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राजस्थान हाईकोर्ट में पायलट गुट की दलील- तानाशाही पर सवाल उठाना बगावत नहीं

कांग्रेस के खिलाफ बगावत करने वाले नेता सचिन पायलट और 18 अन्य बागी कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा...
राजस्थान हाईकोर्ट में पायलट गुट की दलील- तानाशाही पर सवाल उठाना बगावत नहीं

कांग्रेस के खिलाफ बगावत करने वाले नेता सचिन पायलट और 18 अन्य बागी कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष की नोटिस को चुनौती दी है। मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की एक खंडपीठ आज सुनवाई कर रही है। गौरतलब है कि पायलट खेमे को आज दोपहर एक बजे तक ही नोटिस का जवाब देने का वक़्त था मगर अब उन्हें 5 बजे तक कि मोहलत दी गई है।

 

सुनवाई के दौरान पायलट गुट की ओर से हरीश साल्वे अपने तर्क रख रहे हैं।  हरीश साल्वे की ओर से कोर्ट में कहा गया कि अगर कोई विधायक अपने मुख्यमंत्री के भ्रष्टाचार और तानाशाही रवैए के खिलाफ बोलता है, अपनी सेंट्रल लीडरशिप को जगाता है यह उसका फ्रीडम ऑफ स्पीच है, यह बगावत नहीं है।

 

 गुरुवार को बागी खेमे के अधिवक्ता हरीश साल्वे ने नए सिरे से याचिका दाखिल करने के लिए वक़्त मांगा था। शाम लगभग 5 बजे असंतुष्ट खेमे ने संशोधित याचिका दाखिल की। उसके बाद कोर्ट ने इसे दो जजों की पीठ की नियुक्ति के लिए मुख्य न्यायाधीश को भेज दिया। दोनों पक्षों की ओर से कोर्ट में जानेमाने अधिवक्ता पेश हुए। विधानसभा अध्यक्ष कार्यालय की ओर से कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी थे तो दूसरी ओर हरीश साल्वे और मुकुल रोहतगी पायलट खेमे की पैरवी कर रहे थे। विधानसभा अध्यक्ष से असंतुष्ट कांग्रेस विधायकों को अयोग्य करार देने की मांग करने वाले कांग्रेस के मुख्य सचेतक महेश जोशी भी एक पक्ष हैं जिन्होंने कोर्ट से किसी आदेश को जारी करने से पहले उनका पक्ष सुने जाने की मांग की।

गौरतलब है कि कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष से शिकायत की थी कि इन 19 विधायकों ने कांग्रेस विधायक दल की बैठकों में शामिल होने के पार्टी के व्हिप का उल्लंघन किया है, इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष ने मंगलवार को सभी को नोटिस जारी किया।

पायलट खेमे के विधायकों का कहना है कि पार्टी का व्हिप केवल तभी लागू होता है जब विधानसभा का सत्र चल रहा हो। विधानसभा अध्यक्ष को भेजी गयी शिकायत में कांग्रेस ने पायलट और अन्य बागी विधायकों के खिलाफ संविधान की 10वीं अनुसूची के पैराग्राफ 2(1)(ए) के तहत कार्रवाई करने की मांग की है। इस प्रावधान के तहत यदि कोई विधायक अपनी मर्जी से उस पार्टी की सदस्यता छोड़ता है, जिसका वह प्रतिनिधि बनकर विधानसभा में पहुंचा है तो वह सदन की सदस्यता के लिए अयोग्य हो जाता है।

विधानसभा अध्यक्ष सी.पी.जोशी को लिखे पत्र में कांग्रेस ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में ‘स्पष्ट रूप’’ से यह निर्णय दिया है कि यह प्रावधान उस समय प्रभावी होता है जब विधायक का व्यवहार इस स्तर पर पहुंच जाए।

जिन लोगों को नोटिस भेजा गया है उनमें विश्वेन्द्र सिंह और रमेश मीणा भी हैं। अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत को लेकर सचिन पायलट के साथ इन्हें भी कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। नोटिस पाने वाले अन्य विधायकों में दीपेन्द्र सिंह शेखावत, भंवर लाल शर्मा और हरीश चन्द्र मीणा भी शामिल हैं। इन्होंने भी गहलोत सरकार को चुनौती देते हुए मीडिया में बयान दिए थे।

बता दें कि साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस द्वारा अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद से ही सचिन पायलट कुछ नाराज चल रहे थे। राजस्थान की 200 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस के पास 107 और भाजपा के पास 72 विधायक हैं।

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