रविशंकर देहरादून बार एसोसिएशन के सभागार में अधिवक्ताओं से भी मुखातिब हुए। बार एसोसिएशन देहरादून की ओर से जजों के खाली पदों को भरने और हाई कोर्ट की एक बेंच देहरादून में स्थापित करने जैसी मांगें उठीं तो उन्होंने कहा कि बार की ओर से जितनी भी मांगे गिनाई गई हैं। उनमें से अधिकतर राज्य सरकार से संबंधित हैं। जहां तक जजों की नियुक्ति की बात है तो उत्तराखंड में 58 और देश भर में जजों के 4400 पद खाली हैं। लेकिन जजों की नियुक्ति का अधिकार हाई कोर्ट के पास है या फिर लोक सेवा आयोग को। प्रधानमंत्री जजों की नियुक्ति नहीं कर सकते।
इतिहास का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 1950 में भारतीय संविधान लागू होने से लेकर 1993 तक जजों की नियुक्ति सरकार ही करती थी, लेकिन कोलेजियम सिस्टम लागू होने के बाद सरकार का हस्तक्षेप पूरी तरह से खत्म हो गया। दलील दी जाती है कि सरकार यदि जजों की नियुक्ति करेगी तो उस जज के सामने जब किसी राजनेता का मामला जाएगा तो निष्पक्ष नहीं रह पाएगा।
जबकि इतिहास गवाह है कि कोलेजियम सिस्टम लागू होने से पहले भी ऐसे जज हुए हैं, जिन्होंने नेताओं के खिलाफ बड़े फैसले दिए। कानून मंत्री ने कहा कि हाई कोर्ट की बेंच देहरादून में स्थापित करने का अधिकार भी नैनीताल हाई कोर्ट को है। यदि हाई कोर्ट उन्हें इस बारे में कोई निर्देश देता है तो वह अवश्य कदम उठाएंगे।