तालिबानियों ने अफगानिस्तान में जुल्म ढाहना शुरू कर दिया है। देश में रहने वाली महिलाएं अब खौफ में जी रही हैं। मंगलवार को मो. आबिद अपनी पत्नी नूरजाद के साथ नई दिल्ली स्थित अफगानिस्तान एंबेसी पासपोर्ट बनवाने के काम से आएं थे। आउटलुक को आबिद ने बताया, “जीवन खतरे में है। अफगानिस्तान का भविष्य अंधकार में है।” आबिद की पत्नी नूरजाद की आंखे वहां के मौजूदा हालात को बताते हुए भर आती है। वो बताती हैं, "मेरी बहन से रविवार को बात हुई थी। वो बता रही थी उसकी एक दोस्त अपने महरम (पत्नी या आदमी) के बिना घर से बाहर गई थी, उसे सजा दी गई है। तालिबानियों ने उन पर दो सौ सलाख़ (लोहे की छड़) बरसाए। उन्हें चेतावनी देकर घर भेजा गया कि फिर से वो गलती ना करें। जब भी बाहर निकले, किसी मर्द के साथ निकलें।
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आगे वो बताती हैं, "अब बच्चों, लड़कियों के लिए सभी दरवाजें बंद हो गए हैं।कोई लड़की पढ़ाई करने के बाद चार-दीवारी के भीतर कैसे रह सकती है। तालिबानी हमें बाहर नहीं निकलने देंगे। हमें मार दिया जाएगा या उठाकर वो अपने इस्तेमाल के लिए ले जाएंगे। वो कहती हैं कि यदि महिलाओं के शरीर का कोई भी अंग दिख जाता है तो वो यहां तक की उन्हें मार देते हैं।"
तालिबान लगातार इस बात का दावा कर रहा है कि वो इस्लाम के मुताबिक यहां की महिलाओं, बच्चों को स्वतंत्रता प्रदान करेगा। लेकिन, लोगों को इनकी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है और ये तालिबान द्वारा 1996-2001 के दौरान बरपाए गए कहर को दोहराते हुए सहम जा रहे हैं। साइमा मुरीद भी मंगलवार को अपने 10 साल की बेटी के साथ एंबेसी आई हुई थी।
उन्होंने आउटलुक को बताया, “चार साल से मैं दिल्ली में रह रही हूं। बेटी भोगल स्कूल में पढ़ाई कर रही है। भारत में हूं इसलिए सुरक्षित हूं। वहां के हालात मानवता के खिलाफ हैं। मेरे कई संबंधी, बहन और अन्य लोग हेरात शहर में हैं। उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया जा रहा है। महिलाओं के लिए सबसे ज्यादती भरा समय है। फिर से महिलाओं-लड़कियों को गुलाम बना लिया जाएगा।” मुरीद कहती हैं कि अब अफगानिस्तान का कोई भविष्य नहीं है। ये सौ साल पीछे जा चुका है। हमनें 1996-2001 के तालिबानी जुल्म को देखें हैं। वो बताती हैं, “भले ही तालिबानी कह रहे हैं कि सभी नागरिकों को अधिकार मिलेगा। उन्हें इस्लाम के हिसाब से जीने की स्वतंत्रता होगी। लेकिन, ये कौन लोग हैं, वहीं हैं जो उस वक्त थे। इन पर विश्वास करना मुश्किल है।”