आउटलुक एग्रीकल्चर कॉनक्लेव एंड स्वराज अवार्ड्स 2020 में सात कैटेगरी में चौदह पुरस्कार दिए गए। केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने कृषि क्षेत्र के इन दिग्गजों को पुरस्कृत किया। पुरस्कार के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, मेघालय, हरियाणा, तमिलनाडु, गुजरात ,छत्तीसगढ़ के किसान ,वैज्ञानिक और कृषि विज्ञान केंद्र और कोऑपरेटिव में काम करने वाले दिग्गजों को सम्माानित किया गया।
श्रेष्ठ कृषि विज्ञान केंद्र (दो विजेता)
रामकृष्ण मिशन केवीके रांची, झारखंड
झारखंड में रांची के दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र, रामकृष्ण मिशन आश्रम ने जैविक खेती को प्रोत्साहन के लिए अंगारा ब्लॉक के धुरलेता गांव को चुना। जागरूकता और प्रशिक्षण के बाद किसानों ने जैविक खेती को अपनाया तो उनकी उत्पादन लागत में 25 फीसदी की कमी आई। स्थानीय संसाधनों का उपयोग करके जैविक खेती करने से उर्वरकों और कीटनाशकों की खपत में कमी आई। किसानों को उनकी उपज का मंडियों में 10 से 20 फीसदी ज्यादा मूल्य मिलने लगा। केवीके जिले के सभी करीब 1300 गांवों के किसानों के लिए बेहद उपयोगी साबित हो रहा है। हर साल करीब 5000 से 7000 किसानों को ट्रेनिंग मिलती है जिससे वे खेती की बेहतर पद्धतियां अपनाने में कुशलता प्राप्त करते हैं। मधुमक्खी पालन और बकरी पालन के क्षेत्र में भी कार्य करके केवीके ने किसानों की आय बढ़ाने में योगदान दिया है।
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केवीके मुरैना, मध्य प्रदेश
मुरैना के कृषि विकास केंद्र ने क्षेत्र में शहद के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए उत्पादकों को प्रोत्सािहत किया। सरसों और अन्य फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों की सहायता की। केंद्र ने महंगे फर्टिलाइजर के बजाय परागण से कृषि उत्पादकता बढ़ाने का अनूठा प्रयोग किया जो बेहद सफल रहा। चंबल मंडल में सरसों के अलावा तिल, चना, दाल, धनिया वगैरह अनेक फसलें उगाई जाती हैं। परागण में मधुमक्खियों का सबसे ज्यादा योगदान होता है। केवीके ने जैविक तरीके से पैदावार बढ़ाने के लिए मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहन दिया। इससे दोहरा फायदा हुआ। फसलों की पैदावार बढ़ने के साथ ही मधुमक्खी पालन से शहद और मोम का उत्पादन भी शुरू हो गया, जिससे किसानों को आय का एक और साधन मिल गया। मधुमक्खी के एक बॉक्स से साल भर में छह से आठ हजार रुपये की आय होती है। केवीके इस प्रयोग से अरहर की पैदावार 15.62 फीसदी और सरसों की पैदावार 26.66 फीसदी बढ़ गई।
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श्रेष्ठ कृषि वैज्ञानिक (दो विजेता)
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह
डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह करनाल स्थित भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक हैं। उन्होंने गेहूं और जौ की 48 किस्मों के विकास के लिए अनुसंधान में योगदान किया। इससे हजारों किसानों, उपभोक्ताओं और उद्योगों को फायदा मिला। राष्ट्रीय गेहूं और जौ सुधार कार्यक्रम के लिए अनुसंधान का प्रभारी होने के नाते उनके कंधों पर सभी वर्गों के लिए भोजन और पोषण सुनिश्चित करने की महती जिम्मेदारी है। इस कार्यक्रम को सफलतापूर्वक लागू करने से ही देश ने गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन हासिल किया। उन्होंने एमजीएमजी स्कीम के तहत लक्ष्य हासिल करने, ट्रेनिंग प्रोग्राम लागू करने और अनुसंधान क्षमता बढ़ाने के लिए नए रिसर्च प्रोग्राम विकसित किए। सोसायटी ऑफ एडवांसमेंट ऑफ व्हीट रिसर्च के प्रेसीडेंट डा. सिंह कई अन्य प्रतिष्ठित संगठनों से जुड़े हैं। उन्हें कृषि अनुसंधान में उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी मिले हैं।
