मैंने, रामायण को किताबी तरीके से पढ़ा और सुना था। मैं रामायण के कई संस्करणों की कहानियां जानता था, लेकिन सभी स्थानों पर गया नहीं था। मैंने अयोध्या, नासिक, अनेगुंडी और रामेश्वरम के मंदिरों की यात्रा की थी और वहां प्रार्थना की थी लेकिन इन स्थानों से परे राम वन गमन पथ पर यानी वनवास के दौरान जंगलों में भगवान राम के मार्ग पर नहीं गया था। एक टीवी शो की शूटिंग के दौरान मुझे वास्तविक दुनिया के अनुभवों के साथ अपने किताबी ज्ञान को बढ़ाने के लिए अपनी दोस्त सुजाता पर निर्भर रहना पड़ा।
अपनी प्रोडक्शन टीम के साथ, हमें इन कहानियों में से कई अचरज, संतों और आम लोगों के ज्ञान के साथ उन जगहों को खोजने का आनंद मिला, जहां रामायण सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि वास्तव में जीवित है। क्योंकि, रामायण भारत भर के स्थानों में जीवन को चेतन करती है। इस यात्रा के माध्यम से हमने ऐसी कई जगहों की खोज की। यहां, हम ऐसी ही एक जगह के बारे में बात करने की उम्मीद करते हैं।
यह एक ऐसा स्थान है जहां रामायण की कहानी बसती और सांस लेती है- जीमन पर, हवा में, भक्तों की आस्था में, उनके मंत्रों और आह्वान में, इसके हर मूल में। जब आप सड़क के एक कोने पर मुड़ते हैं, वहां महाकाव्य की निश्चितता आपको ऐसा महसूस कराती है कि आप इसके पात्रों के हिस्से हो सकते हैं।
हम चित्रकूट में हैं और रामायण पथ के पवित्र भौगोलिक भाग पर चल रहे हैं। हम अमीश के साथ लीजेंड्स ऑफ द रामायण नामक एक मिनी-सीरीज की शूटिंग कर रहे हैं, जिसे हम डिस्कवरी प्लस के लिए प्रोड्यूस कर रहे हैं। लेकिन जब हम इतिहास, रहस्य और मिथक की परतों को गहराई से खोदना शुरू करते हैं, तो हमारे लिए बहुत सारे आश्चर्य होते हैं।
रामायण का शाब्दिक अर्थ है 'राम का अयान' या 'राम की यात्रा'। महाकाव्य में, इस यात्रा को भगवान राम की सौतेली मां कैकेयी द्वारा शुरू किया गया, जो चाहती है कि उनका बेटा भरत राजा बने। रणनीति के तहत वह कुछ वरदान मांगती है और भगवान राम के लिए जंगल में 14 साल वनवास की योजना बनाती है। अपने पिता के धर्म को बनाए रखने के लिए, भगवान राम स्वेच्छा से इसे स्वीकार करते हैं और ऐसे रास्ते पर निकल पड़ते हैं, जो वे मानते हैं कि भाग्य ने उनके लिए लिखा है।
क्या बीच में पड़ने वाले पड़ावों ने इस मार्ग का वर्णन किया है कि भारत में आज भी भगवान राम के रास्ते का अस्तित्व है? या ये सिर्फ महान लेखक महर्षि वाल्मीकि जी की कल्पना मात्र है। सीता मां और राजकुमार लक्ष्मण के साथ भगवान राम उन 14 वर्षों तक कहां रहे? और वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर क्यों जाते गए? हम इस दिलचस्प ‘भू-पौराणिक’ कथाओं में से कुछ का पता लगाने के लिए निकल रहे हैं या कुछ लोग इसे हमारी डॉक्यूमेंट्री के लिए इसे इतिहास कहेंगे।
शुरुआती चरण अयोध्या जो, कोसल के महान इक्ष्वाकु राजाओं की तत्कालीन राजधानी थी से लेकर हमने प्रयागराज की यात्रा की जहां, भगवान राम, सीता मां और राजकुमार लक्ष्मण महान संत भारद्वाज से मिले थे। कहते हैं कि वे विद्वान ऋषि भारद्वाज ही थे, जिन्होंने उन्हें चित्रकूट में बसने की सलाह दी थी। चित्रकूट यानी, 'कई आश्चर्यों की पहाड़ी।' हमें आश्चर्य होता है, चित्रकूट ही क्यों!
मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित, वर्तमान उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमाओं पर स्थित चित्रकूट को देवताओं का निवास माना जाता था। माना जाता है कि हिंदू धर्म में सर्वोच्च देवत्व की त्रिमूर्ति- भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव की यहां उपस्थिति थी। कई महान संत इसके पवित्र वन परिसर में रहते और ध्यान करते थे। रामायण कथा के अनुसार, जब भगवान राम, सीता मां और राजकुमार लक्ष्मण चित्रकूट पहुंचे, तो वे सबसे पहले तीनों उनके निर्माता ऋषि वाल्मीकि से मिले थे। बहुत खूब! महाकाव्य के लेखक के रूप में, महर्षि वाल्मीकि ने अपनी कहानी में एक चरित्र के रूप में अपने स्वयं के प्रतिनिधि का इस्तेमाल किया था।
महर्षि वाल्मीकि ने तीनों को एक हरी-भरी पहाड़ी की ओर इशारा किया। यहीं पर राजकुमार लक्ष्मण ने मजबूत छोटी सी झोपड़ी 'परम कुटीर' का निर्माण किया, जहां वे तीनों शांति से बस गए थे। स्थानीय लोगों का मानना है कि 14 साल के वनवास की अवधि में तीनों 11 साल, 11 महीने और 11 दिन यहां रहे।
आज भी, कामदगिरी पहाड़ी, इस इलाके के आध्यात्मिक परिदृश्य पर हावी है और यह चित्रकूट शहर के सबसे महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। तीर्थयात्री इच्छाओं की पूर्ति करने वाले भगवान कामदनाथ का दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहाड़ी की 5 किमी की परिक्रमा करते हैं। छोटे-बड़े मंदिर इस रास्ते में विराम लगाते हैं और अगरबत्ती की सुगंध हवा को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। हजारों भक्त राम का नाम लेते और भजन गाते इस रास्ते पर चलते हैं। जबकि कुछ लोग दंडवत प्रणाम करते हुए चलते हैं। दंड भर कर चलने वाले लोगों के लिए अलग रास्ता बनाया गया है।
रोमांच के शौकीन लोगों के लिए चित्रकूट के बाहरी इलाके में एक और अद्भुत जगह है। हरे-भरे पहाड़ों में बसी दो गुफाएं हैं, जहां उसके भीतर गहराई में एक नदी बहती है! तीर्थयात्रियों की आवाजाही से पहले, हम अलसुबह वहां और पहुंच गए। इस भूमिगत भूलभुलैया में ले जाने के लिए कोई कोई गूगल मैप नहीं है। अचानक हमने पाया कि हम घुटनों तक गहरे पानी में हैं। हमें बताया गया कि यह गुप्त गोदावरी नदी है। फिर यह एक दरार में लुप्त हो गई। अचानक गुफा के भीतर ही हमें एक छोटा मंदिर दिखता है, जिसमें एक पंडित बैठे हैं। हमें कैमरे और दूसरे लोगों के साथ देख कर वे भी उतना ही आश्चर्य जताते हैं और निर्लिप्त भाव से गुफा में बह रहे पानी की कहानी सुनाने की इच्छा प्रकट करते हैं।
वह हमें बताते हैं कि वनवास के दौरान राम और लक्ष्मण ने इन गुफाओं में दरबार लगाया था। कई देवी-देवता उनसे यहां आशीर्वाद लेने आए थे। महाराष्ट्र में लगभग 1000 किलोमीटर दूर नासिक में जन्मी गोदावरी नदी ने भी भगवान राम के दर्शन करने की तीव्र इच्छा व्यक्त की। लेकिन उनके माता-पिता ने अनुमति देने से इनकार कर दिया। तो वे गुप्त रूप से पृथ्वी की गहराइयों के भीतर अपना रास्ता बनाते हुए चित्रकूट की गुफाओं में निकल आईं।
बाहर निकलते समय, हमें बड़ी गुफा की छत पर काली चट्टान का एक अजीबोगरीब निकला हुआ भाग दिखाई देता है। यह गुफा के भीतर चूना पत्थर की चट्टान से अलग है। कहानी के अनुसार, एक दिन, सीता मां यहां कुंड में स्नान कर रही थीं, जब मयंक राक्षस ने उन पर बुरी नजर डाली। जब भगवान लक्ष्मण को पता चला, तो वे क्रोधित हो गए। उन्होने मयंक को उठाया और गुफा की छत पर फेंक दिया, जहां वह आज भी फंसा हुआ है।
हम इन कहानियों से जुड़ी गुफाओं को छोड़ देते हैं। रामायण ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी है। अब हम रामघाट जा रहे हैं। यहां मंदाकिनी धीरे-धीरे बह रही है, जैसे वह हजारों सालों से बहती आ रही है। किंवदंती है कि कभी यह क्षेत्र भीषण सूखे से त्रस्त था। महान ऋषि अत्रि की पत्नी महासती अनसूया की तपस्या से इस नदी को धरती पर लाया गया था। नदी के किनारे रंग-बिरंगी नावों से अटे पड़े हैं जो इसे उत्सवी छटा देते हैं। भक्त यहां ध्यान करते हैं और नदी में डुबकी लगाते हैं।
जैसे ही आसमान लाल रंग की शाम में बदला, हम ईश्वरत्व, शांति और प्राकृतिक सुंदरता के सही मिश्रण पर चकित हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि महान संतों ने भगवान राम, सीता मां और राजकुमार लक्ष्मण को चित्रकूट में रहने के लिए कहा था।
( अमीश रामचंद्र श्रृंखला और शिव-त्रयी के लेखक और सुजाता कुलश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माण कंपनी वाइड एंगल फिल्म्स की संस्थापक हैं।)