाएंगे। उन्होंने कहा, देशों के बीच विवाद हो सकते हैं और जैसा कि सभी जानते हैं कि जितना हम पड़ोसी के निकट होंगे विवाद की संभावना उतनी अधिक होगी। प्रणब ने कहा कि भयानक खतरे के दौरान हमें अपने उपमहाद्वीप में विश्व के लिए एक पथप्रदर्शक बनने का ऐतिहासिक अवसर प्राप्त हुआ है। हमें अपने पड़ोसियों के साथ शांतिपूर्ण वार्ता द्वारा अपनी भावनात्मक और भूराजनीतिक धरोहर के जटिल मुद्दों को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहा कि मैत्री की बेहद जरूरत वाले विश्व के लिए हमारा उदाहरण अपने आप में एक संदेश का कार्य कर सकता है।

 

हिंसा, असहिष्णुता, अविवेकपूर्ण ताकतों से खुद की रक्षा करनी होगी 

देश में इन दिनों असहिष्णुता के मुद्दे पर चल रही चर्चा के बीच राष्ट्रपति ने अपने संदेश में राष्ट्र को आगाह किया कि हमें हिंसा, असहिष्णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से स्वयं की रक्षा करनी होगी। उन्होंने कहा, अतीत के प्रति सम्मान राष्ट्रीयता का एक आवश्यक पहलू है। हमारी उत्कृष्ट विरासत, लोकतंत्र की संस्थाएं, सभी नागरिकों के लिए न्याय, समानता तथा लैंगिक और आर्थिक समता सुनिश्चित करती है। उन्होंने कहा, जब हिंसा की घृणित घटनाएं इन स्थापित आदर्शों, जो हमारी राष्ट्रीयता के मूल तत्व हैं, पर चोट करती हैं तो उन पर उसी समय ध्यान देना होगा। हमें हिंसा, असहिष्णुता और अविवेकपूर्ण ताकतों से स्वयं की रक्षा करनी होगी। राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे बीच अकसर संदेहवादी और आलोचक होंगे। हमें शिकायत, मांग, विरोध करते रहना चाहिए। यह भी लोकतंत्र की एक विशेषता है। परन्तु हमारे लोकतंत्र ने जो हासिल किया है, हमें उसकी भी सराहना करनी चाहिए।बुनियादी ढांचे, विनिर्माण, स्वास्थ्य, शिक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में निवेश से हम और अधिक विकास दर प्राप्त करने की स्थिति में हैं जिससे हमें अगले दस से पंद्रह वर्षों में गरीबी मिटाने में मदद मिलेगी। राष्ट्रपति ने कहा, विवेकपूर्ण चेतना और हमारे नैतिक जगत का प्रमुख उद्देश्य शांति है। यह सभ्यता की बुनियादी और आर्थिक प्रगति की जरूरत है। परंतु हम कभी भी यह छोटा सा सवाल नहीं पूछ पाए हैं कि शांति प्राप्त करना इतना दूर क्यों है? टकराव को समाप्त करने से अधिक शांति स्थापित करना इतना कठिन क्यों हो रहा है ?

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