जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस एम खानविलकर की पीठ ने कहा कि अबॉर्शन की प्रक्रिया तुरंत एसएसकेएम अस्पताल, कोलकाता में कराई जाए। रिपोर्ट्स में बताया गया है कि महिला को प्रेग्नेंसी खत्म करने की मंजूरी नहीं देना उसके लिए गंभीर मानसिक चोट के जैसी होगी। इसके अलावा अगर डिलिवरी के बाद बच्चा जिंदा रहता है तो कई बार हार्ट की सर्जरी करनी पड़ेगी। 23 जून को याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार को सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड बनाने और प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट तैयार कर पेश करने का आदेश दिया। तब महिला 24 हफ्ते की प्रेग्नेंट थी। 25 मई को जांच में बच्चे को गंभीर बीमारी होने की बात पता चली थी। इसे कंफर्म करने के लिए 30 मई को दोबार ईसीजी कराई गई।
याचिका में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 को भी चैलेंज किया गया, जो 20 हफ्ते से ज्यादा के अबॉर्शन की मंजूरी नहीं देता है। इसमें कहा गया कि 1971 में टेक्नोलॉजी एडवांस नहीं थी, लेकिन अब 26 हफ्ते और उससे ज्यादा का अबॉर्शन आसानी से हो सकता है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी महीने में एक महिला को 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन कराने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा, "हमारे हाथों में एक जिंदगी है। हम उसे खत्म करने की इजाजत कैसे दे सकते हैं।" इस केस में बच्चे को डाउन्स सिंड्रोम था। इसी आधार पर महिला ने अबॉर्शन की मंजूरी मांगी थी।