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डॉ. बख्शी राम
अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त ब्रीडिंग साइंटिस्ट डॉ. बख्शी राम कोयंबटूर स्थित आइसीएआर शुगरकेन ब्रीडिंग इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर हैं। उनके द्वारा विकसित गन्ने की वैरायटी देश के 56 फीसदी क्षेत्र में उगाई जाती है। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में तो 82.6 फीसदी क्षेत्र में इसी किस्म का गन्ना उगाया जाता है। उन्होंने जल्दी तैयार होने वाली ऐसी किस्में विकसित करने पर जोर दिया जिनकी पैदावार ज्यादा हो और चीनी की ज्यादा रिकवरी मिल सके। उनके अथक प्रयासों की देन है कि उष्ण कटिबंधीय भारत में चीनी कंपनियों द्वारा 14.01 फीसदी तक रिकॉर्ड रिकवरी प्राप्त की गई। दूसरे शब्दों में कहें तो उनके प्रयासों और अनुसंधान से देश में मधुर क्रांति ने जन्म लिया। डॉ. राम को नेशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज लि. नई दिल्ली के लाइफ टाइम अचीवमंेट सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
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श्रेष्ठ प्रगतिशील किसान (महिला)
मुकेश देवी, बिरहोर, झज्जर, हरियाणा
हरियाणा के झज्जर जिले में बिरहोर की रहने वाली मुकेश देवी अपने गांव की पहली मधुमक्खी पालक हैं। झज्जर के कृषि विकास केंद्र से इस व्यवसाय के लिए प्रेरित होकर 2004 में मधुमक्खी पालन शुरू करने वाली मुकेश पूरे उत्तर भारत में सबसे अधिक सफल रहीं और संपन्नता भी हासिल की। उन्होंने कर्ज लेकर मधुमक्खियों के 30 बॉक्स खरीदे और कारोबार शुरू किया। आज उनके पास 7000 बॉक्स हैं। उनका सालाना मुनाफा 2.65 करोड़ रुपये हो चुका है और वे 192 युवाओं को रोजगार भी दे रही हैं। उन्होंने विभिन्न तरह के पेड़-पौधों और कई क्षेत्रों में शहद के मूल्य वर्धन के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। मुकेश देवी की कहानी से प्रेरित होकर राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और जम्मू-कश्मीर में भी महिलाओं और पुरुषों ने मधुमक्खी पालन इकाइयां स्थापित कीं और संपन्नता प्राप्त की।
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श्रेष्ठ प्रगतिशील किसान (पुरुष)
अब्दुल हादी खान
उत्तर प्रदेश के सीतापुर में बखरिया निवासी अब्दुल हादी खान अल्प शिक्षित हैं, लेकिन कठिन परिश्रम और सीखने की लालसा के कारण उन्होंने खेती में कई खोजें कीं, जिससे सीतापुर और दूसरे जिलों के किसान भी लाभान्वित हो रहे हैं। उन्होंने आम, अनानास, वर्मी कंपोस्ट और नैपियर का मिश्रित खेती का नया मॉडल अपनाया। उन्होंने खेत में आड़ी-टेढ़ी मेड़ बनाकर सिंचाई की नई पद्धति विकसित की जिससे सिंचाई का खर्च 50 फीसदी कम हो गया। खेती के लिए उनकी नई खोजों से गन्ना, मसूर और अरहर दाल की पैदावार बढ़ाने में उल्लेखनीय सफलता मिली। इंटरक्रॉपिंग और गन्ने की रोपाई के उनके प्रयोगों को करीब 100 दूसरे किसान भी अपना चुके हैं। अब्दुल हादी खान के प्रयोगों से खेती की उत्पादन में लागत में कमी आई और कीटों का प्रकोप भी कम हुआ।
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श्रेष्ठ राज्य (दो विजेता)
मेघालय
