मेरठ में चार दिन की बच्ची को ममता की छांव की दरकार है। एंजिल को जन्म देते वक्त उसकी मां की मौत हो गयी। परिवार मां के शव को तो अपने साथ ले गया लेकिन बेटी को अस्पताल में ही छोड़ दिया। अस्पताल ने उस मासूम के पिता को तलाशना चाहा..लेकिन वे अपना फोन बंद करके नदारद हो गए।
चार दिन की बच्ची ने अभी अपनी आंखे नही खोली है.. उसे मां की ममता की दरकार है। उसकी मां का नाम ममता ही था...लेकिन वह उसे जन्म देते ही चल बसी। मां के दिल में छेद था.. मां और बेटी को बचाने के लिए डाक्टरों ने ममता का ऑपरेशन किया..मगर केवल बेटी ही बच सकी। एंजिल के पिता और पूरा परिवार उसकी मां के शव को लेकर तीन दिन पहले वहां से चले गए और बच्ची को अस्पताल की नर्सरी में छोड़ दिया।
एंजिल के पिता शीशपाल बिजनौर के फीना गांव के निवासी है। उन्होने अस्पताल में ममता को एडमिट कराते वक्त जो फोन नंबर दर्ज कराया था वह अब बंद है। फोन के बंद होने से पहले अस्पतालकर्मी ने जब शीशपाल से बात की तो बच्ची को ले जाने का आग्रह सुनकर रॉन्ग नंबर बताकर फोन रख दिया। बच्ची अस्पताल के चाइल्ड केयर यूनिट में दाखिल है और उसकी तबियत बीते तीन दिन से ठीक नही है।
हालांकि कई सामाजिक संस्थाएं आगे आई हैं। संस्था इलाज का खर्चा उठाने को तैयार है। साथ ही आरोपी पिता के खिलाफ केस दर्ज कराने के लिए पुलिस अफसरों से भी शिकायत की गयी है।
केंद्र और राज्य की सरकारों के बेटी बचाओ अभियान के मुकाबले रूढ़िवादी मानसिकता भारी है। सवाल यह है कि जब बेटियों को इस तरह बेसहारा छोड़ दिया जायेगा तो बेटी कैसे जिएंगी। कैसे बेटियों के आसमान की बुलंदियों को छूने का सपना सच होगा।