ईरान संकट, आतंकवाद की चुनौती के बीच अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो भारत दौरे पर हैं। आज उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। इस दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर, एनएसए अजित डोभाल भी मौजूद थे।पोम्पियो अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव के बीच सहयोग, साझेदारी और सद्भावना का संदेश लेकर भारत पहुंचे हैं।पीएम मोदी से मुलाकात करने के बाद उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और एनएसए अजित डोभाल से अलग से मुलाकात की। अब साझा बयान पर हर किसी की नजर है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी समकक्ष माइक पोम्पिओ से मुलाकात की और भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा की। मंगलवार रात यहां पहुंचे पोम्पियो ने सुबह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की और द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की।
भारतीय नेतृत्व के साथ अमेरिकी विदेश मंत्री की वार्ता मोदी सरकार की सत्ता में वापसी के बाद दोनों देशों के बीच पहली उच्च स्तरीय बातचीत है।
पोम्पियो के इस दौरे के दौरान ईरान से तेल निर्यात, भारत रूस के बीच एस-400 समझौते, व्यापार, पाकिस्तान से आतंकवाद को बढ़ावा और एशिया प्रशांत क्षेत्र में ट्रंप की महत्वाकांक्षी योजना सहित कई मुद्दों नजर है। माना जा रहा है कि पोम्पियो इस दौरान भारत अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव, अमेरिका की भारत से भविष्य के जुड़े हित और अमेरिका के राजनीतिक समीकरणों को ध्यान में रखकर भारत के समक्ष दोस्ती का हाथ बढ़ाएंगे।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने भारत आने से पहले कहा कि इस दौरे में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एक वैश्विक गठजोड़ बने, जो सामरिक रूप से एकजुट हो। ना सिर्फ संपूर्ण खाड़ी क्षेत्र के देश, बल्कि एशिया और यूरोप तक एक बड़ा गठजोड़ बने, जो कि मौजूदा समय की चुनौती को समझे और आतंक के दुनिया के सबसे बड़े प्रायोजक के खिलाफ कदम उठाने के लिए तैयार हो।
भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक तकरार
हाल ही में जारी ग्लोबल ट्रेड वॉर के बीच भारत और अमेरिका दोनों ने अपनी चालें चलीं। अमेरिका ने भारत से तरजीह देने वाला दर्जा छीना, तो भारत ने भी अमेरिकी उत्पाद पर टैक्स बढ़ा दिए। ट्रंप प्रशासन चाहता है कि भारत उसके मुताबिक न सिर्फ व्यापार करे बल्कि दूसरे देशों के साथ रिश्ते भी उनके हिसाब आगे बढ़ाए। खासकर ईरान को लेकर ट्रंप सरकार ने बेहद सख्त रवैया अपना रखा है। लेकिन भारत ने परोक्ष रूप से संदेश दे दिया कि अपने हितों के हिसाब से ही वह संतुलन बनाने की रणनीति के तहत आगे बढ़ेगा। साथ ही अमेरिकी प्रशासन को भी यह भी संदेश दे दिया गया कि भारत के बाजार की उपेक्षा करने से भारत से अधिक अमेरिका का ज्यादा घाटा होगा। जाहिर है, इन हालात में अमेरिकी विदेश मंत्री के भारत दौरे और ट्रंप-मोदी की मुलाकात पर सबकी नजर रहेगी।
इन मुद्दों पर भी है खींचतान
-रूस से एच-400 मिसाइल प्रणाली की खरीद पर अमेरिका काटसा प्रतिबंध की तलवार लटका रहा है। अमेरिका नहीं चाहता कि भारत रूस से यह प्रणाली की खरीद करे। इसको लेकर दोनों देशों के बीच विवाद की स्थिति रहती है।
-ईरान के साथ अपनी दुश्मनी की वजह अमेरिका ने भारत समेत कई देशों को ईरान से तेल नहीं खरीदने की चेतावनी दी है। भारत की आवश्यकता का एक बड़ा हिस्सा ईरान से निर्यात होता है। ऐसी संभावना है कि इस मुद्दे पर चर्चा हो।
-अमेरिका एच-1बी वीजा को लेकर भारत को धमका रहता है। पिछले हफ्ते ही एच-1बी वीजा कार्यक्रम की समीक्षा करने और भारत की सीमा घटाने की बात अमेरिका ने की थी। भारत इस मुद्दे पर भी पोम्पियो से बातचीत कर सकता है।
अमेरिका इन मुद्दों पर भारत का साथ चाहेगा
-अमेरिका प्रशांत क्षेत्र में चीन के दखल से चिंतित है और वह भारत से प्रशांत क्षेत्र में अपनी योजनाओं पर मदद चाहता है। ऐसे में पोम्पियो भारत-अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को आगे बढ़ाने पर जोर देंगे।
-पोम्पियो भारत से रक्षा खरीद बढ़ाने पर बातचीत कर सकते हैं। अभी भारत अमेरिका से 24 एमएच-60 सीहॉक हेलीकॉप्टर, लंबी दूरी वाले 10 पी8एलविमान और 6 अधिक अपाचे-64 हेलीकॉप्टर खरीदने पर बात कर रहा है।
-पोम्पियो और मोदी के बीच अफगानिस्तान में शांति को लेकर बातचीत संभव है। अफगानिस्तान में भारत ने कई योजनाओं में निवेश किया हुआ है। ऐसे में अफगानिस्तान को युद्धक्षेत्र बदलने के पीछे पाकिस्तान के प्रभाव पर भी बातचीत हो सकती है।