अयोध्या विवाद में दाखिल सभी पुनर्विचार याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने गुरुवार को खारिज कर दीं। बंद चैंबर में पांच जजों की पीठ ने 18 याचिकाओं पर सुनवाई की। इनमें सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर के उस फैसले पर पुनर्विचार का आग्रह किया गया था जिसमें अयोध्या में 2.77 एकड़ भूमि पर राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया था। साथ ही मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन देने का निर्णय भी दिया गया था। बता दें कि 18 पुनर्विचार याचिकाओं में से 9 याचिकाएं तो इस मामले के 9 पक्षकारों की हैं, जबकि शेष याचिकाएं ‘तीसरे पक्ष’ ने दायर की थीं।
प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में न्यायमूर्ति धनंजय वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना शामिल थे। पिछले महीने फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, इसलिए उनकी जगह पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना को शामिल किया गया।
18 पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार
इस मामले में सबसे पहले 2 दिसंबर को पहली पुनर्विचार याचिका मूल वादी एम सिदि्दकी के कानूनी वारिस मौलाना सैयद अशहद रशिदी ने दायर की थी। इसके बाद, 6 दिसंबर को मौलाना मुफ्ती हसबुल्ला, मोहम्मद उमर, मौलाना महफूजुर रहमान, हाजी महबूब और मिसबाहुद्दीन की तरफ से याचिकाएं दायर की गईं। इन सभी पुनर्विचार याचिकाओं को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का समर्थन प्राप्त है। इसके बाद 9 दिसंबर को दो और पुनर्विचार याचिकाएं दायर की गईं। इनमें से एक याचिका अखिल भारत हिन्दू महासभा की थी। दूसरी याचिका 40 से अधिक लोगों ने संयुक्त रूप से दायर की थी। संयुक्त याचिका दायर करने वालों में इतिहासकार इरफान हबीब, अर्थशास्त्री एवं राजनीतिक विश्लेषक प्रभात पटनायक, मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर, नंदिनी सुंदर और जॉन दयाल शामिल हैं।
हिन्दू महासभा की याचिका में क्या है?
हिन्दू महासभा ने अपनी पुनर्विचार याचिका में मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ भूमि उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को आबंटित करने के फैसले पर सवाल उठाए थे। महासभा ने फैसले से इस अंश को हटाने का अनुरोध किया था। विदित हो कि 14 मार्च, 2018 को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने साफ कर दिया था कि सिर्फ मूल मुकदमे के पक्षकारों को मामले में अपनी दलीलें पेश करने की अनुमति होगी। पीठ ने कुछ कार्यकर्ताओं को हस्तक्षेप करने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था।
क्या था अदालत का फैसला?
संविधान पीठ ने 9 नंवबर को अपने फैसले में समूची 2.77 एकड़ विवादित भूमि ‘राम लला’ विराजमान को दे दी थी और केंद्र को निर्देश दिया था कि वह अयोध्या में एक मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को प्रमुख स्थान पर पांच एकड़ जमीन आवंटित करे।