न्यायालय ने यह आदेश उस वक्त दिया जब पूर्व मुख्यमंत्री की पत्नी डांग्वीसाई पुल के वकील ने कहा कि भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) न्यायमूर्ति जे.एस. खेहड़ को इस मुद्दे को न्यायिक पक्ष से सुनने का आदेश नहीं देना चाहिए था, क्योंकि इसमें गंभीर आरोप हैं।
पुल की ओर से पेश हुए जाने-माने वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि इस मामले पर प्रशासनिक पक्ष से गौर करना चाहिए, क्योंकि न्यायिक पक्ष से मामले को खारिज कर देने से दिवंगत कलिखो पुल की पत्नी के पास कोई उपचार नहीं बचेगा। उन्होंने इस संवेदनशील मामले का निपटारा करने के लिए दो सदस्यों की पीठ बनाने के सीजेआई के कदम पर भी ऐतराज जताया और कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सी.एस. कर्णन के मामले में सीजेआई ने सात सदस्यीय पीठ का गठन किया था।
बहरहाल, दवे ने कहा कि इस मामले में, जिसके कहीं गंभीर परिणाम हैं, सीजेआई ने दो सदस्यों की पीठ बनाने का फैसला कर लिया, जिसे उन्हें खुद नहीं करना चाहिए था क्योंकि इसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं और पीठ गठित करने का काम उच्चतम न्यायालय के तीसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश पर छोड़ा जाना चाहिए था।
वरिष्ठ वकील ने कहा कि वह खुली अदालत में कई चीजें बोलकर खुद को मामले से अलग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए घटनाक्रम हो चुके हैं और उच्चतम न्यायालय के एक पूर्व न्यायाधीश ने उनसे मुलाकात की है।
दवे ने न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति यू.यू. ललित की दो सदस्यीय पीठ को बताया, हम जानना चाहेंगे कि यह मामला इस अदालत के सामने कैसे सूचीबद्ध हुआ। इसे तो प्रशासनिक पक्ष द्वारा देखा जाना चाहिए था। वरिष्ठ वकील ने मांग की कि इस मामले से न्यायमूर्ति गोयल को अलग हो जाना चाहिए क्योंकि वह पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में उस वक्त पीठ के सदस्य रह चुके हैं जब सीजेआई खेहर भी वहां न्यायाधीश थे।
दवे ने कहा, हमें हैरत हो रही है कि इसे न्यायिक पक्ष में सूचीबद्ध किया गया है। कृपया आप सुनवाई से खुद को अलग कर लें। इस मामले को आप नहीं देखें। सुसाइड नोट में लिखी गई बातें बेहद संवेदनशील हैं। यह संस्था हम सबके लिए कहीं ज्यादा अहम है। हालांकि, पीठ ने दवे की यह मांग मानने से इंकार कर दिया कि न्यायमूर्ति गोयल इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लें।
वकील ने कहा, यदि यह अदालत इस मामले पर सुनवाई करेगी तो इससे काफी गलत संदेश जाएगा कि यह न्यायालय मामले को न्यायिक पक्ष में ले जाना चाहता है। उन्होंने कहा, यह याचिका राष्ट्रपति या उप-राष्ट्रपति के पास जानी चाहिए....यह ऐसा मामला है जिसमें असाधारण रूप से स्वतंत्र जांच की जरूरत है।
बिरला-सहारा डायरी मामले को उठाने की असफल कोशिश करते हुए दवे ने कहा, मैं दुआ करता हूं कि ये आरोप सही नहीं हों। यह न्याय की संस्था के बारे में काफी गलत संदेश भेज रही है। उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने बिरला-सहारा डायरी मामले की जांच कराने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर दी थी।
दवे की बातों से निराश नजर आ रहे न्यायमूर्ति ललित ने कहा, आपको सिर्फ अपने मामले तक सीमित रहना चाहिए। कृपया दूसरे मामले में न जाएं। जब दवे को यह अंदाजा हो गया कि पीठ अन्य मुद्दों को नहीं उठाने देने के पक्ष में है तो उन्होंने फिर से अपनी मूल दलीलें देनी शुरू की और कहा कि वह जानना चाहते हैं कि आखिर यह मामला सुनवाई के लिए न्यायिक पक्ष के पास आया कैसे।
दवे ने कहा, आपके लिए मेरे मन में काफी सम्मान है। लेकिन मेरा सवाल है कि यह मामला उच्चतम न्यायालय की अदालत संख्या-13 में क्यों सूचीबद्ध है? अदालत संख्या- 6, 7, 8, 9 या 10 जैसी अदालतों में क्यों नहीं ?
बहरहाल, पीठ ने कहा, प्रधान न्यायाधीश के आदेश के तहत अदालत में इस मामले को सूचीबद्ध किया गया है। जब पीठ ने न्यायमूर्ति गोयल को इस मामले से अलग करने की मांग नहीं मानी तो वरिष्ठ वकील ने मामला वापस लेने का फैसला किया। उन्होंने कहा, मुझे इसे वापस लेने की इजाजत दीजिए। मैं दूसरे विकल्प अपनाउंगा। हम चिंतित हैं कि आप इसे न्यायिक पक्ष की ओर ले जाना चाहते हैं। हम यह नहीं चाहते हैं। हम इस बारे में चिंतित हैं। रजिस्ट्री को इस मामले को इस पीठ के समक्ष सूचीबद्ध नहीं करना था।
जब पीठ ने दोबारा कहा कि सीजेआई के आदेश के तहत इसे अदालत में सूचीबद्ध किया गया तो दवे ने कहा, मैं इस पर सवाल उठाने का हकदार हूं और मैं सवाल उठाउंगा। पत्र वापस लेने की अनुमति मांगते हुए दवे ने कहा, सोमवार को कुछ घटनाक्रम हुए। इस अदालत के एक पूर्व न्यायाधीश ने भी मुझसे मुलाकात की। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि इस मामले की सुनवाई आप नहीं करें। हम दूसरे विकल्प अपनाएंगे।