मेघालय की 81 फीसदी आबादी व्यवसाय, रोजगार और आय के लिए खेती पर ही निर्भर है। मेघालय ने स्ट्रॉबेरी, हल्दी, कटहल और दूध के क्षेत्र में कई प्रयोग किए हैं और सफलता हासिल की है। यहां री-भोई जिले में पहले किसान स्ट्रॉबेरी की सिर्फ एक फसल ले पाते थे, लेकिन तकनीक की मदद से अब तीन फसलें ले रहे हैं। यह किसानों की आय का मुख्य जरिया बनता जा रहा है। मेघालय ने हल्दी की लाकाडोंग वैरायटी विकसित की है। इसमें देश के दूसरे हिस्सों में उगाई जाने वाली हल्दी की तुलना में दो फीसदी ज्यादा करक्यूमिन होता है। इससे किसानों की इसकी कीमत भी ज्यादा मिलती है। पद्मश्री श्रीमती ट्रिनिटी साइउ इस क्रांति की अगुवा। आज करीब 115 किसान समूह मेघालय के मिशन लाकाडोंग से जुड़े हैं। प्रदेश में हर साल पहले करीब 450 करोड़ रुपये का कटहल बर्बाद हो जाता था। उसे बचाने के लिए प्रोसेसिंग को बढ़ावा दिया गया। राज्य में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए मेघालय मिल्क मिशन की भी शुरूआत की गई है।
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उत्तराखंड
उत्तराखंड के कृषि मंत्री सुबोध उनियाल के मार्ग दर्शन में कृषि क्षेत्र विकास कर रहा है। राज्य में कृषि क्षेत्र घटने के बावजूद खाद्यान्न उत्पादन बढ़ रहा है। वर्ष 2017-18 में उत्पादन 19.20 लाख टन हो गया। खाद्यान्न उत्पादन में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए उत्तराखंड को 2017-18 में कृषि कर्मण पुरस्कार भी मिला। राज्य ने सभी छोटे और सीमांत किसानों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान की है। 585 क्लस्टरों में जैविक खेती कार्यक्रम शुरू करने से 28,250 किसानों को फायदा मिला। 2018-19 से 2020-21 के बीच 3,900 क्लस्टरों में यह कार्यक्रम शुरू किया जा रहा है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय और संबंधित विभाग समन्वय करके योजनजाओं पर काम कर रहे हैं। मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन एवं मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना के तहत दूसरे चरण में 8.81 लाख किसानों के खेतों से नमूने लेकर कार्ड दिए जा चुके हैं। पर्वतीय क्षेत्र में स्थानीय किस्मों के बीजों की कमी दूर करने के लिए किसान हिल सीड बैंक परियोजना के तहत बीज उत्पादन किया जा रहा है।
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श्रेष्ठ राष्ट्रीय सहकारी समिति
नेशनल कोऑपरेटिव डेयरी फेडरेशन ऑफ इंडिया, आणंद
एनसीडीएफआइ सहकारिता के माध्यम से डेयरी के अलावा तिलहन, खाद्य तेल और अन्य फसलों के प्रोत्साहन के लिए काम करती है। डेयरी क्षेत्र में योगदान सबसे उल्लेखनीय है। देश के करोड़ों किसानों को सहकारिता के जरिये जोड़कर उनकी खुशहाली और आर्थिक बेहतरी के लिए वह कई दशकों से काम कर रही है। वह रक्षा, आइटीबीपी और आइआरसीटीसी जैसे संस्थागत ग्राहकों के अलावा देश के असंख्य उपभोक्ताओं तक दुग्ध उत्पाद सुलभ कराती है। पिछले साल उसका कारोबार 1103 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह सहकारी संस्थान दुग्ध उत्पादकों को क्वालिटी सीमेन सुलभ कराने के लिए भी काम कर रही है। देश में श्वेत क्रांति के जनक डॉ. वर्गीज कुरियन 2006 तक एनसीडीएफआइ के चेयरमैन रहे थे।
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श्रेष्ठ राज्य सहकारी समिति
छत्तीसगढ़ स्टेट कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड
छत्तीसगढ़ मार्कफेड ने धान की खरीद, उसके प्रबंधन और भुगतान में ऑटोमेशन को बढ़ावा देकर सहकारिता क्षेत्र को नया आयाम दिया है। धान खरीद का भुगतान सभी 18 लाख किसानों को पीएफएमएस पोर्टल से जुड़े एसएफटीपी के जरिये किया जा रहा है। इस पूरी प्रक्रिया में किसी कर्मचारी का कोई दखल नहीं होता है। यही नहीं, धान की खरीद, लोडिंग-अनलोडिंग और परिवहन की गतिविधियों की भी मोबाइल एप्लीकेशन के जरिये निगरानी होती है। मार्कफेड ने पिछले साल 19.54 लाख किसानों से 80 लाख धान की खरीद की। वह हर साल 16.96 लाख किसानों को 8.94 लाख टन उर्वरक सुलभ कराती है। मार्कफेड ने राज्य के 27 जिलों में 110 स्थानों पर 204 गोदाम बनाए हैं जिनकी भंडारण क्षमता 5.16 लाख टन है।
