फर्नांडिस के साथ नारायण और अन्य लोगों को 10 जून, 1976 को कोलकाता में गिरफ्तार किया गया था। बड़ौदा डायनामाइट मामले में उन पर मुकदमा चलाया गया था। उन पर सरकार का तख्तापलट करने के उद्देश्य से सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने का भी मुकदमा चलाया गया था। वर्तमान में 86 वर्षीय फर्नांडिस अल्जाइमर बीमारी से पीडि़त हैं और दिल्ली में अपनी पत्नी लैला कबीर के साथ रह रहे हैं। 1974 की रेल हड़ताल के बाद वह कद्दावर नेता के तौर पर उभरे और उन्होंने बेबाकी के साथ आपातकाल का विरोध किया था।
फर्नांडिस, नारायण और उनके अन्य साथियों को कोलकाता में सेंट पॉल्स चर्च से गिरफ्तार किया गया था। वाराणसी में जन्मे नारायण ने कहा, सेंट पॉल्स चर्च में जार्ज के पास एक टाइपराइटर, एक साइक्लोस्टाइल मशीन थी और वह इसी से पत्र लिखते थे जिसे मैं विभिन्न स्टेशनों पर रेलवे मेल सर्विस के काउंटरों पर डालने जाया करता था। उन्होंने बताया, मैंने पुलिस से बचने के लिए एक बनारसी मुस्लिम बुनकर का वेश धारण किया था। हम भले ही छिप रहे थे, लेकिन निष्क्रिय नहीं थे।
नारायण ने कहा, जहां जार्ज को उसी रात (10 जून) भारतीय वायुसेना के एक कार्गो विमान में दिल्ली ले जाया गया, मुझे पुलिस हिरासत में रखा गया और करीब एक पखवाड़े तक कोलकाता में पुलिस के खुफिया ब्यूरो द्वारा मुझसे पूछताछ की गई। बाद में हम सभी को दिल्ली के तिहाड़ जेल में डाल दिया गया और मुकदमा तीस हजारी कोर्ट में चला।
उन्होंने कहा, जेल में रहते हुए जार्ज का एक चमत्कारिक व्यक्तित्व था और वह सुबह में साथी कैदियों को गीता का पाठ पढ़ाया करते थे और हम सभी तिहाड़ में लाइब्रेरी से पुस्तकें पढ़ा करते थे। फर्नांडिस और उनके साथियों को तिहाड़ जेल से तीस हजारी कोर्ट कई वैनों में ले जाया जाता और 200 पुलिसकर्मी साथ में होते थे। बिहार से सांसद के तौर पर फर्नांडिस, वीपी सिंह की सरकार में रेल मंत्री रहे और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वह रक्षा मंत्री रहे। नारायण ने कहा कि इन राजनीतिक उपलब्धियों के बावजूद फर्नांडिस एक साधारण जीवन व्यतीत करते रहे। ईसाई परिवार में जन्मे फर्नांडिस, संसद में कभी अंग्रेजी में नहीं बोले और उनकी हिंदी, मराठी और कन्नड़ भाषाओं पर अच्छी पकड़ है।