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कुपोषण से मुक्ति एक सपना बन गया है

कुपोषण एक ऐसी बीमारी जो कि बच्चों के विकास में बाधक ही नहीं बल्कि समाज के लिए चिंता का विषय है। कुपोषण से मुक्ति की सरकार लाख कोशिशें कर ले लेकिन इससे मुक्ति एक सपना बन गया है। राष्ट्रीय प्रतिष्ठान और सेव द चिल्ड्रेन के लिए किए जा रहे शोध के दौरान पाया गया कि सरकारी आंकड़े कुपोषण को लेकर कुछ और स्थिति बताते हैं जबकि जमीनी हकीकत कुछ और होती है।
कुपोषण से मुक्ति एक सपना बन गया है

 उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में कुपोषण और बच्चों के स्वास्‍थ्य पर हुए शोध में पाया गया  कि कुपोषण को लेकर सरकार चिंता तो जताती है लेकिन दूर करने के लिए कोई उपाय नहीं करती। कुपोषण से मुक्ति के लिए प्रदेश सरकार ने अपने स्तर पर अभियान चलाया हुआ है अधिकारियों को गांव गोद लेकर कुपोषण दूर करने के लिए कहा गया है। गाजीपुर ‌के जिला अधिकारी नरेंद्र सिंह पटेल ने भी रूहीपुर गांव को गोद लिया है कि इस गांव से कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके। इस गांव को लेकर सरकारी सर्वेक्षण किया गया तो पाया गया कि 56 बच्चे कुपोषित हैं। जब जिलाअधिकारी ने इस गांव को गोंद लिया तो यह सुर्खियों में आ गया है। क्योंकि जिला अधिकारी का संकल्प था कि हर गांव कुपोषण से मुक्त हो। ऐसे में जब यहां स्वास्‍थ्य शिविर लगाया गया और गांव के बच्चों, महिलाओं और पुरुषों को स्वास्‍थ्य के प्रति जागरूक किया गया।

नरेंद्र सिंह पटेल बताते हैं कि जब उन्हें पता चला कि इस गांव में ज्यादा बच्चे कुपोषित है तो उन्होने इस गांव को गोंद लिया और अन्य अधिकारियों को भी निर्देश दिया कि कुपोषण के प्रति अभियान चलाया जाए। लेकिन एक दिन के शिविर लगाने से क्या कुपोषण की समस्या से मुक्ति मिल सकती है यह बड़ा सवाल है। क्योंकि जिस दिन किसी गांव में अधिकारी पहुंचते हैं तो स्वास्‍थ्य विभाग से लेकर हर विभाग के कर्मचारी मुस्तैद हो जाते हैं लेकिन उनके जाने के बाद स्थिति वही पुरानी हो जाती है।

शोध के दौरान पाया गया कि जिले का बाल एवं पुष्टाहार विभाग जहां कुपोषित बच्चों की संख्या कम बता रहा है वहीं खुद जिला चिकित्साअधिकारी मानते हैं कि कुपोषित बच्चों की संख्या ज्यादा है। कारण साफ है कि कुपोषित बच्चों की संख्या की कोई सूची ही नहीं बन पाती। कई स्कूलों की ओर से भी इस बात की शिकायत मिली कि बच्चों के स्वास्‍थ्य की जांच समय से नहीं हो पाती। ऐसे में कुपोषण से मुक्ति का सपना दूर की कौड़ी नजर आ रही है।

रोचक तथ्य तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय इलाके वाराणसी में भी कुपोषित बच्चों की संख्या 40 हजार से ज्यादा है। गाजीपुर जिला वाराणसी मंडल के अधीन आता है और इस पूरे मंडल के जो सरकारी आकंड़े हैं उसके मुताबिक 1.60 लाख बच्चे कुपोषित हैं। जिसमें गाजीपुर जिले में 30 हजार बच्चे कुपोषित हैं। आंकड़े चौकाने वाले इसलिए कहे जा सकते हैं कि गाजीपुर के बाल एवं पुष्टाहार विभाग ने कुपोषित बच्चों की संख्या केवल 23 बताई है। इससे जाना जा सकता है कि सरकारी आकंड़े की किस तरह से उलझाने वाले हैं। समग्र विकास इंडिया के अध्यक्ष एवं जिला पंचायत सदस्य ब्रज भूषण दूबे ने जिले के मनिहारी ब्लॉक के गांव बुजुर्गा का दौरा किया। जहां एक दो नहीं बल्कि आधा दर्जन बच्चे कुपोषण के शिकार मिले।

दूबे इस गांव की समस्या की शिकायत मानवाधिकार आयोग के सामने भी करने की बात करते हैं। चिंता की बात यह है कि सामाजिक संगठनों के लोग जो तथ्य जुटाते हैं उस पर सरकार ध्यान नहीं देती। समीक्षा बैठकों का आयोजन कर चिंता जरूर जताई जाती है। लेकिन सवाल यह है कि क्या केवल चिंता जता देने भर से ऐसी समस्या से मुक्ति मिल सकती है। शोध के दौरान पाया गया कि केवल कुपोषण की ही स्वास्‍थ्य सेवाओं के मामले में पिछड़े इस जिले में समस्याएं बहुत हैं। लेकिन इसको लेकर न तो सरकार कोई ठोस कदम उठा रही है और न ही यहां के जनप्रतिनिधि। क्योंकि इसके लिए एक ठोस रणनीति और इस रणनीति को सही तरीके से लागू करने की जरूरत है। 

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