जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) का कहना है कि इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट से तीस्ता, जावेद आनंद और तीन अन्य की अग्रिम जमानत याचिका ख़ारिज होने पर संगठन आहत है। एनएपीएम का यह भी कहना है कि कोर्ट ने तीस्ता पर लगे आरोपों की अच्छी तरह जांच कर ली होती तो उनकी जमानत याचिका रद्द नहीं होती।
हालांकि तीस्ता की गिरफ़्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने 19 फरवरी तक रोक लगाकर उन्हें तात्कालिक राहत दी है। लेकिन इस मामले में हाईकोर्ट के फ़ैसले का सहारा लेते हुए गुजरात सरकार जिस तरह तीस्ता और उनके साथियों को गिरफ़्तार करने पर आमादा थी। वह भी चिंता का विषय है। तीस्ता को हिरासत में लेकर पूछताछ करने की कोशिश भी न्याय के पक्ष में नहीं है।
तीस्ता समर्थकों का कहना है कि वह तीस्ता, जावेद और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस और सबरंग ट्रस्ट की तरफ़ से गुजरात दंगों के पीड़ितों के लिए किये गए काम से अच्छी तरह परिचित हैं। उन्होंने लगातार गुजरात दंगों के ख़िलाफ़ और राज्य में मानधिकार हनन के ख़िलाफ़ निर्भीक होकर आवाज़ उठायी है। इसलिए उन्हें झूठे मुकदमों में फंसाया जा रहा है।
यह लोकतंत्र के लिए बहुत ही ख़तरनाक है जब नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को सही बात उठाने पर फर्जी मामलों में फंसाने की कोशिश की जाती है। एनएपीएम के साथ नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर समेत देशभर के जन आंदोलन के कई महत्वपूर्ण लोग जुड़े हैं।
तीस्ता के पक्ष में एक ऑन लाइन अभियान भी चल रहा है। जिसकी पहलकदमी वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफ़ा, पामेला फिलिपोस, राजनीति विज्ञानी अचिन वनायक, कमल मित्र चिनोय, अनुराधा चिनोय आदि ने संभाल रखी है। इस मुहिम में भी बड़ी संख्या में देश-विदेश के बुद्धिजीवी और ऐक्टिविस्ट हिस्सेदारी कर रहे हैं। मशहूर डॉक्यूमेंट्री फिल्मकार आनंद पटवर्धन ने भी तीस्ता के पक्ष में आवाज़ उठाई है।
भारतीय जनता पार्टी और उनके समर्थक कोर्ट के निर्देश और तीस्ता को गिरफ्तार करने पर आमादा गुजरात पुलिस की जल्दबाज़ी को जायज ठहरा रहे हैं। तीस्ता लगातार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात दंगों के लिए कठघरे में खड़ा करती रही हैं। इसलिए वह हमेशा ही भाजपा और गुजरात सरकार के निशाने पर रही हैं।
तीस्ता पर आरोप है कि उन्होंने गुजरात दंगों के दौरान ध्वस्त और कत्लेआम की शिकार अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी को संग्रहालय बनाने के लिए जो पैसा इकट्ठा किया उसमें से 14.2 लाख रुपया अपने क्रेडिट कार्ड का बकाया चुकाने में लगा दिया। तीस्ता का कहना है कि क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल उनके व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए नहीं बल्कि गुलबर्ग सोसायटी के कामकाज के लिए की गई यात्राओं में हुआ। यह सब जानते हैं कि अक्सर क्रेडिट कार्ड से लोग अपने कामकाज का ख़र्च चलाते करने हैं और बाद में संस्था या कंपनी से वह ख़र्च वापस लेते हैं। क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल हमेशा निजी व्यय के लिए ही नहीं होता।
गुजरात सरकार ने बहुत चालाकी से निजी ख़र्च और संस्था के ख़र्च का घालमेल करके तीस्ता और जावेद को फंसाने की कोशिश की है। गुजरात दंगों और गुलबर्ग सोसायटी का मामला अदालत में उठाने की वजह से तीस्ता और जावेद के ख़िलाफ़ गुजरात सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है। ऐसा तीस्ता के समर्थन में उठ खड़े हुए जन संगठनों और बुद्धिजीवियों का मानना है।
गुलबर्ग सोसायटी में दंगों के दौरान 67 लोग मारे गये थे। जिनमें के पूर्व सांसद अहसान जाफरी भी थे। उनकी पत्नी ज़किया जाफरी की दायर याचिका अभी कानूनी प्रक्रिया में उलझी हुई है। इस मामले में तीस्ता ने जकिया की भरपूर मदद की है। तीस्ता के ख़िलाफ़ फिरोज़ पठान नाम के एक शख्स ने एफआइआर दर्ज़ की थी। फ़िरोज कभी तीस्ता का सहयागी था।