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श्रेष्ठ प्राथमिक सहकारी समिति
मल्कानूर कोऑपरेटिव क्रेडिट एंड मार्केटिंग सोसायटी लिमिटेड
तेलंगाना की मल्कानूर कोऑपरेटिव क्रेडिट एंड मार्केटिंग सोसायटी ने कृषि, क्रेडिट, एग्री स्टोरेज, प्रोसेसिंग, मार्केटिंग, डेयरी और फिशिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया है। 1956 में स्थापित इस सहकारी समिति से आज 7,650 किसान जुड़े हैं। यह आसपास के 14 राजस्व ग्रामों में सक्रिय है। समिति अपने सदस्य किसानों को फसल कर्ज और दूसरे तरह के कृषि कर्ज सुलभ कराती है। इससे किसानों को उत्पादकता बढ़ाने और संपन्नता हासिल करने में मदद मिली। समिति अपने सदस्यों को बच्चों की पढ़ाई, चिकित्सा और बेटियों की शादी के लिए व्यक्तिगत कर्ज भी देती है। समिति के अध्यक्ष ए. प्रवीण रेड्डी किसानों के सामने आने वाली समस्याओं को सुलझाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।
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श्रेष्ठ फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशन (दो विजेता)
रामरहीम प्रगति प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड
मध्य प्रदेश के देवास में 2012 में स्थापित रामरहीम प्रगति प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड में 304 स्वयं सहायता समूह शेयरधारक हैं और इन समूहों से करीब 4,200 सदस्य जुड़े हैं। यह संगठन किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाने के अलावा बोनस भी देता है। इस साल उसने स्वयं सहायता समूहों के 2500 सदस्यों से 13,000 क्विंटल उपज की खरीद करके आपूर्ति की और 4.93 करोड़ रुपये का कारोबार किया। रामरहीम पहली प्रोड्यूसर कंपनी है जिसे स्मॉल फार्मर एग्रीकल्चर कंसोर्टियम के तहत कृषि मंत्रालय से इक्विटी ग्रांट मिली। वह एनसीडीईएक्स में सूचीबद्ध होने वाली पहली फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी भी है। इससे उसके सदस्यों को ऑनलाइन कमोडिटी एक्सचेंज पर अपनी उपज बेचने की सुविधा मिली।
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वेलियनगिरि उझावन प्रोडसर कंपनी लिमिटेड
तमिलनाडु में कोयंबटूर की वेलियनगिरि उझावन प्रोड्यूसर कंपनी नारियल, सुपारी, सब्जियां, हल्दी और केला उत्पादकों के लिए काम करती है। यह एफपीओ सदस्य किसानों को नई तकनीक अपनाने और बेहतर उत्पादकता पाने के लिए प्रोत्साहित और सहायता करता है। उसके प्रयासों से सदस्य किसानों को उनकी उपज का बेहतर मूल्य मिल रहा है। उपज की बिक्री करने से संगठन को होने वाली आय में लगातार वृद्धि हो रही है। संगठन का कारोबार वर्ष 2016-17 में 2.37 करोड़ रुपये था जो 2017-18 में बढ़कर 7.86 करोड़ रुपये हो गया। वर्ष 2018-19 में कारोबार बढ़कर 11.88 करोड़ रुपये हो गया।
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श्रेष्ठ एग्री टेक्नोलॉजी स्टार्टअप
एगनेक्स्ट (एग्रीकल्चर नेक्स्ट)
कंपनी के सीईओ तरनजीत सिंह भामरा ने 2016 में कृषि उपज की गुणवत्ता जांच के लिए एग्रीकल्चर नेक्स्ट की स्थापना की थी। एगनेक्स्ट डिजिटल एग्रीकल्चर गुणवत्ता जांच के लिए एआइ और एल्गोरिदिम आधारित डिजिटल उपकरण बनाती है जिससे गुणवत्ता की तुरंत और पारदर्शी तरीके से भरोसेमंद जांच हो सकती है। इससे खरीदारों के लिए उपज की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है और किसानों को भी अपनी उपज की क्वालिटी की भरोसेमंद जानकारी मिलती है। इससे वे गुणवत्ता के अनुसार अपनी उपज की उचित कीमत मांग सकते हैं। कंपनी अपने क्लाउड बेस्ड एप्लीकेशन के लिए कई तरह के उपकरण और टूल्स का इस्तेमाल करती है जिनसे उपज की क्वालिटी का तुरंत पता लग सकता है।