हनमंथप्पा कोप्पाड को मंगलवार को दिन में सियाचिन ग्लेशियर से आर्मी हॉस्पिटल रिसर्च एंड रेफरल में लाया गया और अस्पताल के अनुसार वह कोमा में हैं और उनकी हालत अत्यंत गंभीर है। अस्पताल की ओर से जारी मेडिकल बुलेटिन के अनुसार सौभाग्य से लांस नायक के शरीर पर सर्दी की वजह से कोई चोट या हड्डियों को कोई चोट नहीं पहुंची है। बुलेटिन में कहा गया है, उनकी बेहोशी की हालत के मद्देनजर उनकी श्वास नली और फेफड़े की रक्षा के लिए उन्हें कृत्रिम जीवन रक्षक प्रणाली पर रखा गया है। उनकी हालत बेहद गंभीर बनी हुई है और शरीर को फिर से गर्म करने और शरीर के ठंडे पड़ चुके हिस्सों में रक्त का प्रवाह स्थापित करने की वजह से पैदा हुई जटिलताओं के कारण अगले 24 से 48 घंटे काफी कठिन रहने का अनुमान है। सोमवार को 150 से ज्यादा सैनिकों और दो खोजी श्वानों के दल ने कोप्पाड को 20,500 फुट की उंचाई पर सियाचिन ग्लेशियर में बर्फ के नीचे से निकाला था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और सेना प्रमुख जनरल दलबीर सिंह सुहाग ने अस्पताल जाकर बहादुर सैनिक से मुलाकात की और देश से उनके जल्द स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना करने को कहा। पीएम ने कोप्पाड को उत्कृष्ट जवान की संज्ञा दी और कहा कि उनकी अदम्य भावना और लड़ते रहने की क्षमता को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा, हम सभी उनके स्वास्थ्य लाभ की उम्मीद और प्रार्थना कर रहे हैं।हनमंथप्पा के जीवित निकाले जाने की खबर आने के बाद उनके परिवार की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। अपने पति के चमत्कारिक तरीके से जीवित बचने की खबर पाने के बाद कोप्पाड की पत्नी महादेवी ने कहा, यह हम सभी के लिए पुनर्जन्म की तरह है। महादेवी ने कहा कि हिमस्खलन की घटना के बारे में पता चलने के बाद परिवार सदमे में था लेकिन उनके जीवित होने की खबर ने चेहरों पर मुस्कराहट ला दी है।
वहीं मंगलवार को सियाचिन ग्लेशियर में बर्फ के ढेर के नीचे से बाकी सभी आठ जवानों के शव सात दिनों के बाद निकाल लिया गया। एक जवान का शव कल मिल गया था। सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, बाकी सभी आठ जवानों के शव हिमस्खलन वाली जगह से मिल गए हैं। उन्होंने कहा, तीन फरवरी को तड़के जवानों की चौकी के पास हुए हिमस्खलन के बाद बर्फ के 30 फुट नीचे दब गए 10 जवानों का पता लगाने और उन्हें निकालने के लिए सियाचिन में शुरू किए गए अभियान में इन्हें निकाला गया। अधिकारी ने कहा, लांस नायक हनमंथप्पा कोप्पड को 30 फुट बर्फ के नीचे से जीवित निकालने में सफलता का श्रेय बचाव दलों के दृढ़संकल्प को जाता है जो कठिन परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा, हम अत्यंत दुख के साथ इस बात की पुष्टि करना चाहते हैं कि बाकी नौ शहीदों के शव भी बचाव दलों ने निकाले हैं जिनमें एक जूनियर कमीशन्ड अधिकारी शामिल था। अधिकारी ने बताया कि शहीदों के शवों को आवश्यक औपचारिकताओं के बाद यथासंभव जल्द उनके पैतृक स्थानों को भेजा जाएगा।
ग्लेशियर में विशेष रूप से प्रशिक्षित दलों समेत 150 से अधिक प्रशिक्षित सैनिकों को हिमस्खलन के स्थान पर भेजा गया और प्रतिकूल परिस्थितियों में पूरे समय बचाव अभियान चलाया गया जहां दिन का औसत तापमान शून्य से 30 डिग्री सेल्सियस नीचे और रात में शून्य से 55 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। बचाव कार्य के लिए चिकित्सा दल भी भेजा गया और आपात स्थिति में उपचार के लिए पोस्ट स्थापित कर दी गई। साथ में विशेष बचाव श्वनों को भी मौके पर भेजा गया था। अधिकारियों के अनुसार, डॉट और मीशा नाम के कुत्तों ने जबरदस्त काम किया। सियाचिन दुनिया का सबसे कठिन युद्धक्षेत्र है जहां मौसम की विपरीत परिस्थतियों के कारण दुश्मन की गोली से भी ज्यादा जवान मारे जाते हैं। सियाचिन में साल 1984 से 869 भारतीय जवान विपरीत जलवायु संबंधी परिस्थितियों और अन्य हालात का शिकार हुए।