सीएम पुष्कर सिंह धामी ने आखिरकार पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की जिद को तोड़ ही दिया। देवस्थानम् बोर्ड का फैसला वापस लेकर धामी ने आने वाले विस चुनाव में भाजपा के सामने आने वाली विरोध की मुश्किल को भी थाम लिया है।
त्रिवेंद्र सरकार ने चारधाम समेत 51 मंदिरों को सरकार के अधीन लाने के लिए देवस्थानम् बोर्ड का गठन किया था। इसका तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज खासा विरोध कर रहे थे। अंदरखाने भाजपा के लोग भी नाराज थे। भाजपा सांसद सुब्रह्मणियम ने इस बोर्ड के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका भी दाखिल की। हाईकोर्ट से याचिका खारिज हुई तो उन्होंने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील कर रखी है।
इसके बाद भी त्रिवेंद्र अपनी जिद पर अड़े रहे। भाजपा नेता तीरथ सिंह रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही इस बोर्ड को खत्म करने की बात की। इस पर त्रिवेंद्र ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बोर्ड की फिर पैरवी की। तीऱथ को जल्द ही सीएम पद से विदा लेनी पड़ी। इसके बाद पुष्कर सिंह धामी सीएम बने तो बोर्ड भंग करने की मांग फिर से तेज हो गई। हालात इतने खराब होने लगे कि तीर्थ पुरोहितों ने त्रिवेंद्र को भगवान केदारनाथ के दर्शन तक नहीं करने दिए। तीर्थ पुरोहितों ने मंत्रियों के आवास पर प्रदर्शन किया और सीएम आवास कूच भी किया।
हालात को भांपकर सीएम धामी ने पूर्व सांसद मनोहरकांत ध्यानी की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया। चुनाव नजदीक आते ही बोर्ड का मुद्दा जोर पकड़ने लगा। भाजपा के लोग भी मानने लगे कि अगर बोर्ड भंग नहीं किया गया तो चुनाव में खासा नुकसान होगा। ध्यानी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इसका अध्ययन करने के बाद सीएम धामी ने ट्वीट करके कहा कि सरकार इस बोर्ड को वापस ले रही है। बाद में सभी पक्षों से बातचीत के बाद फैसला किया जाएगा कि क्या करना है।
बहरहाल, सीएम धामी ने इस फैसले से जहां एक तरफ त्रिवेंद्र की जिद को झटका दिया है, वहीं दूसरी ओर भाजपा को चुनाव में होने वाले संभावित नुकसान से भी बचा लिया है, ऐसा प्रतीत हो रहा है।